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यह चली जिस पे वह जीने की कसम खाने लगे | Marsia-e-Pyare Sahab Rasheed | Urdu Marsiya | Urdu Poetry | 

Sunil Batta Films
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Channel- Sunil Batta Films
Documentary on Marsia (Urdu Poetry) - Marsia- e - Pyare Sahab Rasheed
Produced & Directed by Sunil Batta, Voice- Navneet Mishra, Camera-Chandreshwar Singh Shanti, Production- Dhruv Prakesh, Camera Asst.- Runak Pal, Kuldeep Shukla,
Synopsis of the film-
मर्सिया उर्दू शायरी में अपनी मुन्फरिद आन बान के सबब जबरदस्त अहमियत का हामिल है। मर्सिये का तअल्लुक उर्फे आम में वाकेआते करबला से है। जिसमें हज़रत इमाम हुसैन और दीगर शोहादाऐ करबला का तज़किरा होता है और सामिईन गमें हुसैन में आंसू बहाते हैं। मर्सिया के माने हुज़्नो यास के हैं लेकिन मर्सिया अपने इस माने तक महदूद न रहकर उस बयान को कहा गया है जिसमें किसी की मौत पर इज़हारे रंजो अलम किया जाए।
दबिस्ताने इश्क के अहम रुक्न तो इश्क़ और तअश्शुक़ हैं। जिन्हें ज़बानों बयान में इस्लाही कोशिशों की वजह से मकामें खास हासिल है। इश्क और तअश्शुक के बाद इन फ़िकरों के साथ जिस मर्सियागो ने सबसे ज्यादा काम किया और रिवायती अंदाज़ अपनाने के साथ-साथ नुदरते कलाम और जिद्दत पसंद तबियत से माहौल और अवाम में महबूब बना वह नामे नामी प्यारे साहब रशीद का है।
मुस्तफा मिर्जा नाम और रशीद तख्ल्लुस था। प्यारे साहब उनकी उर्फियत थी और रशीद अपनी उर्फियत प्यारे साहब से ही मशहूर हुए। मीर इश्क के भाई अहमद मिर्जा, साहिब के साहब जादे थे। मिर्जा साबिर की शादी मीर अनीस की बेटी से हुयी थी। इस वजह से मीर इश्क उन के हक़ीक़ी चचा और मीर अनीस हक़ीक़ी नाना थे। इसलिए अनीस और इश्क़ दोनों से फैज़ियाब हुए। रशीद की पैदाईश मुहल्ला राजा बाजार लखनऊ में 5 मार्च 1846 को हुई थी। रशीद की शादी उनके मामु, मीर असकरी की साहबजादी से हुई थी।
मीर अनीस अपने नवासे रशीद को बहुत चाहते थे। जब रशीद ने शायरी शुरू की तो नाना मीर अनीस ने बहुत हौसला अफजाई की। और सिलसिलऐ सुखन जारी रखने के लिए चचा मीर इश्क से कलाम में इस्लाह लेने को कहा और कभी-कभी खुद भी इस्लाह दे दिया करते थे।
उर्दू मर्सियों को अदबी, तहज़ीबी, सक़ाफती, समाजी और अख्लाकी कद्रों का तरजुमान कहा जा सकता है। लखनऊ में उर्दू मर्सिये तखलीकी जवाहिर से लबरेज़ हुए। मर्सिये अपने रिवायती गिरिया व आहोबुका के मज़ामीन के बजाऐ तहज़ीबो तमद्दुन और सक़ाफत की पहचान बन गया।
रशीद के पढ़ने का अंदाज निहायत सादा था। इस सिलसिले में उन्हें मीर अनीस का तरीक़ा पसंद था और उसी तर्ज पर वह खुद भी पढ़ा करते थे। अपनी नर्म और पुरतासीर आवाज़ के जादू से उन्हें मजलिसों पर दस्तरस हासिल रहती थी। मजलिस के शुरका बहुत ही तवज्जोह से आपकी ज़ाकिरी सुनते और महज़ूज़ होते थे। रज्म के बयान में रशीद घोड़े और तलवारों की भी खूब तारीफ़ ओर मदह सराई करते हैं। रशीद ने भी अपने बुजुर्गों की पैरवी करते हुए घोड़े और तलवार के तमाम जरूरी लवाज़िमात पेश कर दिये हैं। घोड़े और तलवार की तारीफ़ में तखय्युल आफ़रीनी और लताफ़ते ख्याल का बहुत ही अच्छा और खूबसूरत नमूना पेश है-
इस रख़्श को अब्बास सा असवार संभाले
दौड़े जो सबा साथ पड़ें पांव में छाले
नरग़ा में जहां, पहलुओं से मिल गये भाले
रहवार ने गोया, परे परवाज़ निकाले
सब शामियों से भर के तुर्रा रा निकल आया
शब खत्म हुई, सुबह का तारा निकल आया
यह चली जिस पे वह जीने की कसम खाने लगे
अब्र वह जिस से फिज़ा अब्र सिफ़त छाने लगे
आप ऐसी है कि हर बहर में मौज आने लगे
लचक ऐसी है कि दिल बर्क का थर्राने लगे
कब किसी दिल में दम जलवा गरी थमती है
कहीं शीशे में उतर कर यह परी फिरती है।
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Опубликовано:

 

5 сен 2019

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Комментарии : 4   
@Q4Curiosity
@Q4Curiosity 3 года назад
❤️❤️❤️❤️😭
@JauhariProperty
@JauhariProperty 4 года назад
Subha allah..
@SunilBattaFilms
@SunilBattaFilms 4 года назад
Shukriya🙏🙏🙏🙏
@satyamandal5293
@satyamandal5293 2 года назад
Hi BB hu
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