अनछुई नहीं है भाई ये धुन 1965 में आई वक्त फिल्म के गाने हम जब सिमट के आपकी बाहों में आ गए की है। कोई अनछुई धुन डालो तो हमारी हरियाणवी संस्कृति की अनेकों धुन हैं जो समय की मार से हमसे बिछुड़ गई हैं। फिल्मी तर्ज तो बनी बनाई हैं, उनसे अच्छा आप क्या बजाएंगे। वैसे आप हारमोनियम अच्छा बजा लेते हो। और अभ्यास करो इससे भी अच्छा बजाओगे।पर फिल्मी धुन नहीं हमारी हजारों हरियाणवी धुन जो समय की धूल में कहीं खो गई हैं की खोज करके बजाओ। इसी में हमारी असली सांस्कृतिक सेवा का भाव है।
मुनीगर जी, मैं भी आपके जैसा ही हारमोनियम बजाता और गाता हूं। वैसे तो किसी भी वाद्ययंत्र लेकिन खासकर हारमोनियम के बारे में एक बात मैं कई सालों से पूछना चाहता हूं (भले ही मैं भी हारमोनियम ठीक ठाक बजा लेता हूं, फिर भी दूसरे जानकारों से पूछना चाहता हूं) कि क्या हारमोनियम को अच्छा बजाने वालों को भी हर गाने की, मोटे मोटे तौर पर, ३ या ४ बार प्रैक्टिस/रियाज़ करनी होती है? अपनी बात करूं तो मुझे तो ऐसा जरूर लगता है। खासकर तब, जब धुनें ज्यादा कठिन हों। गांव के, या लोकगीतों की धुनों के लिए ज्यादा प्रैक्टिस की जरूरत नहीं पड़ती मुझे। लेकिन ऐसे गाने जिनमे थोड़ा बहुत शास्त्रीय संगीत हो, उनमें ज्यादा रियाज़ चाहिए होता है। तो क्या आप बता सकते हैं कि क्या मेरा सोचना ठीक है? या आप कैसी भी धुन को (अब जब आपको हारमोनियम अच्छा बजाना आ चुका है) बिना रियाज़ के, सीधे बजा लेते हैं?
अरे क्या कहते हो कलाकार भाई कि देशी व हरियाणवी धुन बजाना आसान है। ये आपकी सबसे बड़ी भूल है। अब दादा लखमी चंद जी की अनेकों ऐसी धुन हैं बहुत से साजिन्दे उनके आसपास भी नहीं पहुँच सकते। दादा श्री ही नहीं पं. शंकर दास जी, दादा श्री के शिष्य पं. सुलतान जी, निहालदे, जकड़ी, राधेश्याम, बहरे तबील, सोहणी, मोहनी, शाका, आल्हा आदि ऐसी बहुत ही सांस्कृतिक धुने हैं जिनके आगे आपकी फिल्मी धुन व सुगम संगीत वाले पानी भरते हैं। हाँ आपने शायद चौकड़िया आदि धुन फिल्मी तर्ज पर बनाई होंगी, तभी कह रहे हो कि देशी धुन बजाना आसान हैं।
@@abhaypant6722 bhai jo acha lage suno sang pake saj ki ragni h usme Jo matra h jo alap h ve pure aate h jis tarha apki bate h lagta nhi apne deshi dhune suni hogi ek dhun 2 se 3 tarike se baja rakhi h hum market me vahi sunte h jo market me parchalit h