बेहतरीन लिरिक्स, सादगी भरा संगीत, सही जगह पर चित्रा जी की आवाज़ और सबसे ज्यादा जगजीत साहब की मखमली आवाज़ सबने मिलकर इस ग़ज़ल को जबरजस्त बना दिया है....💓
या रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता जो हाथ जिगर पर है वो दस्त-ए-दुआ होता (ग़म-ए-हिज्राँ = जुदाई के दुःख), (दस्त-ए-दुआ = दुआ मांगने के लिए उठा हाथ) इक इश्क़ का ग़म आफ़त और उस पे ये दिल आफ़त या ग़म न दिया होता या दिल न दिया होता नाकाम तमन्ना दिल इस सोच में रहता है यूँ होता तो क्या होता यूँ होता तो क्या होता उम्मीद तो बँध जाती तस्कीन तो हो जाती वादा न वफ़ा करते वादा तो किया होता (तस्कीन = चैन, आराम) ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम ने कुछ हम से कहा होता कुछ हम से सुना होता -चराग़ हसन हसरत