"ब्रह्म" हिन्दू दर्शन में इस सारे विश्व का परम सत्य है और जगत का सार है। वो दुनिया की आत्मा है। वो विश्व का कारण है, जिससे विश्व की उत्पत्ति होती है , जिस पर विश्व आधारित होता है और अन्त में जिसमें विलीन हो जाता है। वो एक और अद्वितीय है। वो स्वयं ही परमज्ञान है, और प्रकाश-स्रोत की तरह रोशन है। वो निराकार, अनन्त, नित्य और शाश्वत है। ब्रह्म सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी है।
मनुष्य का जन्म होता है तो क्षण में ही उसके हृदय में चैतन्य मन से होते हुऐ अवचेतन मन से अंतर्मन से होते हुऐ मन से होते हुए मस्तिष्क में चेतना प्रवेश करती हैं, वही आत्मा है और ये आत्मा किसी मनुष्य की मृत्यु हुई थी तो उसकी चेतना अर्थात आत्मा अपने मन से होते हुऐ अंतर्मन से होते हुए अवचेतन मन से होते हुऐ चैतन्य मन से होते हुऐ दूसरे शरीर में अवचेतन मन से होते हुऐ अंतर्मन से होते हुऐ मन से होते हुए मस्तिष्क में पहुंचती है यही क्रम हर जन्म में होता है ।
जब मनुष्य जागता है तो उसके हृदय से ऊर्जाओं का विखण्डन होते जाता है सबसे पहले हृदय में प्राण शक्ति जिसे ब्रह्म कहते है उसे अव्याकृत ब्रह्म अर्थात सचेता ऊर्जा बनती है वह सचेता ऊर्जा से नादब्रह्म बनता है अर्थात अंतर्मन का निर्माण होता है जिसे ध्वनि उत्पन्न होती है फिर उसे व्याकृत ब्रह्म बनता है मस्तिष्क में चेतना उत्पन्न हो जाती है फिर उस चेतना से पंचमहाभूत बनते है जिसे ज्योति स्वरूप ब्रह्म कहते है सम्पूर्ण शरीर के होने का एहसास होता है फिर मनुष्य कर्म क्रिया प्रतिक्रिया करता है संसार में। अगर सोता है तो मनुष्य ज्योति स्वरूप ब्रह्मचेतना अर्थात व्याकृत ब्रह्म मे समा जाता है फिर वह नादब्रह्म में समा जाता है फिर वह नादब्रह्म अव्याकृत ब्रह्म समा जाता है वह अव्याकृत ब्रह्म प्राण ऊर्जा अर्थात ब्रह्म में समा जाता है इसलिए मनुष्य ही ब्रह्म है ।
ब्रह्म को मन से जानने की कोशिश करने पर मनुष्य योग माया वश उसे परम् ब्रह्म की परिकल्पना करता है और संसार में खोजता है तो अपर ब्रह्म जो प्राचीन प्रार्थना स्थल की मूर्ति है उसे माया वश ब्रह्म समझ लेता है अगर कहा जाऐ तो ब्रह्म को जानने की कोशिश करने पर मनुष्य माया वश उसे परमात्मा समझ लेता है ।
ब्रह्म जब मनुष्य गहरी निद्रा में रहता है तो वह निर्गुण व निराकार ब्रह्म में समा जाऐ रहता है और जब जागता है तो वह सगुण साकार ब्रह्म में होता है अर्थात यह विश्व ही सगुण साकार ब्रह्म है ।
ब्रह्म मनुष्य है सभी मनुष्य उस ब्रह्म के प्रतिबिम्ब अर्थात आत्मा है सम्पूर्ण विश्व ही ब्रह्म है जो शून्य है वह ब्रह्म है मनुष्य इस विश्व की जितना कल्पना करता है वह ब्रह्म है । ब्रह्म स्वयं की भाव इच्छा सोच विचार है । ब्रह्म सब कुछ है और जो नहीं है वह ब्रह्म है ।
ॐ शान्ति विश्वम ||
5 мар 2024