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What was the role of Chanakya in establishing the Mauryan empire? । CHANDRAGUPTA । INDIAN HISTORY 

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चाणक्य के बारे में जो किस्से सुनाए जाते हैं वे कितने सही हैं? चाणक्य ब्राम्हण था, जैन था या कुछ और? क्या सचमुच में उसने चंद्रगुप्त की खोज की थी, उसे सम्राट बनवाया था? क्या अर्थशास्त्र नामक ग्रंथ लिखने वाला कौटिल्य भी चाणक्य ही था? ब्राम्हणवादी चाणक्य को महिमामंडित क्यों करते हैं? जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता एवं इतिहास के जानकार प्रो. राम पुनियानी से प्रो. मुकेश कुमार की बातचीत-
How true are the stories told about Chanakya? Was Chanakya a Brahmin, a Jain or something else? Had he really discovered Chandragupta, made him emperor? Was Kautilya, who wrote the book Arthashastra, also Chanakya? Why do Brahmins glorify Chanakya? Renowned social worker and history expert Prof. Ram Puniyani to Prof. Mukesh Kumar's conversation-
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28 сен 2024

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Комментарии : 1,1 тыс.   
@SPSINGH-qw8el
@SPSINGH-qw8el Год назад
सम्राट अशोक के शिलालेख , बौद्ध धम्म उपदेश के स्तूपों पर धम्म लिपि में कहीं पर भी चाणक्य / कौटिल्य का कोई वर्णन नहीं मिला है । यदि ये आदमी इतना महत्वपूर्ण था तो सम्राट अशोक के समय के मिले पुरातत्व प्रमाणों में क्यों इसका उल्लेख नहीं मिलता ।
@ayushind27
@ayushind27 Год назад
Ish hisab sadar Vallabhbhai Patel k naam pr na major port, airport, railway station congress k time m itna nhi mil lega iska mtlb nhi wo the hi nhi ya or unka major contribution tha nhi Amit Shah hi ko dekh lo modi jeeta akela to nhi h Jitne bhi india m pm bne akele dum pr to Nhi bne unko kisi ka support to hoga unka naam kbhi sunte ho Document rhe honge documents jlane k baad khna bole Kuch deeno m ye professor dadu chle jae ge lekin inki liye likhi gyi kitabe baate to rhengi fir inko 50 saal proof Krna muskil ho jaega ye asa adami tha bhi na nhi Ya tv pr aane views paane k liye kuch bhi bolt dete the
@ayushind27
@ayushind27 Год назад
Nalanda vishwavidyalay ko jalaya usk documents ko bhul jaoge , ou tm khudi updesh likhe hue history nhi likhi h ush pr Modi ne parliament bnawaya us pr Amit Shah ka naam nhi h Phle pta kro ye angrej log to nalanda ko nhi maante Ashok ko nhi maante the
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय SPSINGH🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@SunilKushwaha-ov3ys
@SunilKushwaha-ov3ys Год назад
gobar aur mootra bhakto ko ni smjha sakte bhai...arthashatra sanskrit me likhi gyi h, jo ki aisi lipi 7 c.e me aayi, to kaise ye purani h...
@ad15626
@ad15626 Год назад
​@@SunilKushwaha-ov3yschaanakya ne chandrasen guptvans pr likha tha sanskrit me joki dhariwal jaat tha
@hemantk.sharma2541
@hemantk.sharma2541 Год назад
उस किताब की कार्बन डेटिंग कराई जानी चाहिए ताकि सच दुनियाँ के सामने आ सके
@rnmishra7001
@rnmishra7001 Год назад
Nahi hui hogi? Yeh to uas library se patta karna chahiye jahan padulipi rakhi hai.
@amandmx
@amandmx Год назад
@@rnmishra7001 wo fake h devnagari lipi me likhi h jo 9th century me aai
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
@@rnmishra7001 आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@SunilKushwaha-ov3ys
@SunilKushwaha-ov3ys Год назад
​@@amandmxsahi bola
@siddharth2315
@siddharth2315 Год назад
'मुद्राराक्षस' नामक नाटक में पहली बार चाणक्य को गढ़ा गया, 1875 के आसपास लिखा गया एक बहरामण द्वारा
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय siddharth🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@harshity4414
@harshity4414 Год назад
मुद्रा राक्षस विशाखा दत्त ने 500AD के आस पास लिखा था ।।। इस मैं चंद्रगुप्त 2 के बारे मे लिखा है.... अपनी जानकारी थोडा अपडेट करे जातिवाद बहुत भरा है दिमाग में अपके
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
@@harshity4414 हर्शितजी ऊसके दिमाग में जातिवाद है या सत्य है या गलत जानकारी है यह मैं बता नहीं सकता. पर ईसका दोष निःसंशय आदरणिय मोदीजी और ऊनके सरकार को दे सकते है. 2012 से लेकर मई 2022 तक मैंने 1400 प्रार्थनापत्र दिये है सभी ऐतिहासिक, धार्मिक और जातीय विवादोंका समाधान करने के लीये... समाधान करने के उचित तरीके के साथ. पर आदरणिय मोदीजी की सरकार से कोई प्रतिसाद नहीं. आप मेरी काॅमेंट पढे ऐसी आपसे प्रार्थना है. 🙏. अवधूत जोशी
@siddharth2315
@siddharth2315 Год назад
@@harshity4414 कुछ भी......कुछ भी गपोड़ना, ये तो बाभनों का काम है
@harshity4414
@harshity4414 Год назад
@@siddharth2315 कभी गूगल का भी यूज करो ज्ञान मै थोड़ा इजाफा करो
@raghvendrasingh9976
@raghvendrasingh9976 Год назад
आप दोनों बंधुओं की वार्ता से एक बात स्पष्ट है कि चाणक्य अगर बौद्ध या जैन है तो उसका अस्तित्व स्वीकारा जा सक्ता है और यदि वह ब्राह्मण है तो वह गढ़ा हुआ चरित्र है। देश को गुमराह करने के लिए आप दौनों महापुरुषों का धन्यवाद।
@PREETSINGH-mi6ic
@PREETSINGH-mi6ic 3 месяца назад
बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद भक्तों के लिए
@debendrasuar9854
@debendrasuar9854 2 месяца назад
Ye log khud ki bap ko nahin mante. To chanakya kya manenge.
@kshirodrasunaspeaking1574
@kshirodrasunaspeaking1574 Год назад
Chanakya is a man made character,it is not real but fantasy thank you professor Puniyani sir
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@TheSmartEnglish
@TheSmartEnglish Год назад
Read the history and his book you will know the truth. According to you even the science math doesn't exist in this world. This is a leftist ideology to abuse the great man of india.
@ASFACT2805
@ASFACT2805 Год назад
dekh le dhyn se
@kumarkk532
@kumarkk532 Год назад
Sorry Buddha is fictional character but Chanakya was real .
@razm3610
@razm3610 Год назад
@@kumarkk532 :):D Ram, Shiva, and Krishana are fictional too....Buddha was indeed real :)
@DineshKumar-pq5mc
@DineshKumar-pq5mc 6 дней назад
अति सुंदर!!👍👍👌👌मुकेश जी आपने और श्री पुनियानी जी ने बहुत सटीकता और तथ्यात्मक रूप से चाणक्य के भ्रामक और मनगढ़ंत चरित्र को उजागर किया है!!! ❤❤
@ASHOK251058
@ASHOK251058 Год назад
अशोक के समय तक वर्ण व्यवस्था का कोई प्रमाण नहीं मिलता
@priyammaurya6404
@priyammaurya6404 Год назад
Bhai vo khud bole matsi silalekh men ki main usi kul men paida hua jisme Budh paida hue budha Shakya the aur ashok Maurya-shakya
@KESARIYA2023
@KESARIYA2023 Год назад
बहोत लोग आये और चले गए, आप भी काल के कपाल में चले जायेंगे, हिंदू और उनकी संस्कृति ऐसे ही चलती रहेगी.... फिल्हाल आप जलते रहिये....
@debendrasuar9854
@debendrasuar9854 2 месяца назад
Ekdam sahi bole. Dhanyabad
@dushyantsingh5759
@dushyantsingh5759 2 месяца назад
बहुत सही भाई जी👍🙏 धन्यवाद ।
@TheYuvrajwagh
@TheYuvrajwagh Месяц назад
बाबासाहब डॉ अम्बेडकरजी ने १९५६ में कहा था कि सही इतिहास पता चलने पर इस देश के सभी लोग बौद्ध धर्म को अपनाएंगे, मतलब बौद्ध धर्म में घर-वापसी कर लेंगे। और ब्राह्मण सबसे आखिर में बौद्ध धर्म अपनाएंगे। और बाबासाहब की भविष्यवाणी आज तक कभी गलत नहीं हुई है। वैसे भी तुम्हारा तथाकथित हिंदू धर्म पुरा बुद्धिज़्म के पुरातात्विक ढेर पर बसा हुआ है। हम भी देखते हैं वह और कितने बालू की भीत पर खड़ा रहता है। 😅
@KishanHarisingh
@KishanHarisingh Месяц назад
1001%√ सही है भाई
@YTry1
@YTry1 21 день назад
dhamr toh rahega par jo sachaai hai vo toh sthapit hoga hi hoga.... chahey tum jaise manuvaadi jitna chupana chaho chupa lo... par sachaai toh bahar aayegi hi... chahe dharma rahe ya na rahe.. koi fark nahi padta
@ramdayalmishra1006
@ramdayalmishra1006 Год назад
आप लोग पिछला जन्म याद नहीं कर पा रहे हैं उस समय मुकेश कुमार घनानंद और पुनियानी चाणक्य था लेकिन इस जन्म में आप लोग इतिहास कार और पत्रकार के रुप में जन्म पा गए
@Lalitreigns
@Lalitreigns Год назад
सबूत दिखाने में फटती है क्या
@debendrasuar9854
@debendrasuar9854 2 месяца назад
Ekdam sahi.
@KishanHarisingh
@KishanHarisingh Месяц назад
😂😂😂
@Gayansagarchaman
@Gayansagarchaman Год назад
बहुत बढ़िया विश्लेषण हैं।
@shankul3032
@shankul3032 Год назад
Prof, राम जी के अलावा इतिहास के और जानकारों को भी बुलाया कीजिए।
@ushaangarakh522
@ushaangarakh522 Год назад
pro.vilas ji kharat ko bulaye.
@rahulmudgal6582
@rahulmudgal6582 15 дней назад
दूसरे इतिहासकार उनके मन की बात नही बोलेंगे ना।
@jagjitsinghgrewal6375
@jagjitsinghgrewal6375 Год назад
Thank you Mukeshji and Prof Puniyaniji for clearing the myth surrounding the non existent Chankya with well researched logics.
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय Jagjitsinggrewalji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@inderjeetgiroh1814
@inderjeetgiroh1814 Год назад
If Bharat has to become again World Leader, we have to abolish Castes, like under Article 17 of the Indian Constitution Untouchability has been Abolished. We have to create scientific attitudes among our citizens.
@bpp827
@bpp827 Год назад
@@avadhutjoshi796 pandit to hamesha ambedkar ke bare me.. negetive hi bole hai..🤣🤣
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
@@bpp827 ईसमें हसने जैसा क्या है? कोई कॉमेडी शो तो है नहीं. मैं धार्मिक और सामाजिक विवादोंका समाधान ढूंढने की बात कर रहा हूं. और आप फालतू बाते कर रहे है. अगर पंडीत आंबेडकरके बारेमें नकारात्मक सोचते थे तो डाॅ.बाबासाहेब आंबेडकर भी पंडीतों के बारेमें वैसा ही नकारात्मक सोचते थे. ईसी को तो विवाद कहते है.
@AkhandJambudweep.
@AkhandJambudweep. Год назад
@@avadhutjoshi796 itna kissa khani likhne ki jarurat nhi hai.....hindu dharam jaisa kuch hai nhi vo srf brahmin baniya dharam hai....puri treh unhi k ayaashi or mjje k liye banaya gya ha ....srf or srf iss desh ki political and econimical malai lutne ko
@sjb-mx8ly
@sjb-mx8ly Год назад
आज भी जब कोई ब्राम्हण अकबर से होशियार बीरबल बताने की बात करता है तो बहुत हँसी आती है ।
@rafiqquadri4588
@rafiqquadri4588 Год назад
श्री राम पुनियाणी जी श्रेष्ठ हैं ।
@bhushandhabekar2316
@bhushandhabekar2316 Год назад
in which script it was written?
@thetramp785
@thetramp785 Год назад
1905 में प्राप्त ताड़पत्र पर अंकित अर्थशास्त्र मिली। क्या ताड़पत्र की कार्बन डेटिंग की गई है? यदि हां, तो पांडुलिपि कितनी पुरानी है? भाषा-विज्ञान के अनुसार उसकी लिपि और भाषा कब की सिद्ध होती है?
@sachidanandsingh2936
@sachidanandsingh2936 Год назад
प्रो राम पुनियानी और मुकेश कुमार जी पहले ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर जिसमें पुरातात्विक प्रमाण (खुदाई,शिलालेख,गुफा लेख), विदेशी यात्रियों के यात्रावृतांत का उल्लेख हो , कि चंद्रगुप्त मौर्य के समय तक तथाकथित आर्यों का जम्बूद्वीप में आगमन हो चूका था, साबित कीजिए।
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@cprakashsharma8116
@cprakashsharma8116 Год назад
यानि आपके मुताबिक चाणक्य थे ही नहीं। अगर थे तो बहुत बुरा अर्थशास्त्र लिखा। चंद्रगुप्त गरीब और पिछड़ा तो था, मगर बिना चंद्रगुप्त की मदद के ही चक्रवर्ती बन गया। धन्य है आपलोग। अपना एजेंडा चलाने के लिए कुछ भी
@abhinavsharma1740
@abhinavsharma1740 Год назад
Mukesh sir aapne aaj dhananand ke bare me itni batayi or prof. Punyani itani sari chije chankya ke bare me uska source/ book bataye hamara knowledge badhega 🙏 It's seems that you were eye witnesses Historians of maurya Era.
@rnmishra7001
@rnmishra7001 Год назад
Bhayankar roop se har subject par, khali ithihas nahi kunthith soch pakachpaati vichardhara hai.bhayankar roop se ghamand ki bas mai hi sab Jaanta hun , baki dusare kuch nahi jaante. Dusaro ke vicharon soch ko le kar bhayankar durbhavana . Politics mai to pakachpaat chal Jaata hai, baki aur vidhao jaise khel kala dharam vegerha mai intolerance nahi chalti. Jaativaadi soch se jaativaad ka yeh virodh karte hai. Khule dimag khuli soch gayab hai.
@ImmatureBaller8010
@ImmatureBaller8010 Год назад
Bhai aisa bola jaisa ye sir 100 percent sure ho. Seedha ek insaan ko he mangadth bata diya...brahmano se itna nafrat....brahman kb aaye ye puchte h log toh phir shri krishna pe bhi koi praman mangne lagenge 😢
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय abhinavsharmaji 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@malvindersingh6828
@malvindersingh6828 Год назад
Mukesh Kumar ji - Thank you for bringing such important and historical topics to public.
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीयmalvindersinghji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@civilofficer8636
@civilofficer8636 Год назад
Tujhe chutiya bna rha
@soulin8520
@soulin8520 Год назад
He is profesor of bio medical , not history . There is no value of his openion about any historical event .
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
@@soulin8520 You are totally wrong. Pl tell me about a historian. What is historian?
@soulin8520
@soulin8520 Год назад
@@avadhutjoshi796 I have been following Mr. Ram Puniyani almost 6 years . Non professional history is referred to the analysis taken by the persons who do not have the fact of legitimacy and keep to speculate on all matters. It's easy to detect a professional historian from an amateur or a non professional person . He is master player in distorting the history and glorifying the mughals and other invaders . William Dalrymple ( historian and author ) writing about the Islamic invasions of India….” Practically everything was eradicated in the cultural holocaust that accompanied the first Turkic invasions of northern India in the thirteenth century. In these conquests an enormous corpus of Buddhist knowledge was lost through Islamic iconoclasm in an orgy of wreckage comparable to the burning of the Alexandrian Library, or the destruction of centers of learning . We ignore history at our own peril…enabling pretenders and apologists to become ‘experts’ and to deliver their opinions as fact…please spare us
@satindrapaulsingh9329
@satindrapaulsingh9329 Год назад
Book published in 1905 may be concoted.This book may have been planted by the British Empire in connivance of the Brahmins to prove the superiority of this caste.
@rnmishra7001
@rnmishra7001 Год назад
Aise to mohan jhodro harrapa sindhu ghati ki sabhayata ke bare mai 100 saal pahele patta laga. Aegrejo ne hi khudi karwai. Khajraho ka bhi patta 150 pahele hi chala.Ashok ke baare mai 100 saal pahele hi patta laga. Sare dharmik garanth apne mool roop mai hai kaya availble. Jayadatar viewers including me ya to eatne well read nahi ya jo pade uasse bhul gaye hai. Yeh log easi ka fayada uttathe hai. Pada enhone bhi nahi. Bas exam. Point of view se kuch answer rat liye.
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय satindrapaulsinghji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@mukulkaushik22
@mukulkaushik22 Год назад
A. If Chanakya didn't write Arthshastra then who did? Prof Puniyani conveniently discredits Chanakya. But at the same time he claims that there is no evidence for or against Chanakya writing Arthshastra, so I would only suggest that till you find conclusive evidence there is no point in discrediting Chanakya and exhibiting anti Brahmin prejudice. B. Prof. Puniyani and the comperer both conveniently forget that story of Chanakya is more about an ascetic teacher and an ordinary person whom he mentored as a student and not about a Brahmin and a lower caste person. Also in this entire discourse I didn't here the word teacher even a single time. C. If Chanakya has been really propped up by upper caste brahmins then why did he became a Jain during his last days?.....Some points to ponder!
@amarbhengra4038
@amarbhengra4038 Год назад
At first you read the history of language of that period and remember Chanakya was famous for his Sanskrit language according to Brahmanavaad knowledge. But Mouryan era was with Pali language, mind it.
@yadunathyadav8580
@yadunathyadav8580 Год назад
चाणक्य एक काल्पनिक चरित्र है जो ब्राह्मण वाद की श्रेष्ठता के लिए गढ़ा गया है।
@veerSingh-qg3qp
@veerSingh-qg3qp Год назад
Arthshastr kisne likha phir
@veerSingh-qg3qp
@veerSingh-qg3qp Год назад
Kal tum kahoge ki bhagwan krishna bhi kalpanik the tab
@yadunathyadav8580
@yadunathyadav8580 Год назад
@@veerSingh-qg3qp he was also.
@rameshgairola5281
@rameshgairola5281 Год назад
तो चंद्रगुप्त भी काल्पनिक था
@Indian-rn7br
@Indian-rn7br Год назад
​@@rameshgairola5281 chandragupt morya ka khud ka likha shilalekh milta he vo bhi Pali bhasha me or chanyak ka koi jikar nhi usme.
@jaibirkhicher8179
@jaibirkhicher8179 Месяц назад
Salute aap dono ko
@AslamKhan-gb8ho
@AslamKhan-gb8ho Год назад
Excellent observation and analysis.
@rammaheshmishra1117
@rammaheshmishra1117 Год назад
यह वार्ता हमने पूरी सुनी। बेहद दु:ख हुआ कि हमारे देश के विद्वान कितना नीची सोच के हो चुके हैं!!! और वह वैचारिक निम्नगामिता बढ़ती ही जा रही है। यह इस ऋषि राष्ट्र के लिए वास्तव में ज्यादा चिंताजनक है। इंटरव्यू लेने वाला व्यक्ति और देने वाला विद्वान किसी वर्ग विशेष के प्रति घृणा से भीतर तक भरे हुए हैं। कहां से लाते हैं आप इतनी घृणा? ऋषियों के इस देश के कोई माता पिता इस स्तर की घृणा के संस्कार बच्चे को नहीं दे सकते, यह हमारा स्पष्ट मत है। 18 मिनट की वार्ता तक पहुंचते पहुंचते हम सोच रहे थे कि चाणक्य और चंद्रगुप्त के काल की इन बातों, शंकाओं के लिए कहीं आप दोनों आरएसएस और भाजपा को दोषी न ठहरा दें। तभी अचानक इंटरव्यू देने वाले विद्वान ने वही प्रसंग शुरू भी कर दिया। हम तो ठहाका लगाकर हंस पड़े। एकतरफा छोटी सोच की पराकाष्ठा देखकर मन क्षुभित हुआ। ओफ्फो!!! हे राम! हे प्रभु! ऐसे विद्वानों की विद्वता से, महान परिवर्तनों से गुजर रहे, इस देश को बचाएं। आप दोनों को सुनकर अचरज हुआ है। इंटरव्यू लेने वाला भाई जब सवाल करता है तब इस तरीके से करता है कि उसे उसी हिसाब से ही उत्तर मिले। यानी उत्तर को भी स्वयं ही सुना देता है, कि इंटरव्यू दाता उनके कथन की ही पुष्टि कर दे। भारत के महापुरुषों की त्याग तपस्या को भी ऐसे गंदे चश्मे से देखना बहुत चिंताजनक है और निंदाजनक भी। मैं इस साक्षात्कार को अब तक सुने सारे साक्षात्कारों में सबसे घटिया स्तर का मानता हूं और इसे देश को भारी नुकसान पहुंचाने वाला घोषित करता हूं। परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना करता हूं कि एकपक्षीय सोच रखने वाले ऐसे विद्वान इस देश से उत्तरोत्तर कम हों।
@NeerajKumar-uu3ym
@NeerajKumar-uu3ym Год назад
ऐसा है पण्डित जी कि आपकी होशियारी अब पकड़ी जाने लगी तो आप बौवा रहे हैं। केरल में शुद्र लड़कियों के स्तन पर आप ही ने टैक्स लगाए थे ना???? बोलो झूठ है???इसका भी प्रमाण चाहिए क्या? आपकी जात ने भारत को नस्तोनाबुत कर दिया। वर्ण व्यवस्था क्या शूद्रों ने बनाई??? लोगों को गुलाम बनाकर खूब मक्कन खाया है अपने जमाने में अब धीरे धीरे भेद खुल रहा है तो मिर्ची लग रही है।
@GURBANIKATHA6766
@GURBANIKATHA6766 3 месяца назад
Theek hai *BRAHMAN DEVTA*
@dashrathkhatwani7644
@dashrathkhatwani7644 Год назад
राम पुनियानीजी ,कृपया सिंध के ब्रामण राजा दाहिरसेन के इतिहास के बारे बताये..इंतजार रहेगा। .
@biomind
@biomind Год назад
Chachnama padho kyase Sindhi Raj ki Rani Ko pata ke khud Raja ban gya
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय @dasharathkhatawani7644🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@indrapokharel1845
@indrapokharel1845 Год назад
Ram puniyani is planted by anti Bharat
@ASHOK251058
@ASHOK251058 Год назад
चंद्रगुप्त के समय संस्कृत भाषा थी ही नहीं। 😁😁😁😁
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय ASHOK🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@ASHOK251058
@ASHOK251058 Год назад
@@avadhutjoshi796 आपका प्रयास सराहनीय है। हर प्रकार का संभव सहयोग रहेगा।।अगर हम एक स्वस्थ समाज का निर्माण करते हैं तो इससे किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वैसे चाणक्य के बारे में व्यक्तव्य किसी के विरोध में नहीं है। न ही किसी विचार से प्रेरित है। यह शुद्ध रूप से शैक्षणिक है।🙏🙏
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
@@ASHOK251058 धन्यवाद सर. आपका चाणक्य के प्रती अगर नकारात्मक विचार है तो भी स्वागत है. मैं ऊसे विवाद के रूपमें देखुंगा. अशोक251058 के प्रती कतई नकारात्मक नहीं रहुंगा. मेरा ईसपर अनुभव बताता हूं. सच्चे आंबेडकरवादी, सच्चे हिंदू और सच्चे धर्मनिरपेक्ष सभी देशव्यापी चर्चा का समर्थन करते है. दोगले विरोध करते है....क्या जरुरत है ईसकी. देखीये सर ऐसे विरोधाभासपर हम समाधान निकालेंगे तो हम सच्चे देशभक्त. और संविधान भी ऐसी शास्त्रीय सोच की बात करता है. आप देशव्यापी चर्चा कि बात लोगोंसेभी साझा करना ऐसी आपसे प्रार्थना है. ईसीसे एक सामूहिक इच्छा बन सकती है. 🙏. अवधूत जोशी
@ASHOK251058
@ASHOK251058 Год назад
@@avadhutjoshi796 पुनः निवेदन है श्रीमान चाणक्य या किसी के प्रति नकारात्म या सकारात्मक का प्रश्न ही नहीं है। मात्र इतिहास को निरपेक्ष भाव से समझने का प्रयास है। नए भारत के निर्माण में अंबेडकर का बहुत बड़ा योगदान है। लेकिन मैं अंबेडकर तक ही सीमित नहीं हूं।🙏
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
@@ASHOK251058 धन्यवाद भाईसाब. मैंने नकारात्मक और सकारात्मक कि इसलीये बात की क्यों की.... मेरी कॉमेंट आपके काॅमेंट के संदर्भमें है ऐसा आपको लगा. और इसलीये आपने ऊसका स्पष्टिकरण दिया. अगर वैसा नहीं है तो ऊसे हम भुल जाते है. एक सर्वसाधारण बात कहता हूं. मैं किसीके कॉमेंट के संदर्भमें विचार नहीं रखता. बस मैं ने जो काम हाथमें लीया है ऊसकी जानकारी देता हूं. मैने लीखा है की ईन विषयोंपर चर्चा के लीये खास प्रणाली विकसीत की है. और ऊसी के अंतर्गत मैं चर्चा चाहता हूं. और वह बात सरकार के आशीर्वाद से ही हो सकती है. तो किसी के साथ चर्चा की कोई संभावना है ही नहीं. अब बात डॉ. आंबेडकरसाब या किसी और के देशके लीये कीये कामोंकी. ऊसमें मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है. वह राजकीय पक्ष देखे. मेरा विषय है ईतिहास जाती और धर्म विषयक विवादोंका स्थायी समाधान. जो सरकार मेरी मदत करेगी वह सरकार मेरे काम की. वैसे 2015 से मैं सरकार के आशीर्वाद का हकदार हूं. पर नहीं मीली मदत. तो नाराजी है... तीव्र नाराजी है. पर फीरभी सरकार का न्यौता मिलेगा तो खुदको भाग्यवान समझूंगा. जबतक ऐसा होता नहीं तबतक आप जैसे यू ट्यूबर्स के साथ देशव्यापी चर्चा कि बात साझा करूंगा. मैं एक सामान्य नागरिक हूं. मेरे बसमें है ऊतना श्रद्धापूर्वक करता रहूंगा. 🙏. अवधूत जोशी
@satishurdu9818
@satishurdu9818 Год назад
Chander gupat morya K time jo unani vidvaan, rajddot magasthneez bhi isi darbaar mei hi tha, jis ne morya raaj par apni kitaab indica likhi thi, jo kitab aaj bhi World ki universeties mei as history parrhayi dikhayi jaati hai. Us kitaab mei kahin bhi chankya ka zikar nahi hai. Aur us time sarkari Bhasha pali prakrit thi. Lekin brahmnwaadi chankya ko Sanskrit ka mahan guru btaa rahay hain. Asl mei us time morya dynasty ka mahan vidvaan mahan Guru chaper naam kay thay. Brahmnwadion ne chaper ki jagah chankya bhar diya
@aurangzebansari3007
@aurangzebansari3007 Год назад
, very nice discussion
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@pseudoscientist2188
@pseudoscientist2188 Год назад
सर जी सन 1905 में जो पांडुलिपि मिलीं थीं वह कौन सी ‌ भाषा एवं लिपि में थी । चूंकि बात मौर्य काल की हो रही हैं तो उस समय जो भाषा और लिपि प्रचलित थी वह पाली पाकित (प्राकृत)। भाषा थी और लिपि धम्म लिपि थी । अब प्रश्न उठता है कि जो भी पांडुलिपि प्रस्तुत की गयी उसकी वास्तविकता और विश्वसनीयता पर किन तथ्यों, साक्ष्यों और प्रमाणों को स्वीकार किया गया था। इस पर थोड़ा प्रकाश डालने की कृपा करें क्योंकि गपोड़ पंथी तो हम बहुत सुन चुके हैं।🌹🙏🙏🙏🌹
@dhiraj7m
@dhiraj7m Год назад
They tried the same with chattrapati shivaji maharaj. Telling dadaji kondhav an brahmin as shivrai teacher.
@nishnatbiswas9245
@nishnatbiswas9245 Год назад
Well said
@karamjitkaur4648
@karamjitkaur4648 Год назад
Very nice explanation Brahman BJP VHP Bajrang dal 🙏🙏🙏🙏🙏
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@0OO369BfF-_0O
@0OO369BfF-_0O Год назад
Never existed personality is so called chanakya, is known by many . Not a new thing today.
@earthearth80
@earthearth80 Год назад
Chankya is real King 3000 salo me unse Bada koi nhi
@Wellwisher295
@Wellwisher295 Год назад
Chanakya chadragupt ke pass kam karta tha bas yehi sachai hai. Yeh sab brahmins ka failaya hua hai
@ImmatureBaller8010
@ImmatureBaller8010 Год назад
​@@Sauravkumar-kt1tdtum kyu mante ho brahman ki baat aur nahi mante ho toh tumhe kyu dikkat ho raha hai...
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीयhassannaveedji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@69bungo
@69bungo Год назад
I fully agree with Professor Puniyani
@akashsingh-oe2xt
@akashsingh-oe2xt Год назад
Sir what are archaeological evidence of vedas in 200 BC Oldest vedas manuscript is of 1464AD and that language of vedas classical sanskrit written in devanagari and Devanagari came into existence after 8-9 th century AD How we historians can fit this before 2500 years
@workingimage4434
@workingimage4434 Год назад
नालंदा मे ३लाख से ज्यादा बुक्स जल गई।
@ikumar7827
@ikumar7827 Год назад
Gandhi ya maulana Azad nahi hame Ambedkar chahiye.....jai Bheem
@mohansingh5000
@mohansingh5000 Год назад
Great analysis
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय mohansingji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@Bhartiya391
@Bhartiya391 Год назад
Chaanakya ( kautilya) ek kalpnik patra jaise ram, krishn ved, puran etc.
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय @up.nivasi7286🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@elevenstarclub
@elevenstarclub Год назад
Chanakya sabse mahan hai..
@laxmiprasad2304
@laxmiprasad2304 Год назад
भारत एक खोज मै भी यह वर्णित है, क्या नेहरू जी ने इस पर ध्यान नहीं दिया होगा?
@bapparawal9709
@bapparawal9709 Год назад
कल का बुद्ध आज का केजरीवाल। एक लोगों को दुःख दूर करने का झांसा दिया। दूसरे ने मुफ्त में बिजली पानी टॅक्स मुफ्तखोरी का झांसा दिया।
@Truthseeker838
@Truthseeker838 3 месяца назад
Tune dukh door kar diya???
@sahilyadav2141
@sahilyadav2141 Год назад
Baah baba saheb ke pyare baccho lage raho 😂😂😂😂😂😂
@harishchandrasingh3535
@harishchandrasingh3535 Год назад
मुकेश जी --मेरे सवाल का जबाव मुझे नहीं मिल पा रहा.
@KESARIYA2023
@KESARIYA2023 Год назад
1905 में ही aayan attacks की थ्योरी आई थी, उसको आँख बंध करके सच मानते हैं puniyani जैसे लोग
@thegoldberg8470
@thegoldberg8470 Год назад
Munna saboot mane jate hai 😂😂 gappe nhi
@KESARIYA2023
@KESARIYA2023 Год назад
@@thegoldberg8470 .... Bhai... Sahab . Sabooot kisi ke paas kuch nahi hai.... Aur tere paas to kuch nahi....
@SurinderKumar-i2k
@SurinderKumar-i2k Месяц назад
What about texts like 'Mahavamsa' of Buddhist people, 'Parishishtaparvan' of Jain people and 'Kathasaritsagara' of Kashmiri origin, which all have the mention and story of Chanakya?
@ashokmittal4732
@ashokmittal4732 Год назад
Sir,THANKS FOR THIS SHOW,ALEAST WE ARE WATCHING SOMETHING ELSE OTHER THAN MODI,RAHUL,24 ELECTION,SAME EXPERTS EVERYWHERE ,PLEASE CARRY ON.
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय ashokmittal🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@chandrabhushan4753
@chandrabhushan4753 Год назад
Sound thik kijiye … Ram Puniyai ji ka aawaz hi bahut dheere aata hai video me .
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय chandrabhushanji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@goverdhandhari5282
@goverdhandhari5282 Год назад
चलो आगया एक और कम्युनिस्ट लिब्रांडू ।
@user-wd4yc1mb2f
@user-wd4yc1mb2f Год назад
Thanks for shared
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@FANTUSHCOMEDY
@FANTUSHCOMEDY Год назад
चलो मान लेते हैं सबकुछ सही था, मैं तेरे बात में भी आ गया था परन्तु अंतिम में प्रोफेसर जो बोल दिया, सब बेकार कर दिया
@ashvanikumar6305
@ashvanikumar6305 Год назад
Inhe satya hindi valo ko muglo se koi praman nhi chahiye but chanakya ki chahiye best comedy channel till now on you tube
@rajkumarsonipat6815
@rajkumarsonipat6815 Год назад
Shri man जी चन्द्रगुप्त का सही नाम चचंदर h jo maha। पदमंद ka putr h our mura ka beta h chanke ka apman महापद्मनद ke time huva tha maha padmand ne apne pale bete ko Raja bna deya tha our chander कोसेनापति jo chandergupt koape peta se jlne laga our is bat ko chaneke ne फायदा उठा या chanke के सद्यंत्र से राजा महापदमानद कोजाहर देकर पुत्रो shet mrwya our bad me chande he bha jeskao chaneke ne chander महापदमानद ko kha ke tum apni maa ka gotr lgao jo mura ka morya bana deya dnand our chander dono ek peta ke putr h per maa alg thi Our jab sekander ne jab bhart per hamala karna cha us time महापदमंद ka raj tha jab maha padmand ko is bat ka pata chala k 14:20 e sekander hamla krne wala h to maha padmnd ne apna dut beja our sekandr ke pass ek patr dekar beja ke seknder tu ud क्यों करना चाहते हो rupe kele jmen के लिए दास दासेयो केलिए hati godo ke le मैं तुम को सब kuh duga per ud mat kro kyo की लड़ाई से bhut नुकसान हो सकता है में तुम से डर kr nhi khe रहा हुं। क्यो की लड़ाई दोनो तरफ नुकसान होगा। तुहारी लडाई अब बहुत बड़े राजा से h jo tmne mere बारे जानकारी सही nhi h me har treke se तुम से ten गुना ज्यादा हूं hahe den dolt ho sena ho ओर में तुम्हें एक sla our deta हु
@rajkumarsonipat6815
@rajkumarsonipat6815 Год назад
के तुम मेरे मित्र बन जाओ में पास जो भी है वह सब kuh आपका और तुम्हारे पास जो कुछ h vo Mera । ager fir bhi Tum यह smeg te ke me dar kar khe rha hu to tum glt ho।agar tum ladne ka he socha h to me our sirf तुम ldoge ou koe nhi Jo getega वही dno jge Raj krega mange h to fesla ho जाए। सिकंदene दोस्ती की और अपने मंत्रि सालकुकुस की पुत्री के सदी के महापद्म से तब सेकंड को महान saken der को ऊ pa de
@vpsbhati7938
@vpsbhati7938 Год назад
छोड़ो सब कुछ। चीन से पैसा बराबर मिल रहा है ना। Just chill.
@mohammaddanish731
@mohammaddanish731 Год назад
Chanakya ya kautilya thae maurya period me to os samay ke stoopa ya kisi abhilekho mey kyo nahi mila.
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय Mohammaddanish731🙏! भारत में इतिहास एक बहुत ही चिंताजनक विषय है। जब भी कोई इतिहास पर भाषण देगा तो कई लोग उसे झूठा कहेंगे। स्थिति ऐसी क्यों है? स्वतंत्रता संग्राम काल में भारतीय हिन्दू धर्म को लेकर विभाजित थे। परम्परागत हिन्दू, हिन्दू धर्म के पक्षधर थे। महात्मा फुलेजी, डॉ. अम्बेडकरजी और पेरियारजी जैसे समाज सुधारक हिन्दू धर्म के विरोधी थे। वे हिन्दू धर्म को निम्न धर्म समझते थे। इसलिए उस काल की सत्तारूढ़ हिंदू पार्टी, कांग्रेस पार्टी ने नेहरूजी के नेतृत्व में हिंदू धर्म की स्थिति पर एक पवित्र समझौता अपनाया। और इसलिए उनकी सरकार में हिंदू धर्म के दो चरमपंथ शामिल थे.... वह हैं माननीय डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकरजी और माननीय शमाप्रसाद मुखर्जी (सावरकरजी के शिष्य और वर्तमान भाजपा के पिता) समय के साथ, चीजें गलत हो गई हैं।जिस व्यक्ति ने देश को एकता के सूत्र में पिरोया, वह अब गद्दार है।सावरकर को पाठ्यपुस्तक में शामिल करने और नेहरू को हटाने की हालिया घटना भी इसी हास्यास्पद प्रवृत्ति का हिस्सा है। मैं बुनियादी मुद्दे पर इस विरोधाभास को दूर करने के लिए एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए सबसे सही तरीका बता रहा हूं। इस विरोधाभास ने जाति या धर्म या राजनीतिक झुकाव के आधार पर इतिहास के विभिन्न संस्करणों को जन्म दिया है। ऐसा इतिहास बहुत गंभीर धार्मिक और जातिगत विवादों का कारण बन रहा है। इसने हमारे देश को मूर्ख राष्ट्र में बदल दिया है। हमें इतिहास पर एकमत होने की जरूरत है. इतनी बुनियादी बात हम सुलझा नहीं पाते और दावा करते हैं विश्वगुरु होने का. हकीकत तो यह है कि मूर्खता में हम विश्वगुरु हैं। मूलतः इतिहास एक शैक्षणिक विषय है। लेकिन भारत में यह एक राजनीतिक उपकरण बन गया है।इसे अकादमिक विषय बनाने के लिए हमें संघर्षों, विरोधाभासों का समाधान करना होगा। मैं इतिहास, जाति और धर्म से संबंधित विवादों को सुलझाने के लिए देशव्यापी चर्चा करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन करना शुरू कर दिया और अब सरकार के आशीर्वाद से मैं देशव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं।सरकारी सहयोग जरूरी है. मैं देश के हर नागरिक को इसमें शामिल करना चाहता हूं. मैंने आवश्यकताओं के अनुरूप चर्चा की एक विशेष प्रणाली विकसित की है। यह निम्नलिखित बिंदुओं पर उचित ध्यान देता है 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि 3) हमारे देश की विशाल आबादी जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य का पता लगाने में सक्षम है। कृपया राष्ट्रव्यापी चर्चा के विचार का समर्थन करें और साझा करें। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@Iqbalkhan-u6b
@Iqbalkhan-u6b Месяц назад
A number of pushroom scholors hv consensus tht Chanakia belonged to Shahbaz Ghari avillage of Mardan (Pukhtonkhwa). There is a village on his name "Chanak Dheri".
@bharatbambhaniya3544
@bharatbambhaniya3544 Год назад
काल्पनिक चरित्र है।
@ajitkatariya4673
@ajitkatariya4673 Год назад
Not a single solid scientific proof or evidence of the existence of the said imaginary patra
@RamSingh-kq1hg
@RamSingh-kq1hg Год назад
Chankya k vicharon se hi desh brbad hush Nd kngla hua h..
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय RamSingh-kq 1hg🙏! भारत में इतिहास एक बहुत ही चिंताजनक विषय है। जब भी कोई इतिहास पर भाषण देगा तो कई लोग उसे झूठा कहेंगे। स्थिति ऐसी क्यों है? स्वतंत्रता संग्राम काल में भारतीय हिन्दू धर्म को लेकर विभाजित थे। परम्परागत हिन्दू, हिन्दू धर्म के पक्षधर थे। महात्मा फुलेजी, डॉ. अम्बेडकरजी और पेरियारजी जैसे समाज सुधारक हिन्दू धर्म के विरोधी थे। वे हिन्दू धर्म को निम्न धर्म समझते थे। इसलिए उस काल की सत्तारूढ़ हिंदू पार्टी, कांग्रेस पार्टी ने नेहरूजी के नेतृत्व में हिंदू धर्म की स्थिति पर एक पवित्र समझौता अपनाया। और इसलिए उनकी सरकार में हिंदू धर्म के दो चरमपंथ शामिल थे.... वह हैं माननीय डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकरजी और माननीय शमाप्रसाद मुखर्जी (सावरकरजी के शिष्य और वर्तमान भाजपा के पिता) समय के साथ, चीजें गलत हो गई हैं।जिस व्यक्ति ने देश को एकता के सूत्र में पिरोया, वह अब गद्दार है।सावरकर को पाठ्यपुस्तक में शामिल करने और नेहरू को हटाने की हालिया घटना भी इसी हास्यास्पद प्रवृत्ति का हिस्सा है। मैं बुनियादी मुद्दे पर इस विरोधाभास को दूर करने के लिए एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए सबसे सही तरीका बता रहा हूं। इस विरोधाभास ने जाति या धर्म या राजनीतिक झुकाव के आधार पर इतिहास के विभिन्न संस्करणों को जन्म दिया है। ऐसा इतिहास बहुत गंभीर धार्मिक और जातिगत विवादों का कारण बन रहा है। इसने हमारे देश को मूर्ख राष्ट्र में बदल दिया है। हमें इतिहास पर एकमत होने की जरूरत है. इतनी बुनियादी बात हम सुलझा नहीं पाते और दावा करते हैं विश्वगुरु होने का. हकीकत तो यह है कि मूर्खता में हम विश्वगुरु हैं। मूलतः इतिहास एक शैक्षणिक विषय है। लेकिन भारत में यह एक राजनीतिक उपकरण बन गया है।इसे अकादमिक विषय बनाने के लिए हमें संघर्षों, विरोधाभासों का समाधान करना होगा। मैं इतिहास, जाति और धर्म से संबंधित विवादों को सुलझाने के लिए देशव्यापी चर्चा करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन करना शुरू कर दिया और अब सरकार के आशीर्वाद से मैं देशव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं।सरकारी सहयोग जरूरी है. मैं देश के हर नागरिक को इसमें शामिल करना चाहता हूं. मैंने आवश्यकताओं के अनुरूप चर्चा की एक विशेष प्रणाली विकसित की है। यह निम्नलिखित बिंदुओं पर उचित ध्यान देता है 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि 3) हमारे देश की विशाल आबादी जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य का पता लगाने में सक्षम है। कृपया राष्ट्रव्यापी चर्चा के विचार का समर्थन करें और साझा करें। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@pareshjaju3971
@pareshjaju3971 Год назад
In Maharashtra Very same false notions were presented in favour of Ramdas as guru of Shivaji Maharaj where infact both of them never met in real life. One can easily find parallels between the two. ALSO, There is one "Viman Shastra", read it carefully as to who discovered it & when. It will give insights on how to plagiarise history & science.
@BinodKumar-hx8tt
@BinodKumar-hx8tt Год назад
Kalpnic jai chanakya
@cho1013
@cho1013 Год назад
है मानव श्रेष्ठ करबद्ध निवेदन है कि चाणक्य को ब्राह्मणवादी दृष्टिकोण से ही देखना है तो ये तो सोचों बच्चों की उसे फिर राजा बनाने के लिए किसी ब्राह्मण को ही चुन लेना था ...पर आदरणीय उन्होंने चन्द्रगुप्त को चुना क्योंकि वो सुयोग्य थे....
@max-cs9ko
@max-cs9ko Год назад
Myth of chanakya was debunked by science journey
@piyushjaiswal3629
@piyushjaiswal3629 Год назад
Accha to tum iss channel ke jhasse me aaye Gaye ho😂😂😂
@max-cs9ko
@max-cs9ko Год назад
@@piyushjaiswal3629 truth is truth, there is no archaeological evidence of Chanakya, he’s never mentioned in any mauryan inscription, even though there are thousands of them mauryan inscriptions found, i had done higher studies in history I can’t find anything, please let me know if you find any archaeological evidence other than whats in literature?
@piyushjaiswal3629
@piyushjaiswal3629 Год назад
@@max-cs9ko lekin baudh grantho me bhi to chanakya ka jikra aata hai
@max-cs9ko
@max-cs9ko Год назад
@@piyushjaiswal3629 bhai whi toh kha, other than literature evidence, kisi bhi literature chahe wo brahmin ho ya jain,Buddhist usme kuch bhi add ya remove kiya jaa sakta hai, issliye historian kabhi bhi literature evidence ko authentic nhi mana jata, ye manana difficult hai ki chanakya itna important mantri tha aur hazaron mauryan inscription, pillars, mauryan structure mein kabhi uske baare mein ek word tak nhi likha gaya
@piyushjaiswal3629
@piyushjaiswal3629 Год назад
@@max-cs9ko तो तुम्हारे अनुसार चंद्रगुप्त मौर्य की कहानी क्या है
@smritilalyadav4968
@smritilalyadav4968 Год назад
चाणक्य नाम का कोई व्यक्ति हुआ ही नहीं है। चन्द्रगुप्त मौर्य का विष्णुगुप्त मौर्य नाम का एक भाई था ब्राह्मणों ने उसे ब्राह्मण बता कर कई और नाम रख लिये।
@m.m.pansara4785
@m.m.pansara4785 Год назад
Ye manuvadiyoki den he namo budhai
@ImmatureBaller8010
@ImmatureBaller8010 Год назад
Buddha bhi shatriya the uppar caste 😅😅
@onlytruth3402
@onlytruth3402 Год назад
This story of lamp is not just confined to channakya, there is story of second caliph where it is narrated that he used to off his lamp after his official work. apparently this source is dated back to 9 th century. amazing co incidence ? why these story tellers are so obsessed with lamps.
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@infoseeker1585
@infoseeker1585 Год назад
Sir what are the concrete & real Brahmanwadi archaeological evidences found at the time of Buddha or Asok or Chhandgupat or till Harshvardhan?? No evidence i guess
@jitendranawani531
@jitendranawani531 Год назад
सत्य वही जो मुकेश जी बताये बाकी सब कपोल काळपनिक।। पुंयानी जी की बात से तो स्पस्ट प्रतीत होता है कि उनकी फटी पड़ी है।।। कितना गिरोगे प्रभु।।।
@ArjunKumar-it4np
@ArjunKumar-it4np 2 месяца назад
Ab to "Archeological Serve Of India" ne bhi कौटिल्य ko kalpnik kah diya 😅
@chetannalawade9766
@chetannalawade9766 Год назад
ऐसाही शिवाजी महाराज के साथ किया गया। महाराज की माँ जिजाबाई ने उन्हे सब मार्गदर्शन देके उन्हे इतना काबिल बनाया. ब्राह्मणवादी खते है, की दादोजी कोंडदेव उनके गुरू थे ।
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@RK-jk6bx
@RK-jk6bx Год назад
You both were sitting with him and knowing everything!!!!!!! Then now you both will say that Sri Ramchandra, Sri Krishna, Bhagwad Geeta Ved Puran mahabharat all are fake!!
@drsanjaykumar3448
@drsanjaykumar3448 Год назад
शिवाजी भी तो यहीं किया था। उसे भी औरंगजेव के दरबार में जो जगह दी गई थी उसपर वह नहीं बैठना चाहता था और उसका अहंकार फूट गया था और दरबार में ही भला बुरा कहने लगा था। अंत में औरंगजेव ने शालीनता के साथ उसे house arrest में रखा। आखिर बादशाह को बादशाहत की भी गरिमा बनाए रखनी थी
@r.k3261
@r.k3261 Год назад
Bilkul sahi kaha aapne
@drsanjaykumar3448
@drsanjaykumar3448 Год назад
@@r.k3261 पर इतिहास को जब तक सांप्रदायिकता के चश्में से देखते रहेंगे तबतक शिवाजी के अहंकार में गर्व महसूस होते रहेगा और औरंजेब की क्षमा में भी क्रूरता दिखते रहेगा
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय dr.sanjaykumar🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@indrapokharel1845
@indrapokharel1845 Год назад
That time chandragupta's commanders were this Mukesh and Ram Puniyani 😮😮😮
@spicybinga7469
@spicybinga7469 Год назад
😂😂😂😂😂😂😂😂😂😢😢😢
@PRAVEEN1-
@PRAVEEN1- Год назад
Jai Bhim
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय PRAVEENji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@atulc1082
@atulc1082 Год назад
13 वी सदी मे भारत मे जब तुगलक थे तो उन्होंने सम्राट असोक का टोपरा का अभिलेख पढ ने का प्रयास किया परंतु पढझ नही पाये.आगे विलियंसन (1772-94)ने मतलब 18 वी सदी मे सम्राट असोक का स्तंभ लेख पढ ने के लिये बनारस के विद्वानो को बुलाया गया तो उन्होंने झुठ बोला की उसपे ये लीखा वो लिखा ज हैं उस से भी आगे 1812 मे अग्रजो द्वारा गुप्तलीपी पढी गयी लेकीन वो लिपी संस्कारित हो रही थी पाली प्राकृत से संस्कृत के तरप ( buddhist hybrid sanskrit) परंतू classical Sanskrit नही बोल सकते अभी बात आगे बढते बढते 1837 आ गया अब यहा से पोलपट्टी खुलना सुरू हो जाता है.1837 ई स मे पहिली बार सम्राट असोक की धम्म लिपी को जेम्स प्रिसेप ने सफलतापूर्वक पढा गया.याहा से कुछ लोगो के पैरो तले से जमीन खिसक गयी.ये तो बोल रहे ऊसपे ये वो लिखा हैं अब मुह दीखाये तो कैसे दिखाये मुह छिपाये फिर रहे थे.. बाद में इन लोगो ने सोचना सुरू किया अब झुट तो पकडा गया भाई अब करे तो क्या करे बाद में इन लोगो ने 1870 ई स मे एक *मुद्राराक्षस*नाम का एक नाटक लिखा उसका अनुवाद 1871-72 मे भारतेंदू हरिश्चंद्र ने किया.इस किताब मे एक charecter था कौटिल्य उसका इन लोगो ने बहुत महिमा मंडणं किया नाटक का फर्जी पात्र कौटिल्य को अच्छा खासा प्रस्तापित कर लीया बाद में 1905 मे श्याम शास्त्री ने *कौटिल्य का अर्थशास्त्र* नाम की किताब का कुच अंश प्रकाशित किया. औंर बाद में 1909 मे पुरी फर्जी*कौटिल्य की अर्थशास्त्र* ग्रंथ प्रकाशित किया औंर बताया गया की यही कौटिल्य की लीखि गयी किताब हैं कूछ ब्रिटिश विद्वानो ने भी उस मे से हील बॉट, हर्टल, याकोबी औंर स्मिथ 1912 मे इस फर्जी किताब समर्थन दिया लेकीन उस के आठ-दस साल बाद डॉ. जौली ने 1923 मे उस किताब पर objection लीया औंर बोला की ये किताब ज्यादा से ज्यादा 3 री सदी मे लीखी गयी फर्जी किताब हैं औंर उस मे जो कौटिल्य नाम का charecter काल्पनिक हैं. आगे औंर भी विद्वान जिसमे खासकर डॉ.किथ 1928 मे इस किताब को फर्जी किताब माना इस से ये साबित होता है कौटिल्य/चाणक्य नाम का कोई charecter इतिहास मे हुआ ही नही लेकीन इन लोगो की तो आदत हैं झुट परोसने की लेकीन अब झुट नही चलेगा औंर एक बात आहोस्टाईन महोदय ने भी *मेगास्तनिज अँड कौटिल्य* नाम की किताब लीखी हैं इस किताब से इन का झुट पकडा जाता है
@pardeepbhambhurmg13
@pardeepbhambhurmg13 Год назад
🙏🙏🙏🙏🙏❤❤
@rationalmarathi4027
@rationalmarathi4027 Год назад
Chanakya ek Kalpanik Patra khada kiya gaya hai Brahmano dwara !
@hemalnaik7909
@hemalnaik7909 Год назад
मैं अभी जयपुर डायलॉग सुनकर आया और सभी से निवेदन करता हूं कि राम पुनिया जैसे बेकार लोगों को सुननेकी जगह जयपुर डायलॉग जैसे प्रोग्राम ध्यान से सुनो।
@bajrangenviroengineers3261
@bajrangenviroengineers3261 Год назад
It is downgrading self Hindu history with arguments why not other community history will be done deep argument
@denzilpontes5712
@denzilpontes5712 Год назад
Thank you Dr. For always bringing the truth amongst the people.
@infoseeker1585
@infoseeker1585 Год назад
Sir you may also bring other historical experts who have studied at ground zero. Majority historians are based on a common base knowledge which they feel is unfallible & is not to be questioned.
@rnmishra7001
@rnmishra7001 Год назад
Why would he? They themselves have parochial preconceived notions. They have close mind though pretend that they are liberal but are most conservative.
@infoseeker1585
@infoseeker1585 Год назад
@@rnmishra7001 can u reckon any true historians??
@rajeshmourya2653
@rajeshmourya2653 Год назад
ये एक काल्पनिक पात्र लगता है। दोनों अलग अलग संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते थे।
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय Rajeshmouryaji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@sukhpalkaur7055
@sukhpalkaur7055 Год назад
Jo pandulipian 1908 mein miliyan thi woh kaha hai? Carbon dating Kia jai
@santoshavadhani2105
@santoshavadhani2105 Год назад
ब्राम्हण से इतना जलते क्यू है भाई
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय Santoshavadhaniji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@mohdAyan623
@mohdAyan623 Год назад
बिल्कुल सच है चाणक्य कि बात जिस देश का राजा रढूआ होगा उस देश कि प्रजा विधवा जेसी जिंदगी जिऐगी और देश का हाल भी यही है इस वक्त😑😑😑😑😑
@blueSkyIs1
@blueSkyIs1 Год назад
Thank you for making this video. This is a typical pattern, these people spread similar stories about how Shivaji Maharaj, a son born in a long line of warriors, is taught sword fighting by the clerk (Dadoji Konddev) who handled correspondence for his family as an employee! They make up stuff to prop up their narcissistic narratives...
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।समय के साथ चीजें गलत होती गईं। यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया।आज कई लोग हिंदू धर्म में गर्व महसूस करते हैं। यह पवित्र संहिता या संविधान की आत्मा के विरुद्ध है। यह विपरीत बात हर जगह समस्या पैदा कर रही है। इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@blueSkyIs1
@blueSkyIs1 Год назад
@@avadhutjoshi796 Dear Friend, • Dr. Ambedkar represented those who were exploited and humiliated by so-called high-caste Hindus. He was a voice against that inhuman oppression. Plenty of evidence (I mean huge evidence) of such oppression exists. • Mr. Sawarkar collaborated with the British to get released. Again huge evidence of that too. • You need to do some homework and gain some humane and objective perspective on the above two bullets before you can embark on an honest discourse.
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
@@blueSkyIs1 Thanks a lot my dear friend for sharing your valuable opinion. However it is a wrong opinion or advise, not because of your opinions about Dr. Ambedkarji and Sawarkar. There is nothing wrong in it. However you are wrong in many places. I will mention only one. Please read my comment again. I have not opposed Dr. Ambedkarji, I have not supported him. It is same with Sawarkar. My focus is on removal of contradictory acceptance or system. So firstly read and understand properly. It is the first requirement for making correct opinions. I am in that position. Our constitution says... सत्यमेव जयते. Our constitution says about scientific approach. And scientific approach does not support contradictions. So better is to support the idea of nationwide discussion. 🙏 Avadhut Joshi
@blueSkyIs1
@blueSkyIs1 Год назад
@@avadhutjoshi796 Scientific approach begins with data & evidence. You begin with conclusions. Very unscientific! Honest contradictions (in data) are seen as opportunities in science to learn more. That's where you need to begin. With honest data and evidence of the past. Not with a contrived objective or broad generalization. You are putting "cart before the horse"
@bharatbambhaniya3544
@bharatbambhaniya3544 Год назад
उस समय ब्राह्मण ही नहीं थी तो फिर चाणक्य कहा से आया?
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय bhartbambhaniyaji🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@rudraenterprises2146
@rudraenterprises2146 Год назад
Aap sahi ho bahut gyaani ho
@AnilMaurya-cb8bx
@AnilMaurya-cb8bx Год назад
बहुत ही उम्दा जानकारी
@amandeepkaur6292
@amandeepkaur6292 8 месяцев назад
True
@PankajKumar-ts4sm
@PankajKumar-ts4sm Месяц назад
उस ताड़ पत्र पर लिखी किताब की कार्बन डेटिंग कब की है?
@AnuragTiwari-qr1qw
@AnuragTiwari-qr1qw Год назад
This is just a imaginary view nothing authentic you chandragupt was dhanand was their because chanakya is brahmin you are rejecting it you cannot be so bias & anti brahmin you are not supporting chankayas ideology agreed but you should not be so anti about one community
@rnshrivas6949
@rnshrivas6949 Год назад
आज की व्यवस्था में चाणक्य कौन है कृपया बताएं।
@ashishkatyan9847
@ashishkatyan9847 Год назад
AAP dono ke andar ek dhanya aatma hai bhagwaan kare us aatma ko jaldi mukti mile
@ChoohaChirkut
@ChoohaChirkut Год назад
Ye sab kehni ki baat hai Raja koi banata nhi Raja swayam bante hain
@avadhutjoshi796
@avadhutjoshi796 Год назад
आदरणीय 🙏! जब भारत ब्रिटिश शासन के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहा था, तब हिंदू धर्म पर दो अतिवादी विचार थे। सावरकर उन भावनाओं के नेता थे जिनके लिए हिंदू धर्म महान था और डॉ. अंबेडकरजी उन भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते थे जो हिंदू धर्म को तुच्छ समझते थे। कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम की मुख्य शक्ति थी और वह उस काल की हिंदू पार्टी भी थी। डॉ. अम्बेडकरजी अमानवीय कानूनी प्रावधानों और जाति के आधार पर भेदभाव के कारण हिंदू धर्म पर सवाल उठा रहे थे। स्वतंत्रता संग्राम हिंदू धर्म की वास्तविक स्थिति से अधिक महत्वपूर्ण था और इसलिए हिंदू पार्टी कांग्रेस ने एक पवित्र समझौता अपनाया। उसी पवित्र समझौते को आगे बढ़ाया गया। यह माननीय नेहरूजी के नेतृत्व में कांग्रेस की पहली सरकार में दोनों चरमपंथियों के समावेश के रूप में परिलक्षित हुआ। पहली सरकार में डॉ. अम्बेडकरजी और श्यामाप्रसाद मुखर्जी (सावरकर के शिष्य और वर्तमान भाजपा के जनक) दोनों शामिल थे। इस तरह भारत को एक विरोधाभासी व्यवस्था मिली।यह पवित्र समझौता एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों की भावनाओं के सम्मान में किया गया। समय के साथ चीजें गलत होती गईं। इस विरोधाभास ने जाति, धर्म और राजनीतिक झुकाव पर आधारित इतिहास के कई संस्करणों को जन्म दिया है और इसलिए विवाद । इसलिए मैं इसे देशव्यापी चर्चा के माध्यम से सुलझाना चाहता हूं। यही सबसे सही तरीका है जो संविधान में दिए गए वैज्ञानिक दृष्टिकोण को भी अपनाता है। किसी भी बुद्धिमान राष्ट्र, लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए यह आवश्यक है कि हम चर्चा के माध्यम से सत्य की खोज करें। यह हो सकता है।मैं राष्ट्रव्यापी चर्चा आयोजित करना चाहता हूं और मैंने मई 2022 तक सरकार से 1400 अनुरोध किए हैं। मैंने 2012 में अपनी नौकरी छोड़ दी और इन विषयों का अध्ययन शुरू कर दिया और अब इस तरह की राष्ट्रव्यापी चर्चा करने की स्थिति में हूं। मैं देश के हर नागरिक को शामिल करना चाहता हूं। मैंने जरूरतों के अनुरूप चर्चा की एक ऐसी विशेष प्रणाली विकसित की है। चर्चा की खास प्रणाली निम्नलिखित बिन्दुओं परउचित ध्यान देता है । 1) जाति और धर्म जैसे मुद्दों की नाजुक प्रकृति 2) सभी प्रतिभागियों की संतुष्टि, और किसी भी जाति या धर्म के वास्तविक सम्मान को कोई नुकसान नहीं 3) हमारे देश की विशाल जनसंख्या जिसमें शिक्षित और अशिक्षित वर्ग शामिल हैं 4) हमारे देश की राजनीतिक व्यवस्था। 5) यह निष्पक्ष तरीके से सत्य को खोजने में सक्षम है। यह हमारे देश में सभी इतिहास, जाति और धर्म संबंधी विवादों को हल करने के लिए एक वैध, आधिकारिक प्रयास है। इसलिए मैं अधिकारी शब्द का प्रयोग कर रहा हूं। अगर सरकार इस प्रक्रिया में मदद करती है तो यह होगा। आइए हम सामाजिक और धार्मिक सद्भाव को पुनर्जीवित करें। अवधूत जोशी
@mnsharif3634
@mnsharif3634 Год назад
क्या चाणक्य और अर्थशास्त्र के 1905 में उद्भव होना पेशवाओं (चितपावन ब्रह्मण )के उद्भव से जुडा हुआ है। क्या उस पाण्डुलिपी की कार्बन डेटिंग की गई है कि वह कब लिखी गई थी।
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