आपके विचारों ne मुझे आनंदित कर दिया, आपने कहा मैं खुद परमात्मा हूँ. परन्तु हमें शरीर से हटना पड़ेगा, जबकि इसी शरीर की मन बुद्धि से मैं समझता हूँ कि मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ. मैं आकाशवत हूँ या आकाश हूँ. अयं आत्मा का बोध शरीर द्वारा ही होता. बिना आकाश के मैं हिल भी नहीं सकता. यही आकाश बाहर भी है और अन्दर भी है. पर ये आकाश शब्द कितनों को समझ में आता है, कहना मुश्किल है. सद्गुरु द्वारा मार्ग प्रशस्त हो तब समझ में आएगा, वरना चिराग तले अँधेरा है. आपको नमन है, आपने 200% स्पष्ट कर दिया. धन्यवाद
सतगुरु औलिया बाबा, किंकर्तव्यविमूढ हूँ ।विश्वास ही नहीं होता अपनी किस्मत पर ।इतने उच्च कोटि के संत इस धरा पर विराजमान हैं ।अत्यन्त अहोभाव से सतगुरु के पावन चरणों में नमन 🌹🌹🙏🙏🙏🙏🙏🌹🌹
जो मेरे निराकार परमात्म स्वरूप को सद्गुरु द्वारा प्राप्त कर लेता है। वह भक्त मुझे अति प्रिय है। भगवान् को जानना ही भगती है।श्री कृष्ण उदय कन्हैया जी महाराज।
Self is not space. Self is Thoughtless Consciousness in which space exists. Space is discrete (accepted by Quantum Mechanics) and Consciousness is continuous, dimensionless and infinite. Space is held in Consciousness rather than the other way round.
जय भारत वंदेमातरम इंसानियत जिंदा बाद , बहुत अच्छा लगता है आप का प्रवचन बराबर सुनती हु मेरा जीवन सफल होगया है आप सब को चरण स्पर्श नमन, कबूल कीजिए महाराज जी,
Guru Siddhartha aulia ji sadar bandana. Apke videos me hamesha hi dekhti hun. Aur unse bahot prabhavit bhi him. Main Osho nadbrahma meditation abhi kar rahi hun. Aur bahot kam samay me kafi accha result mila hai. Par abhi pichle kuch dino se kafi naya spiritual experience mil raha hai. Dhyan atak gaya hai. To is bare mein apse koi guidance chahiye ho to kahan se mil sakta hain. Aur ap Gujarat kab ate hain? Meri apse mil ne ki bhi iccha hai. Jay ho
Sir, Osho rajnish ji ka utube pr English me ak vedio dekhne ko milta hai usme Osho ji kahte hai " there is no God" uske bare me kuchcha prakash dalne ki kripa kijiae.
ऐक संत बणी गगनमंडल के बीच मे झिल मिल झलकत नूर।झिलमिल झलकत नूर,सूर कोइ बिरला पाबे।।करे तत्त की खौज ,नहि चोरसी जाबे। सद गुरू मिले दयाल भेद सब उनसे पाबे।। करे संत की टहल,महल की खबर लखाबे। तुलसी मुरदा जब बने,जब पाबे गुरू पूर। गगन मंडल के बीच मे, झिलमिल झलकत नूर।।गूरू तो सब बनना चहतै हे,पर कोइ सिस नहि बनना चाहता, क्यो कि सद गुरु तीनो गुणो से परे होते हें।हमारी नजर मे कोइ बिरला ही एसा संत होगा जो तीनो गुणो से परे हो,धर्म ज्ञान ओर परमात्मा के नाम पर ,आज के संत ढेर सारा धन कमा रहे हे, जिनके पास अथाह धन होता हे बह संत रजौ गुणी होते हैं,सात्बिक गुण क्या होता हे, एसे संत कम दिखने मे आते हे, ओर एसै महापुरुषो केदीदार बहुत कम होते हे, क्यो कि ऐसे महापुरूषसिस्यो की खोज स्बयं करते हे ,ताकि बह सिस्य उनकी आज्ञा में चल कर अपन गुरु का नाम रोशन कर सके।