किराने की दूकान से फिल्मफेयर तक का सफर करने वाले सुपरहिट संगीतकार #foryou #bollywood #music #goldenmomentswithvijaypandey
किराने की दुकान से सिनेमा की दुनिया तक कैसे पहुंचे कल्याणजी-आनंदजी? दिलचस्प है दोनों भाइयों की कहानी
गुजरात (Gujrat) के कच्छ के रहने वाले कल्याणजी और आनंदजी ने अपने करियर (Career) में एक से बढ़कर एक शानदार फिल्मों को अपने बेहतरीन संगीत से सजाया. लोग उनके संगीत (Music) के दीवाने हुआ करते थे. उनके संगीत को फैंस का बहुत प्यार मिलता था. इस जोड़ी के फिल्मों में एंट्री करने की दास्तान किसी फिल्म से कम नहीं है. आइए जानते हैं कि किस तरह से इस संगीतकारों की इस जोड़ी ने फिल्मों में कदम रखा.
फिल्मों में आने से पहले इस कल्याणजी और आनंदजी अपने पिता की किराने की दुकान पर बैठते थे. वो दुकान के कामों में लगे रहते थे. सके कुछ वक्त के बाद इस जोड़ी ने फिल्मों में कदम रखने का फैसला किया. कल्याणजी और आनंदजी (Kalyan Ji Anand Ji) को पहली बार साल 1959 में आई फिल्म सम्राट चंद्रगुप्त में संगीत देने का मौका मिला. इस फिल्म के बाद फिर कभी इस जोड़ी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.अमूमन कल्याणजी आनंदजी इन्दीवर के साथ ही काम करना पसंद करते थे लेकिन उन्हें आनंद बक्शी का लिखा भी अच्छा लगता था। पर आनंद बक्शी के साथ समस्या ये होती थी कि वह एक ही गाने के 25-25 अंतरे लिख लाते थे और कहते थे अपने मतलब के 3 चूज़ कर लीजिये। साथ ही आनंद बक्शी का ज़ोर होता था कि एक फिल्म के सारे गाने उन्हें ही मिलें। जब जब फूल खिलें में उनकी ये बात मान भी ली गयी लेकिन फिल्म ‘हिमालय की गोद’ में ऐसा नहीं हुआ। यहाँ सात में से 4 गाने आनंद बक्शी ने लिखे और दो इन्दीवर ने जबकि एक गाना क़मर जलालाबादी ने लिखा। यूँ तो इस फिल्म के सारे ही गाने पसंद किए गये पर आनंद बक्शी का ही लिखा “चाँद सी महबूबा हो मेरी” बहुत पॉपुलर हुआ।इस फिल्म से कल्याणजी मनोज कुमार के ज़रा और नज़दीक हो गये और जब मनोज कुमार ने फिल्म उपकार अनाउंस की तो संगीत के लिए कल्याणजी आनंदजी को ही चुना। इस फिल्म में भी कल्याणजी ने बॉलीवुड के ट्रेंड के विपरीत कई सिंगर्स और कई गीतकारों से काम करवाया। इस फिल्म में मोहम्मद रफ़ी और लता तो फिक्स थे ही, साथ ही मुकेश, मन्ना डे और महेंद्र कपूर से भी गाने गँवाए। साथ ही गाने लिखने में भी वैरायटी रखी। इन्दीवर और जलालाबादी तो थे ही, साथ प्रेम धवन और गुलशन बांवरा को भी मौका दिया। असल में इन तीनों को ही पहला मौका देने वाले भी कल्याणजी ही थे।उपकार के गाने ‘मेरे देश की धरती सोना उगले’ ने देश भक्ति की ऐसी लहर चलाई कि हर गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस को ये गाना बजना ज़रूरी हो गया। ‘हिमालय की गोद में’ के बाद ये दूसरी फिल्म थी जिसके लिए कल्याणजी आनंदजी फिल्मफेयर में नोमिनेट तो हुए थे लेकिन अवार्ड नहीं मिला था।जब हम काम करने की शुरुआत करते हैं तो प्राथमिकता यही होती है कि कैसे भी करके काम मिलता रहे। फिर जब काम ख़ूब मिलने लगे तो दिमाग कहता है मनचाहा पैसा मिले। अब जब पैसा भी अथाह बहने लगता है तो दिल कहता है बस वो ही काम करना है जिसमें कुछ नया हो,कुछ क्रिएटिव हो और अच्छा महसूस कर सकें। फिर जब ऐसा करने लगो तो कहीं न कहीं आत्मसम्मान की आवाज़ आती है कि अब हमें इज्ज़त मिले, पुरस्कार मिले, स्टेज पर नाम हो।“सरस्वतीचंद्र में रखा गया और ये गाना ऐसा बम्पर हिट हुआ कि आशिकों का एंथम बन गया। इसी फिल्म का गाना चन्दन सा बदन, चंचल चितवन भी पॉपुलैरिटी में झंडे गाड़ गया। और यही वो फिल्म रही जहाँ कल्याणजी डुओ का इंतज़ार खत्म हुआ और उन्हें फिल्मफेयर तो नहीं, लेकिन उससे भी बड़े, उससे कहीं ज़्यादा सम्मानजनक नेशनल अवार्ड से नवाज़ा गया और दोनों भाइयों को ऐसा लगा कि आज, 14 साल बाद ही सही, फिल्म इंडस्ट्री में आना सफल हुआ।
कल्याणजी-आनंदजी हिन्दी फिल्मों की जानी मानी संगीतकार जोड़ी थी। कल्याणजी वीरजी शाह (30 जून 1928-24 अगस्त 2000) और उनके भाई आनंदजी वीरजी शाह (जन्म 2 मार्च 1933)। ये दोनों 1970 के दशक में हिंदी फिल्म साउंडट्रैक, विशेष रूप से मारधाड़ पर आधारित फ़िल्में पर अपने काम के लिए जाना जाता है।
कल्याणजी-आनंदजी हिन्दी फिल्मों की जानी मानी संगीतकार जोड़ी थी। कल्याणजी वीरजी शाह (30 जून 1928-24 अगस्त 2000) और उनके भाई आनंदजी वीरजी शाह (जन्म 2 मार्च 1933)। ये दोनों 1970 के दशक में हिंदी फिल्म साउंडट्रैक, विशेष रूप से मारधाड़ पर आधारित फ़िल्में पर अपने काम के लिए जाना जाता है।
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Remembering Kalyan ji on his birth anniversar
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जानें- कैसे एक नाम कल्याणजी आनंदजी में शामिल हो गए दो भाई
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30 июн 2023