नहीं आयेगा फ़िलहाल क्यूंकि इसका गलत उपयोग ईसाई और मुस्लिम तंत्र हिन्दुओं को कन्वर्ट करने में लगाएगा । इसीलिए जितने सिद्धांत और संप्रदाय के विभिन्न आचार्य हैं वो आपस में शास्त्रार्थ नहीं करते ।
अति उत्तम 🙏🚩 किन्तु माता के साथ शास्त्रार्थ की कथा का भी चित्रण करें हमारे सनातन वैदिक हिन्दू धर्म संस्कृति और सभ्यता में तर्क है जिज्ञासा है कि किन्तु तकरार नही। एक अलौकिक शक्ति और आकर्षण का ही नाम सनातन वैदिक हिन्दू धर्म है।🙏 न कोई दबाव न कोई ज़ोर जबर्दस्ती बस आकर्षण ही आकर्षण। जय श्री राम 🙏🚩
Script writer👌👏 with Authentic vedantic knowledge 🙏 It’s not possible to grasp this knowledge in single take.. have to listen this multiple times. Prior knowledge of 1) “karma kanda vs Jnana Kanda” and their role in sadhana. 2) “Brahma satyam jagat mithya, jivo brahmaiva naparah”.. 3) Maha Vakyas Vicharan Helps a lot. Thanks for sharing this masterpiece. 🙏🙏🙏
सनातन वैदिक धर्मका यह ऐतिहासिक शास्तार्थ इससे अच्छी तरह प्रस्तुत करना शायद असम्भव ही है। फिर भी ये अभिलाषा तो रहेगी ही, की पूरा शास्त्रार्थ श्लोकोंके साथ उपलब्ध हो। एवम् भारतीदेवीके साथ हुआ शास्त्रार्थ भी उपलब्ध हो। धन्यवाद।
ज्ञान कांड और कर्मकांड शब्द मीमांसा में प्रयोग नही होते २ भाग मंत्र और ब्राह्मण को कहते है। मंत्र, ब्राह्मण से प्रबल है । (मीमांसा सूत्र ५.१.१६ से स्पष्ट है ) ज्ञान और कर्म दोनो में प्राप्त है, ब्राह्मण में कर्म अधिक है । मंत्र में ज्ञान ज्यादा है , ब्राह्मण भाग में ही उपनिषद आते है । अगर उपनिषद की कोई भी बात मंत्र भाग से विरोध खाए तो मंत्र ही हो मानना योग्य है , मंत्र भाग ईश्वरप्रोक्त, और ब्राह्मण भाग ऋषिप्रोक्त है । अथ "द्वा सुपर्णो" ऋग्वेद के १.१३०.२० का मंत्र है , उपनिषद की बात यहां मंत्र से बाधित होने के कारण मंत्र ही को प्रबल मानना चाहिए । "द्व सुपर्णा" मंत्र स्पष्ट रूप से जीव को फल का भोक्ता और ईश्वर को दृष्टा बोलता है , यह जीव प्रकृति से उत्पन वृक्ष रूपी जगत के फल का भोग करता है , ईश्वर न करता हुआ सदा आनंद में रहेता है । इससे स्पष्ट सिद्ध है की ईश्वर और जीव भिन है । योगी जन ईश्वर को हर प्राणी में देखते है उनको समान समझते है , ऐसे वचनों का मन माना अर्थ लोग लेते है और अद्वैत सिद्ध करते है परंतु योगी तो वो है जो तत्व ज्ञानी हो , तत्व ज्ञान का लक्षण है की वो सत्य देखे , सत्य यही है की ईश्वर सर्वयापी होने के कारण जगत के अंदर और जगत से भार हर जगह व्याप्त है । उपनिषद के वाक्य भी कहते है की ब्रह्म में जगत ओतप्रोत हुआ । जगत से पहले जो था वो एक अद्वित्य (जिसके तुल्य कुछ नही)ब्रह्म ही था । जगत के बनने से पहले असत रूपी प्रकृति ही थी । दोनों वाक्य मिलते है , ब्रह्म सत और प्रकृति असत है । और दोनो को जगत से होना सिद्ध है इससे इतना तो सिद्ध है की प्रकृति और ब्रह्म दोनो ही जगत के कारण है , प्रकृति उपादान तो ब्रह्म निमित । और ऋग्वेद के मंत्र से भी जीव के भेद का कथन भी स्पष्ट है अत: ३ अनादि तत्व है जीव, ब्रह्म, प्रकृति ये सिद्ध हुआ । धन्यवाद ये पढ़ने के लिए , शंकर दिग्विजय नाम का ग्रंथ बहुत बात में शंकर मत अनुयायी लोगो ने लिखी है शंकर के मृत्यु के १००० साल बाद , और शंकर के व्यक्य इसमें और उनके भाष्य में विरोध स्पष्ट है । और असंभावरूपी चीजों का वर्णन दिग्विजय में है एक और बात की दिग्विजय में शंकर के जन्म की कथा पौराणिक मार्कण्डेय ऋषि की कहानी की डीटो copy है । इसी के कारण दिग्विजय का प्रामाणिकता न्यून भी नही । और इस नाट्य में तो दिग्विजय में मंडन मिश्र और शंकर के शास्त्रार्थ को पूरा नही दिखाया और कुछ चीजे अपने से गाड़ी है , उभाया भारती का शास्त्रार्थ उसके सीधे बाद हुआ था शंकर से । उसका इस नाट्य में झलक भी नही । ज्ञान की वृद्धि करते रहो । 🙏
Beautiful! So, so beautiful 😍!!! The language is top notch (hardly any FAT words used). Shuddha Hindī is such a joy to hear 😊😘 Where did this play happen? Are there more such plays available to watch? I would love to enjoy them live, though…
कितनी सुदृढ़ थी हमारी संस्कृति कितना ज्ञान भरा था हमारे भारतवर्ष में बस जाति वाद में ग्रसित हो के रह गया ब्राम्हण क्षत्रिय वैश्य शुद्र ये सब कर्म के नाम थे मग़र जो वेदों का अध्ययन कर ब्राह्मण की उपाधि धारण किए वो जाति व्यवस्था का संचालन करने लगें अपने आप को ऊंची जाति के लोग कहने लगे लेकिन थे नही इस भारत को बर्बाद करने में आज के वही लोग शामिल हैं जो अपने नाम के पीछे पंडित, मिश्रा दुबे क्षत्रिय राजपूत सब का प्रयोग करते है
When He allowed maya, avidya starts and triguna entangle him to this world of birth and death and renowned as jiva. If he shuns the world as a snake do with its skin then He is known as Iswara.
Jeev aur Shiv ek hai bas maya ke bandhan ke vajay se jeev apne aap ko 'jeev' mante hai. Advait maarg mithya nahi hai. Naahi Rshi-Muniyo ke varsho ke sadhana-samadhi ka phal Swarup 'Upanishad' ka amrit vaani mithya hai.
Ye thha hamara ,prachin bihar , Fir kin karno se bihar ko hamare Des ke kai Bhago se hum tiraskrit hote, kai rajyo ne mahan purus to kya ek Des bhakt tak pada nhi kar saka, Hamari galti kahi, mandan bharti mahavir gurunanak, budh karmbhumi, aaryabhat mahan ashoka ..........ka janmbhumi ka hona hi ha kya ? 😆
Aaj ke netao ki wajah se...sabse bhrasht aur bure neta aate hai humare ksehtra se...badlaav prakriti ka niyam hai aur harek smaaj ka hras hota hai...wahi bihar ke saath hua hai...ushko sudharne ki jimmedaari bhi hum bihariyon ki hai...humara suvyavahaar hi hume dusro ki nazar me punah aadar de sakta hai.
हमें सिखाया गया है मंडन मिश्र,जैन मतावलंबी थे यहां चित्रित किया है,वह कर्मकांडी थे, कपाल पर त्रिपुंड दीखाया है यह विचित्र हय आदी शंकराचार्य जी महाराज ने सास्त्रार्थ, मात्र, वैदिक विरोधीयों से कीया था
What was taught to you is wrong. Adi Sankaracharya not only argued and condemned Jain and Buddhist philosophies, but also the "karma kanda" of the Vedas!
If one stands u find shadow, if two persons stands in a line, their shadows overlaps, it mean u can't differentiate who's shadow is upper or lower, like wise God present inside, inside of God we preset, till one realizes God cannot see u, u can't see God *Adhvaitham* there exists nothing but God
Script writer👌👏 with Authentic vedantic knowledge 🙏 It’s not possible to grasp this knowledge in single take.. have to listen this multiple times. Prior knowledge of 1) “karma kanda vs Jnana Kanda” and their role in sadhana. 2) “Brahma satyam jagat mithya, jivo brahmaiva naparah”.. 3) Maha Vakyas Vicharan Helps a lot. Thanks for sharing this masterpiece. 🙏🙏🙏