अयोध्याकाण्ड-गायन प्लेलिस्ट
• रामचरितमानस गायन (अयोध...
चित्रकूट महिमा अमित कही महामुनि गाइ।
आइ नहाए सरित बर सिय समेत दोउ भाइ॥132॥
भावार्थ:-महामुनि वाल्मीकिजी ने चित्रकूट की अपरिमित महिमा बखान कर कही। तब सीताजी सहित दोनों भाइयों ने आकर श्रेष्ठ नदी मंदाकिनी में स्नान किया॥132॥
चौपाई :
* रघुबर कहेउ लखन भल घाटू। करहु कतहुँ अब ठाहर ठाटू॥
लखन दीख पय उतर करारा। चहुँ दिसि फिरेउ धनुष जिमि नारा॥1॥
भावार्थ:-श्री रामचन्द्रजी ने कहा- लक्ष्मण! बड़ा अच्छा घाट है। अब यहीं कहीं ठहरने की व्यवस्था करो। तब लक्ष्मणजी ने पयस्विनी नदी के उत्तर के ऊँचे किनारे को देखा (और कहा कि-) इसके चारों ओर धनुष के जैसा एक नाला फिरा हुआ है॥।1॥
* नदी पनच सर सम दम दाना। सकल कलुष कलि साउज नाना॥
चित्रकूट जनु अचल अहेरी। चुकइ न घात मार मुठभेरी॥2॥
भावार्थ:-नदी (मंदाकिनी) उस धनुष की प्रत्यंचा (डोरी) है और शम, दम, दान बाण हैं। कलियुग के समस्त पाप उसके अनेक हिंसक पशु (रूप निशाने) हैं। चित्रकूट ही मानो अचल शिकारी है, जिसका निशाना कभी चूकता नहीं और जो सामने से मारता है॥2॥
* अस कहि लखन ठाउँ देखरावा। थलु बिलोकि रघुबर सुखु पावा॥
रमेउ राम मनु देवन्ह जाना। चले सहित सुर थपति प्रधाना॥3॥
भावार्थ:-ऐसा कहकर लक्ष्मणजी ने स्थान दिखाया। स्थान को देखकर श्री रामचन्द्रजी ने सुख पाया। जब देवताओं ने जाना कि श्री रामचन्द्रजी का मन यहाँ रम गया, तब वे देवताओं के प्रधान थवई (मकान बनाने वाले) विश्वकर्मा को साथ लेकर चले॥3॥
* कोल किरात बेष सब आए। रचे परन तृन सदन सुहाए॥
बरनि न जाहिं मंजु दुइ साला। एक ललित लघु एक बिसाला॥4॥
भावार्थ:-सब देवता कोल-भीलों के वेष में आए और उन्होंने (दिव्य) पत्तों और घासों के सुंदर घर बना दिए। दो ऐसी सुंदर कुटिया बनाईं जिनका वर्णन नहीं हो सकता। उनमें एक बड़ी सुंदर छोटी सी थी और दूसरी बड़ी थी॥4॥
दोहा :
* लखन जानकी सहित प्रभु राजत रुचिर निकेत।
सोह मदनु मुनि बेष जनु रति रितुराज समेत॥133॥
भावार्थ:-लक्ष्मणजी और जानकीजी सहित प्रभु श्री रामचन्द्रजी सुंदर घास-पत्तों के घर में शोभायमान हैं। मानो कामदेव मुनि का वेष धारण करके पत्नी रति और वसंत ऋतु के साथ सुशोभित हो॥133॥
मासपारायण, सत्रहवाँ विश्राम
चौपाई :
* अमर नाग किंनर दिसिपाला। चित्रकूट आए तेहि काला॥
राम प्रनामु कीन्ह सब काहू। मुदित देव लहि लोचन लाहू॥1॥
भावार्थ:-उस समय देवता, नाग, किन्नर और दिक्पाल चित्रकूट में आए और श्री रामचन्द्रजी ने सब किसी को प्रणाम किया। देवता नेत्रों का लाभ पाकर आनंदित हुए॥1॥
* बरषि सुमन कह देव समाजू। नाथ सनाथ भए हम आजू॥
करि बिनती दुख दुसह सुनाए। हरषित निज निज सदन सिधाए॥2॥
भावार्थ:-फूलों की वर्षा करके देव समाज ने कहा- हे नाथ! आज (आपका दर्शन पाकर) हम सनाथ हो गए। फिर विनती करके उन्होंने अपने दुःसह दुःख सुनाए और (दुःखों के नाश का आश्वासन पाकर) हर्षित होकर अपने-अपने स्थानों को चले गए॥2॥
* चित्रकूट रघुनंदनु छाए। समाचार सुनि सुनि मुनि आए॥
आवत देखि मुदित मुनिबृंदा। कीन्ह दंडवत रघुकुल चंदा॥3॥
भावार्थ:-श्री रघुनाथजी चित्रकूट में आ बसे हैं, यह समाचार सुन-सुनकर बहुत से मुनि आए। रघुकुल के चन्द्रमा श्री रामचन्द्रजी ने मुदित हुई मुनि मंडली को आते देखकर दंडवत प्रणाम किया॥3॥
* मुनि रघुबरहि लाइ उर लेहीं। सुफल होन हित आसिष देहीं॥
सिय सौमित्रि राम छबि देखहिं। साधन सकल सफल करि लेखहिं॥4॥
भावार्थ:-मुनिगण श्री रामजी को हृदय से लगा लेते हैं और सफल होने के लिए आशीर्वाद देते हैं। वे सीताजी, लक्ष्मणजी और श्री रामचन्द्रजी की छबि देखते हैं और अपने सारे साधनों को सफल हुआ समझते हैं॥4॥
दोहा :
* जथाजोग सनमानि प्रभु बिदा किए मुनिबृंद।
करहिं जोग जप जाग तप निज आश्रमन्हि सुछंद॥134॥
भावार्थ:-प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने यथायोग्य सम्मान करके मुनि मंडली को विदा किया। (श्री रामचन्द्रजी के आ जाने से) वे सब अपने-अपने आश्रमों में अब स्वतंत्रता के साथ योग, जप, यज्ञ और तप करने लगे॥134॥
यह सुधि कोल किरातन्ह पाई। हरषे जनु नव निधि घर आई॥
कंद मूल फल भरि भरि दोना। चले रंक जनु लूटन सोना॥1॥
भावार्थ:-यह (श्री रामजी के आगमन का) समाचार जब कोल-भीलों ने पाया, तो वे ऐसे हर्षित हुए मानो नवों निधियाँ उनके घर ही पर आ गई हों। वे दोनों में कंद, मूल, फल भर-भरकर चले, मानो दरिद्र सोना लूटने चले हों॥1॥
* तिन्ह महँ जिन्ह देखे दोउ भ्राता। अपर तिन्हहि पूँछहिं मगु जाता॥
कहत सुनत रघुबीर निकाई। आइ सबन्हि देखे रघुराई॥2॥
भावार्थ:-उनमें से जो दोनों भाइयों को (पहले) देख चुके थे, उनसे दूसरे लोग रास्ते में जाते हुए पूछते हैं। इस प्रकार श्री रामचन्द्रजी की सुंदरता कहते-सुनते सबने आकर श्री रघुनाथजी के दर्शन किए॥2॥
* करहिं जोहारु भेंट धरि आगे। प्रभुहि बिलोकहिं अति अनुरागे॥
चित्र लिखे जनु जहँ तहँ ठाढ़े। पुलक सरीर नयन जल बाढ़े॥3॥
भावार्थ:-भेंट आगे रखकर वे लोग जोहार करते हैं और अत्यन्त अनुराग के साथ प्रभु को देखते हैं। वे मुग्ध हुए जहाँ के तहाँ मानो चित्र लिखे से खड़े हैं। उनके शरीर पुलकित हैं और नेत्रों में प्रेमाश्रुओं के जल की बाढ़ आ रही है॥3॥
* राम सनेह मगन सब जाने। कहि प्रिय बचन सकल सनमाने॥
प्रभुहि जोहारि बहोरि बहोरी। बचन बिनीत कहहिंकर जोरी॥4॥
भावार्थ:-श्री रामजी ने उन सबको प्रेम में मग्न जाना और प्रिय वचन कहकर सबका सम्मान किया। वे बार-बार प्रभु श्री रामचन्द्रजी को जोहार करते हुए हाथ जोड़कर विनीत वचन कहते हैं-॥4॥
दोहा :
* अब हम नाथ सनाथ सब भए देखि प्रभु पाय।
भाग हमारें आगमनु राउर कोसलराय॥135॥
भावार्थ:-हे नाथ! प्रभु (आप) के चरणों का दर्शन पाकर अब हम सब सनाथ हो गए। हे कोसलराज! हमारे ही भाग्य से आपका यहाँ शुभागमन हुआ है॥135॥
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1 окт 2024