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महाबली पहलवान कीकर सिंह ओर उनकी पफ़स्सि दंड बैठक के शक्ति प्रदर्शन-स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी 

Swami Satyendra SatyaSahib Ji
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महाबली पहलवान कीकर सिंह ओर उनकी पफ़स्सि दंड बैठक के शक्ति प्रदर्शन-स्वामी सत्येंद्र सत्यसाहिब जी।!! महाबली कीकर सिंह सिंधु पहलवान !!
ये जाट पहलवान थे और ये सन् 13 जनवरी सन् 1857 में संयुक्त पंजाब के लाहौर में पिता श्री ज्वाला सिंह के यहां पैदा हुए थे। इनका असली नाम प्रेम सिंह था। लेकिन श्याम वर्ण और शरीर की अत्यधिक विशालता के कारण इनको कुश्ती के अखाड़े में कीकर सिंह कहा जाने लगा। इनका कद 6 फ़ीट 6 इंच(198cm) से ज्यादा लंबा था और भुजाओं की लम्बाई अत्यधिक थी। पहलवानी के शुरुआती दिनों में इनका वजन 121 किलो था, जो आगे चलकर कुश्ती के अंतिम दिनों(सन् 1911कुश्ती से सन्यास ले लिया था) में बढ़कर 162 किलो हो गया था। इनकी लम्बाई, शरीर की विशालता और ताकत को देख कर लोग अचंभित रह जाते थे।इनका नाम कीकर सिंह भी यूँ पड़ा कि,की इनके कुश्ती के गुरु जी को ये कीकर की दातुन तोड़कर ले जाते थे।एक दिन उनके गुरु बोले अरे प्रेम,तेरी मेरे को लायी किकर की दातुन को ओर भी पहलवान मांग कर खत्म कर देते है,यूँ तू अबकी बार ओर ज्यादा सी दातुन लेकर आना ताकि ओर भी पहलवानो को दातुन की कमी न पड़े,बस क्या था,ये कीकर के एक पूरे भरे बड़े पेड़ को ही उखाड़ लाये,ये देख सबने उनकी ताकत का जलवा माना, ओर उसी दिन गुरु जी ने इन्हें कहा कि भई तू तो कीकर से भी मजबूत है,यो तेरा नाम कीकर सिंह ही रखता हूं,ओर तब से ये प्रेम सिंह की बजाय कीकर सिंह केनाम से प्रसिद्ध हो गए।तब
उस समय के राजा महाराजाओं को भी ये विशेष प्रिय थे और कीकर सिंह को समय समय पर अपने अपने राजदरबारों में कुश्ती लड़ने के लिए आमंत्रित किया जाता था। ये जोधपुर,टोंक, दतिया, इंदौर, पटियाला, जम्मू कश्मीर आदि राजाओ के शाही आमंत्रण पर कुश्ती लड़ और जीत चुके थे।उस समय केवल रुस्तमे हिन्द की उपाधि होती थी और ये उस समय रुस्तमे हिन्द रहे। इन्होंने अपनी अंतिम कुश्ती सन् 1911 में अपने चिरप्रतिद्वंदी अति बलशाली कल्लू पहलवान के साथ लड़ी थी। उस समय ये दमे से पीड़ित थे, फिर भी इन्होंने उसकी चुनोती को स्वीकार किया। लेकिन वहां हुए विवादस्पद निर्णय की वजह से ये पराजित घोषित कर दिए गए। अपने पूरे कुश्ती जीवन में ये एकमात्र यही विवादस्पद कुश्ती हारे थे। इस मशहूर महाबली पहलवान का निधन 18 फ़रवरी 1914 में लगभग 57 वर्ष की आयु में इनके गावँ में हुआ था। जहाँ इनकी याद में समाधी बनाई हुए है।जो वहाँ उपेक्षित अवस्था में है।
इनके व्यायाम पफ़स्सि योग की दंड बैठक ही थी,ये प्रत्येक दंड ओर बैठक को बड़ी ही धीमी गति से करते थे।
एक बार उस समय के पहलवानो ने इन्हें बड़ी धीमी धीमी दंड बैठक मारते देख कहा कि-भाई कीकर सिंह,तुम ये कैसी दंड बैठक मारते हो?
तब कीकर सिंह बोले कि भाई,इस दंड बैठक के करने से मुझे कसरत के सभी लाभ मिल जाते है,ये हमारी सबसे प्राचीन बलवान बनने की दंड ओर बैठक है,इसमे बड़ी ताकत ओर लगातार जोर लगाने की छमता ओर लगातार किसी को भी रोके रखने की छमता ओर लगातार किसी भी वजन की खींचने की ताकत और पूरे दिन बिना थके जरा सी देर में ही पूरा शरीर एक दम तरोताज यानी बलि बना रहता है।
वे पहलवान बोले कि भई कीकर सिंह उस कसरत का कोई तख़्तवर नमूना दिखाओ।
तो कीकर सिंह ने अपने खेत में बने जमीन से पानी निकालने की रहट में लगी बेलो से खींचने के दोनों रस्सी को अपने कंधे ओर बांह के बीच से निकाल कर,रहट को खींचना शुरू किया और पूरे रहट के 20 चक्कर लगाकर कुएं से पानी भी निकाल दिया।
ये देख कर सारे पहलवान आश्चर्य चिकित हो उनकी ताकत के प्रसंसा करने लगे।
तब कीकर सिंह ने एक ओर ताकत का चमत्कार दिखाया कि,उसी कुएं में पड़ी एक रस्सी को कुएं की मुंडेर पर दोनों ओर पर जमाकर नीचे से खींचना शुरू किया और जब रस्सी ऊपर आयी तो उसमें एक बड़ी भारी बोरी बंधी थी,सबने उस बोरी को उनके साथ से रस्सी लेकर खींचा तो लगभग ढाई मन की बालू रेत भरी बोरी थी,सब हैरान थे,की इस प्रकार कीकर सिंह रोज इस बोरी को कुएं से खींच ओर छोड़ने के अभ्यास से अपनी शक्ति को बढ़ाते थे।
ऐसे महान पफ़स्सि व्यायाम के महान साधक महान कीकर सिंह पहलवान की मेरा शत शत नमन....

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10 окт 2024

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