चिपको आन्दोलन की पृष्ट भूमि| mp online test|MPPSC 2024
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Chipko Andolan (चिपको आंदोलन) की पृष्ठभूमि भारत में पर्यावरण संरक्षण के एक महत्वपूर्ण आंदोलन के रूप में देखी जाती है। यह आंदोलन 1970 के दशक में उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा) के हिमालयी क्षेत्र में शुरू हुआ था। इसका मुख्य उद्देश्य वनों की अंधाधुंध कटाई को रोकना और पेड़ों को बचाना था।
इस आंदोलन की शुरुआत 1973 में गौरा देवी और स्थानीय ग्रामीणों के एक समूह द्वारा की गई थी, जिन्होंने उत्तराखंड के चमोली जिले में पेड़ों को कटने से बचाने के लिए पेड़ों से चिपक कर विरोध किया। इस आंदोलन को "चिपको" नाम इसलिए मिला क्योंकि इसमें लोग पेड़ों से चिपक कर उन्हें काटने से रोकते थे।
पृष्ठभूमि:
1. वन संसाधनों का शोषण: ब्रिटिश शासन के समय से ही वनों का शोषण बढ़ गया था, और आजादी के बाद भी पेड़ों की व्यावसायिक कटाई जारी रही। स्थानीय ग्रामीण, जिनका जीवन जंगलों पर निर्भर था, इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए।
2. स्थानीय जीवन पर प्रभाव: ग्रामीण इलाकों में लोग जल, ईंधन, चारा और अन्य जीवनोपयोगी वस्तुओं के लिए वनों पर निर्भर थे। वन कटाई के कारण इन संसाधनों की कमी हो गई, जिससे लोगों की आजीविका पर बुरा प्रभाव पड़ा।
3. महिलाओं की प्रमुख भूमिका: इस आंदोलन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही, क्योंकि वे जंगलों पर अधिक निर्भर थीं। गौरा देवी और अन्य महिलाओं ने न सिर्फ पर्यावरण की सुरक्षा की, बल्कि अपने समुदाय की आजीविका के लिए भी संघर्ष किया।
चिपको आंदोलन का प्रभाव:
इस आंदोलन के बाद भारत में वनों की कटाई पर नए कानून लागू किए गए और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ी। यह आंदोलन दुनिया भर में पर्यावरण आंदोलनों के लिए एक प्रेरणा बन गया।
10 окт 2024