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रामचरितमानस मूलपाठ: सुन्दरकाण्ड(दोहा:१०-२५) 

RamcharitManas-Kashi
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रामचरितमानस मूलपाठ: सुन्दरकाण्ड प्लेलिस्ट
• रामचरितमानस मूलपाठ:सुन...
दो. भवन गयउ दसकंधर इहाँ पिसाचिनि बृंद।
सीतहि त्रास देखावहि धरहिं रूप बहु मंद ॥ १० ॥
त्रिजटा नाम राच्छसी एका। राम चरन रति निपुन बिबेका ॥
सबन्हौ बोलि सुनाएसि सपना। सीतहि सेइ करहु हित अपना ॥
सपनें बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी ॥
खर आरूढ़ नगन दससीसा। मुंडित सिर खंडित भुज बीसा ॥
एहि बिधि सो दच्छिन दिसि जाई। लंका मनहुँ बिभीषन पाई ॥
नगर फिरी रघुबीर दोहाई। तब प्रभु सीता बोलि पठाई ॥
यह सपना में कहउँ पुकारी। होइहि सत्य गएँ दिन चारी ॥
तासु बचन सुनि ते सब डरीं। जनकसुता के चरनन्हि परीं ॥
दो. जहँ तहँ गईं सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दिवस बीतें मोहि मारिहि निसिचर पोच ॥ ११ ॥
त्रिजटा सन बोली कर जोरी। मातु बिपति संगिनि तैं मोरी ॥
तजौं देह करु बेगि उपाई। दुसहु बिरहु अब नहिं सहि जाई ॥
आनि काठ रचु चिता बनाई। मातु अनल पुनि देहि लगाई ॥
सत्य करहि मम प्रीति सयानी। सुनै को श्रवन सूल सम बानी ॥
सुनत बचन पद गहि समुझाएसि। प्रभु प्रताप बल सुजसु सुनाएसि ॥
निसि न अनल मिल सुनु सुकुमारी। अस कहि सो निज भवन सिधारी ॥
कह सीता बिधि भा प्रतिकूला। मिलहि न पावक मिटिहि न सूला ॥
देखिअत प्रगट गगन अंगारा। अवनि न आवत एकउ तारा ॥
पावकमय ससि स्त्रवत न आगी। मानहुँ मोहि जानि हतभागी ॥
सुनहि बिनय मम बिटप असोका। सत्य नाम करु हरु मम सोका ॥
नूतन किसलय अनल समाना। देहि अगिनि जनि करहि निदाना ॥
देखि परम बिरहाकुल सीता। सो छन कपिहि कलप सम बीता ॥
सो. कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारी तब।
जनु असोक अंगार दीन्हि हरषि उठि कर गहेउ ॥ १२ ॥
तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर ॥
चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी ॥
जीति को सकइ अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई ॥
सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना ॥
रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा ॥
लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई ॥
श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई। कहि सो प्रगट होति किन भाई ॥
तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैंठीं मन बिसमय भयऊ ॥
राम दूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की ॥
यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी ॥
नर बानरहि संग कहु कैसें। कहि कथा भइ संगति जैसें ॥
दो. कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास ॥
जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास ॥ १३ ॥
हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी। सजल नयन पुलकावलि बाढ़ी ॥
बूड़त बिरह जलधि हनुमाना। भयउ तात मों कहुँ जलजाना ॥
अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी। अनुज सहित सुख भवन खरारी ॥
कोमलचित कृपाल रघुराई। कपि केहि हेतु धरी निठुराई ॥
सहज बानि सेवक सुख दायक। कबहुँक सुरति करत रघुनायक ॥
कबहुँ नयन मम सीतल ताता। होइहहि निरखि स्याम मृदु गाता ॥
बचनु न आव नयन भरे बारी। अहह नाथ हौं निपट बिसारी ॥
देखि परम बिरहाकुल सीता। बोला कपि मृदु बचन बिनीता ॥
मातु कुसल प्रभु अनुज समेता। तव दुख दुखी सुकृपा निकेता ॥
जनि जननी मानहु जियँ ऊना। तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना ॥
दो. रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर।
अस कहि कपि गद गद भयउ भरे बिलोचन नीर ॥ १४ ॥
कहेउ राम बियोग तव सीता। मो कहुँ सकल भए बिपरीता ॥
नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू। कालनिसा सम निसि ससि भानू ॥
कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा। बारिद तपत तेल जनु बरिसा ॥
जे हित रहे करत तेइ पीरा। उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा ॥
कहेहू तें कछु दुख घटि होई। काहि कहौं यह जान न कोई ॥
तत्त्व प्रेम कर मम अरु तोरा। जानत प्रिया एकु मनु मोरा ॥
सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं। जानु प्रीति रसु एतेनहि माहीं ॥
प्रभु संदेसु सुनत बैदेही। मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही ॥
कह कपि हृदयँ धीर धरु माता। सुमिरु राम सेवक सुखदाता ॥
उर आनहु रघुपति प्रभुताई। सुनि मम बचन तजहु कदराई ॥
दो. निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु।
जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु ॥ १५ ॥
जौं रघुबीर होति सुधि पाई। करते नहिं बिलंबु रघुराई ॥
रामबान रबि उएँ जानकी। तम बरूथ कहँ जातुधान की ॥
अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई। प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई ॥
कछुक दिवस जननी धरु धीरा। कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा ॥
निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं। तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं ॥
हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना। जातुधान अति भट बलवाना ॥
मोरें हृदय परम संदेहा। सुनि कपि प्रगट कीन्ह निज देहा ॥
कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतिबल बीरा ॥
सीता मन भरोस तब भयऊ। पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ ॥
दो. सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल।
प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल ॥ १६ ॥
मन संतोष सुनत कपि बानी। भगति प्रताप तेज बल सानी ॥
आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना। होहु तात बल सील निधाना ॥
अजर अमर गुननिधि सुत होहू। करहुँ बहुत रघुनायक छोहू ॥
करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना। निर्भर प्रेम मगन हनुमाना ॥
बार बार नाएसि पद सीसा। बोला बचन जोरि कर कीसा ॥
अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता। आसिष तव अमोघ बिख्याता ॥
सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा। लागि देखि सुंदर फल रूखा ॥
सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी। परम सुभट रजनीचर भारी ॥
तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं। जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं ॥
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30 сен 2024

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Комментарии : 9   
@crazyactivity741
@crazyactivity741 9 месяцев назад
Jai shree Ram every comment reader
@AkashCBh
@AkashCBh 9 месяцев назад
Thanks! हरी ॐ!
@sanjaypohila2286
@sanjaypohila2286 9 месяцев назад
नमो राघवाय सीता राम जी की जय 🙏🌹🚩
@s.govindsingh9820
@s.govindsingh9820 9 месяцев назад
Mahaveer Bajrangi ki jay ho.
@ramdayalpatel2745
@ramdayalpatel2745 9 месяцев назад
Jay shree Sita Ram Ji ki sada hi Jay ho
@SandeepUpadhyay-m3j
@SandeepUpadhyay-m3j 9 месяцев назад
जय श्री सीताराम❤🙏⛳🙏🚩🙏❤
@lalitbhaithakkar3182
@lalitbhaithakkar3182 5 месяцев назад
Jay siyaram
@SamudraguptNagda-ok6pf
@SamudraguptNagda-ok6pf 9 месяцев назад
Jay shree ram ❤
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@krishndevpandit4210 8 месяцев назад
Jay shri ram
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