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बुद्ध-चर्चा 

desharyana देस हरियाणा
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विकास साल्याण जी ने बताया कि आज का दिन हमारे लिए ही नहीं समस्त मानव जाति के लिए हर्ष का दिन है क्योंकि आज के दिन ही महात्मा बुद्ध का जन्म और परिनिर्वाण दिवस हम मनाते हैं। आज हमारे लिए सबसे अधिक हर्ष की बात यही है कि कुरुक्षेत्र स्थित सत्यभूमि पर पहला कार्यक्रम बुद्ध पर ही कर रहे है। बुद्ध पर चर्चा करने का मुख्य कारण यही है कि उनके विचारों से हम परिचित हों और उसे आगे बढ़ाने का काम करें। बुद्ध के चिन्तन पर आज पूरे विश्व में विचार किया जा रहा है। बुद्ध को समझने के अनेक दृष्टिकोण है जिनके माध्यम से बुद्ध पर चर्चा की जा सकती है। लेकिन सबसे प्रमुख है सत्य, अहिंसा और न्याय। बुद्ध ने अपने अनुभव के आधार पर अपने सत्य को जाना है। लगातार सत्य का शोधन अपने प्रयासों से किया। बुद्ध ने सामाजिक न्याय की बात करते हुए आर्थिक समानता का भी सिद्धांत दिया। जिस तरह की दुनिया जिस तरह का समाज वो बनाना चाहते थे। कुछ कारणों की वजह से वह नहीं बना पाया लेकिन हमसे जितना हो पाएगा हम बुद्ध के विचारों को घर घर जाकर समझाने का प्रयास करेंगे।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र विभाग के प्राध्यापक मनीष शर्मा जी ने कहा कि आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि आज महामना बुद्ध का जन्मदिवस, बुद्धत्व प्राप्ति, परिनिर्वाण और पश्चिम के महान विद्वान कार्ल मार्क्स जन्मदिवस भी है। बेशक बुद्ध का जन्म 600 ईसा पूर्व हुआ हो लेकिन बुद्ध की प्रासंगिकता आज भी है। बुद्ध ने जो सामाजिक-न्याय का पक्ष है वह सबसे महत्वपूर्ण है। आज केवल भारत में ही नहीं बल्कि पश्चिम के लोग भी बुद्ध की सामाजिक न्याय की दृष्टि का अनुकरण कर रहे है क्योंकि पश्चिमी में सामाजिक न्याय की क्रांति के अग्रदूत मार्क्स को माना जाता है जिनके विचारों से रुस में क्रांति हुई जिससे सत्ता का परिवर्तन हुआ। लेकिन वहीं से एक सवाल खड़ा हुआ कि क्या क्रांति केवल सत्ता परिवर्तन है। अगर सत्ता परिवर्तन है तो उससे सामाजिक न्याय का समाधान मिल जाना चाहिए था लेकिन वह नहीं मिला। मार्क्स के विचारानुसार संस्थागत परिवर्तन हो जाएगा तो सभी तरह का परिवर्तन हो जाएगा। लेकिन बुद्ध का परिवर्तन में संस्थागत के साथ आंतरिक परिवर्तन पर अधिक बल दिया गया है जिसे पाश्चात्य जगत इस समय अधिक ग्रहण कर रहा है। बुद्ध का दर्शन इसी जगत की बात करता है वह परलोक की बात नहीं करता। आज तक यह माना जाता रहा है कि बुद्ध के ज्यादातर अनुयायी दलित थे लेकिन सत्य यह है कि बुद्ध के ज्यादातर अनुयायी स्वर्ण थे। अगर हम अध्यात्म को छोड़ दें तो बुद्ध और कार्ल मार्क्स के दर्शन के सिद्धांत में हम ज्यादा अंतर नहीं पाते हैं। बुद्ध ने समानता, समता की जो बात की थी वही बात वर्षों बाद कार्ल मार्क्स करते दिखाई देते हैं।
देस हरियाणा के संपादक प्रोफेसर सुभाष चंद्र ने बताया कि बुद्ध हमेशा ही हर काल में विद्वानों व आम जनों के मार्गदर्शक रहे हैं। बुद्ध से संबंधित अनेक प्रकार की किंवदंतियां प्रचलित रही हैं। चाहे वह उनके जन्म से संबंधित हों या उनके ज्ञान प्राप्ति को लेकर हों। एक प्रश्न हमेशा लोगों के जहन में आता हैं कि जब बुद्ध धर्म को भारत से उखाड़कर फेंक दिया गया तो वह भारत में जीवित कैसे रहा? इसका सीधा सा उत्तर यह है कि बुद्ध शास्त्रों का देवता या महापुरुष नहीं है। उनके मठ तोड़ दिये गए। उनके ग्रंथ जला दिए गये। लोक मानस में फैले बुद्ध के विचारों के कारण ही बुद्ध आज भी जीवित है। जो सिद्धांत बुद्ध ने प्रतिपादित किए वह आम-जन-मानस के हृदय में रच बस गये। इसका परिणाम यह हुआ कि लोक स्मृति में प्रवाहमान रहने के कारण बुद्ध शताब्दियों तक लोक चेतना के माध्यम से समाज में जीवित रहे। बुद्ध के घर सन्यास ग्रहण करने से संबंधित अनेक प्रवाद प्रचलित हैं लेकिन नवीन खोजों के अनुसार जो तथ्य निकल कर आते हैं वह यह है कि बुद्ध जो कि शाक्य साम्राज्य के राजा थे। उनके और पड़ोसी साम्राज्य के मध्य जल विवाद हो जाता है तो बुद्ध के साम्राज्य के सेनापति इस विवाद को युद्ध से निपटाने की सोचते हैं। बुद्ध इससे अपनी असहमति जताते हैं। इस घटना से हमें इतना ज्ञात जरूर हो जाता है कि बुद्ध युद्ध के खिलाफ थे। वे अन्य माध्यमों से इस विवाद का समाधान करने की कोशिश करते हैं। बुद्ध के यही सिद्धांत हमें मध्यकाल के कवियों में दिखाई देते हैं। जहां रैदास, कबीर, नानक, दादू आदि उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए दिखाई देते हैं। इन सभी संतों ने बुद्ध के स्वतंत्रता, समता और प्रज्ञा के विचार को आगे बढ़ाया। हमारे सामने सबसे बड़ा प्रश्न यह आता है नवजागरण में भी जब जोतिबा फुले, अम्बेडकर, रवींद्रनाथ टैगोर आदि बुद्ध के सिद्धांतों को आगे बढ़ाते हुए दिखाई देते हैं तो स्वामी दयानंद या विवेकानंद आदि को बुद्ध के सिद्धांत में वह बात क्यों नहीं दिखाई देती जो ओरों को दिखाई दी? यह शोध का विषय हो सकता है।
रिपोर्ट: गुरदीप भोसले

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14 окт 2024

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Комментарии : 2   
@palturam3259
@palturam3259 Год назад
इस प्रकार की विचार विमर्श पूरे देश में होने चाहिए जिससे भ्रम को दूर करने में मदद मिलेगी। आप सभी विद्वानों को बहुत बहुत साधुवाद अमेठी यूं पी।
@vedparkash2812
@vedparkash2812 Год назад
Respected speakers se nivedan h ki pehle Mahatma Budh dwara batai Sadhna Karen, uske baad un par charcha Karen. Mahatma Buddh par rakhe Gaye een vicharon se Koi labh nahi. Mahatma Budh par Nispax hokar vichar karen, kisi chasme se nahi dekhen.
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