सभी सत्रों में बताए गए, रखे गए विचारों को कार्यान्वित कैसे किया जाए उसका पाथेय समापन सत्र, अंतिम सत्र में प्राप्त हुआ। सुश्री इन्दुमति काटदरे ने इस सत्र में मार्गदर्शन करते हुए बताया कि स्वतंत्र विकसित करने हेतु, सनातन संस्कृति के मूल्यों के आधारित व्यवस्थाएं विकसित करने के हेतु, प्रथम आवश्यक पहलू यह है कि उसके लिए हम सबके मन में चाह होनी चाहिए। वह माहौल बनना चाहिए जहां सभी के मन, विचार और कर्मों में स्वतंत्र होने की चाह प्रतिबिंबित हो। जिसके चलते भारतीय होने का आत्मविश्वास बढ़ेगा, आत्म सम्मान बढ़ेगा। उन्होंने समझाया कि क्यों हम अपने ही मूल्यों से, अपने ही ज्ञान से विमुख और विस्मृत हो रहे हैं ? आगे उन्होंने बताया कि उसके बाद स्वतंत्रता के लिए आवश्यक साहस और सामर्थ्य का विकास करना। एक बहुत ही सुंदर उदाहरण उन्होंने बताया कि शौनक ऋषि जो भृगु वंशी ऋषि थे और अपने गुरुकुल की व्यवस्था सुचारू रूप से निहित कर रहे थे उन्होंने पूरे भारतवर्ष से गुरुजन, ऋषियों को नैमिषारण्य नामक जगह पर सम्मिलित किया और युगानुकूल व्यवस्थाएं निर्मित करने हेतु १२ सालों तक संशोधन, अध्ययन कार्य किया और युगानुकूल व्यवस्था का गठन किया। अब फिर वही समय आया है अब प्रबुद्ध जनों को साथ मिलकर अपनी बौद्धिक और आध्यात्मिक क्षमता को स्वतंत्रता के साथ कार्यान्वित करना है। उसके लिए आवश्यक समय, साहस और सामर्थ्य जुटाना है और सही अर्थ में स्वतंत्र को प्रस्थापित करना है।
इस एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में पूरे भारत से ८०० से ज्यादा लोग सम्मिलित हुए थे। संगोष्ठी के विचार से लेकर सुचारू रूप से संपन्न होने तक का श्रेय भारतीय विचार मंच के सभी सदस्य, उनके प्रयत्न को जाता है।
24 сен 2022