2005-2006
भारतीय क्रिकेट ने नवनियुक्त कोच ग्रेग चैपल को हिलाकर रख दिया है
जो तुरंत टीम पर कब्जा जमाते है और सौरव गांगुली को टीम से बाहर कर देते है
सचिन
सहवाग या लक्ष्मण ,
ग्रेग चैपल की नई नीतियों से किसी को बख्शा नहीं गया
लेकिन दादा को तब अपने खेल पर और मेहनत करने के लिए कहा गया और उसे
अपनी काबिलियत साबित करने के लिए घरेलू क्रिकेट खेलने की सलाह दी गई
और जब उसे टीम में चुना गया ...
तब अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद टीम से बाहर कर दिया जाता है
इरादे स्पष्ट है
बोर्ड और कोच सौरवको टीम में नहीं चाहते...
परन्तु फिर
एक विज्ञापन करने का अवसर आता है।
पेप्सी से
"में हूं सौरव गांगुली भूले तो नहीं ना"
से शुरू होकर
"मानोगे ने अपने दादा की बात"
पे समाप्त होता है
और यह
घटनाओं का एक क्रम शुरू करता है
जो
संसद में कीटनाशक विवाद , 2006 के दक्षिण अफ़्रीकी दौरे और 2007 के विश्व कप तक ।
डीएलएफ कप से चैंपियंस कप 2006 तक
दादा और श्रीशांत के कारण दक्षिण अफ्रीका में एक ऐतिहासिक जीत से शुरू होकार क्रिकेट में ऐतिहासिक ऐसा एक रिकॉर्ड तोड़ने वाला वर्ष और फिर
श्रीलंका और बांग्लादेश के हाथों ग्रुप स्टेज मे ही विश्व कप के बाहर ।
आज की कहानी राजनीति की साज़िशों से लेकर...धैर्य दृढ़ निश्चय और भाग्य से भरी है।
ये कहानी है
भारतीय क्रिकेट के सबसे सफल कप्तान के जीवन में परिस्थितियाँ ने निर्माण किए ट्रेजेडी की।
और कैसे लगन और अपने बेहतर प्रदर्शन से उन्होंने टीम में वापसी की।
इसके बाद ऑस्ट्रेलियाई कोच को फायर किया गया।
और कैसे कभी-कभी भाग्य आपको अवसर देता है
वापसी का एक ही मौका मिलता है
और एक व्यक्ति ने उस अवसर का कैसे लाभ उठाया,
इसकी प्रेरक कहानी
#cricket #ganguly #revenge
4 авг 2022