हमारे शरीर का संतुलन बनाए रखने में भीतरी कान में मौजूद तरल पदार्थ बहुत बड़ी भूमिका निभाता है. शरीर के गतिशील होने की स्थिति में यह तरल पदार्थ मस्तिष्क को लगातार सिग्नल देता है. मस्तिष्क से प्राप्त होने वाले इन संदेशों के आधार पर ही चलने और बैठने के दौरान शरीर का संतुलन बना रहता है. ठीक इसी तरह हमारी आंखें भी मस्तिष्क को दृश्य सम्बन्धी सिग्नल भेजती रहती हैं. पहाड़ी मोड़ों और खराब रास्तों पर यात्रा के दौरान हमारा शरीर बहुत हिचकोले लेता है और अनिश्चित रूप से हिलता है. जबकि इसी दौरान हमारी आंखें बस या कार के अंदर का स्थिर दृश्य देख रही होती है जो सामान्यतः स्थिर ही होता है. (बाहर का दृश्य भी ध्वनियों से मेल नहीं खा रहा होता है). आँखों और कान के तरल पदार्थ द्वारा भेजे गए असंतुलित संदेशों के कारण हमारा दिमाग़ ‘कन्फ्यूज’ हो जाता है. दिमाग़ इस स्थिति को गड़बड़ी का संदेश या किसी ज़हर का दुष्प्रभाव समझता है और शरीर में उपस्थित वोमेटिंग सेंटर ( Vomiting Center ) को उल्टी करवाने का संदेश दे देता है. आमतौर पर मोसन सिकनेस का सम्बंध पेट से समझा जाता है लेकिन इसका असली कारण असंतुलन के कारण मस्तिष्क से मिलने वाला सन्देश ही है.
हेम पन्त के लेख पहाड़ी रास्तों में सफ़र करने पर क्यों होती है उल्टियां के आधार पर
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1 окт 2024