"दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥"
नवरात्र उपासना का यह दूसरा दिन मॉं ब्रह्मचारिणी की अर्चना का दिन है। नवदुर्गा में ब्रह्मचारिणी का आशय ब्रह्म यानी अनंत में विचरने वाली पराशक्ति के उस स्वरूप से है जो संपूर्ण ब्रह्मांड की नियंता हैं। ब्रह्म यानी सकल सृष्टि का स्वामी, ब्रह्म यानी समस्त मायावरण को स्वयं प्रकट कर फिर अंतत: स्वयं में ही समाहित कर लेने वाली वह परम सत्ता जिसके द्वारा निर्धारित नियति हम सबके मन, बुद्धि और अहंकार से परे सर्वाधिक सशक्त है। इस प्रसंग पर विचार करिए और सोचिए कि यह ब्रह्म की महिमा नहीं तो और क्या है जो अनगिनत सिद्धि-संपन्न, त्रैलोक्य विजेता रावण को एक वानर से संवाद में फिसड्डी साबित कर देती है। क्या कमाल का शब्द-चित्र है कि दुराचारी रावण के सम्मुख एक सामान्य वानर अंगद प्रभु की महिमा बखान रहे हैं और उस महापराक्रमी असुर का समस्त तेज उस वानरी सात्विकता के सामने शून्य हो जाता है। हमारे शास्त्रों में सात्विकता के सबल उद्घोषक ऐसे कई क़िस्से दर्ज हैं पर केशवदास की रामचंद्रिका का यह प्रसंग मुझे सर्वाधिक पसंद है। यह संवाद आप भी सुनिए, अनंत की असीम माया को अनुभूत करिए और अपने-अपने मन-बुद्धि, साधन-संपत्ति के अहंकार से परे विशुद्ध भावना की भव्य भाषा में मॉं ब्रह्मचारिणी को अपना प्रणाम निवेदित करिए। 🙏🏻🙏🏻
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16 окт 2020