ज्ञान कांड और कर्मकांड शब्द मीमांसा में प्रयोग नही होते २ भाग मंत्र और ब्राह्मण को कहते है। मंत्र, ब्राह्मण से प्रबल है । (मीमांसा सूत्र ५.१.१६ से स्पष्ट है ) ज्ञान और कर्म दोनो में प्राप्त है, ब्राह्मण में कर्म अधिक है । मंत्र में ज्ञान ज्यादा है , ब्राह्मण भाग में ही उपनिषद आते है । अगर उपनिषद की कोई भी बात मंत्र भाग से विरोध खाए तो मंत्र ही हो मानना योग्य है , मंत्र भाग ईश्वरप्रोक्त, और ब्राह्मण भाग ऋषिप्रोक्त है । अथ "द्वा सुपर्णो" ऋग्वेद के १.१३०.२० का मंत्र है , उपनिषद की बात यहां मंत्र से बाधित होने के कारण मंत्र ही को प्रबल मानना चाहिए । "द्व सुपर्णा" मंत्र स्पष्ट रूप से जीव को फल का भोक्ता और ईश्वर को दृष्टा बोलता है , यह जीव प्रकृति से उत्पन वृक्ष रूपी जगत के फल का भोग करता है , ईश्वर न करता हुआ सदा आनंद में रहेता है । इससे स्पष्ट सिद्ध है की ईश्वर और जीव भिन है । योगी जन ईश्वर को हर प्राणी में देखते है उनको समान समझते है , ऐसे वचनों का मन माना अर्थ लोग लेते है और अद्वैत सिद्ध करते है परंतु योगी तो वो है जो तत्व ज्ञानी हो , तत्व ज्ञान का लक्षण है की वो सत्य देखे , सत्य यही है की ईश्वर सर्वयापी होने के कारण जगत के अंदर और जगत से भार हर जगह व्याप्त है । उपनिषद के वाक्य भी कहते है की ब्रह्म में जगत ओतप्रोत हुआ । जगत से पहले जो था वो एक अद्वित्य (जिसके तुल्य कुछ नही)ब्रह्म ही था । जगत के बनने से पहले असत रूपी प्रकृति ही थी । दोनों वाक्य मिलते है , ब्रह्म सत और प्रकृति असत है । और दोनो को जगत से होना सिद्ध है इससे इतना तो सिद्ध है की प्रकृति और ब्रह्म दोनो ही जगत के कारण है , प्रकृति उपादान तो ब्रह्म निमित । और ऋग्वेद के मंत्र से भी जीव के भेद का कथन भी स्पष्ट है अत: ३ अनादि तत्व है जीव, ब्रह्म, प्रकृति ये सिद्ध हुआ । धन्यवाद ये पढ़ने के लिए , शंकर दिग्विजय नाम का ग्रंथ बहुत बात में शंकर मत अनुयायी लोगो ने लिखी है शंकर के मृत्यु के १००० साल बाद , और शंकर के व्यक्य इसमें और उनके भाष्य में विरोध स्पष्ट है । और असंभावरूपी चीजों का वर्णन दिग्विजय में है एक और बात की दिग्विजय में शंकर के जन्म की कथा पौराणिक मार्कण्डेय ऋषि की कहानी की डीटो copy है । इसी के कारण दिग्विजय का प्रामाणिकता न्यून भी नही । और इस नाट्य में तो दिग्विजय में मंडन मिश्र और शंकर के शास्त्रार्थ को पूरा नही दिखाया और कुछ चीजे अपने से गाड़ी है , उभाया भारती का शास्त्रार्थ उसके सीधे बाद हुआ था शंकर से । उसका इस नाट्य में झलक भी नही । ज्ञान की वृद्धि करते रहो । 🙏
अति उत्तम 🙏🚩 किन्तु माता के साथ शास्त्रार्थ की कथा का भी चित्रण करें हमारे सनातन वैदिक हिन्दू धर्म संस्कृति और सभ्यता में तर्क है जिज्ञासा है कि किन्तु तकरार नही। एक अलौकिक शक्ति और आकर्षण का ही नाम सनातन वैदिक हिन्दू धर्म है।🙏 न कोई दबाव न कोई ज़ोर जबर्दस्ती बस आकर्षण ही आकर्षण। जय श्री राम 🙏🚩
જય શ્રી કૃષ્ણ ગુરુજી આજે આપના આ youtube વિડીયો પર લક્ષ્મી પૂજન ની સંપૂર્ણ વિધિ દ્વારા હવે સહ પરિવાર લક્ષ્મી પૂજન સંપૂર્ણ કરેલ છે આપના આશીર્વાદ અને શુભેચ્છા
Script writer👌👏 with Authentic vedantic knowledge 🙏 It’s not possible to grasp this knowledge in single take.. have to listen this multiple times. Prior knowledge of 1) “karma kanda vs Jnana Kanda” and their role in sadhana. 2) “Brahma satyam jagat mithya, jivo brahmaiva naparah”.. 3) Maha Vakyas Vicharan Helps a lot. Thanks for sharing this masterpiece. 🙏🙏🙏
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If one stands u find shadow, if two persons stands in a line, their shadows overlaps, it mean u can't differentiate who's shadow is upper or lower, like wise God present inside, inside of God we preset, till one realizes God cannot see u, u can't see God *Adhvaitham* there exists nothing but God