स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर: बहुआयामी विमर्श
कृष्ण पक्ष चतुर्थी, विक्रम संवत २०७९ ( आंग्ल दिनांक १४ सितम्बर, २०२२ ) बुधवार के दिन 'भारतीय विचार मंच' द्वारा 'स्वाधीनता से स्वतंत्रता की और: बहुआयामी विमर्श' विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न हुई।
प्रथम सत्र का विषय था, 'संस्कृति और सभ्यता के पाश्चात्य परिवेश से स्वातंत्र्य की ओर।' प्रस्तुतकर्ता डॉ. सुधांशु त्रिवेदी ने भाषा दिवस के साथ स्व के आयाम को जोड़कर महत्वपूर्ण बात बताई की भाषा से विचार प्रणाली बनती है इसीलिए हमें मातृभाषा को, स्व की भाषा संस्कृत को महत्व देना चाहिए। भाषा से ही भाव आता है और भाव से ही सर्जन होता है। हमारे शास्त्र बताते हैं कि सृष्टि का सर्जन लय से हुआ है और जब लय ही नहीं रहता तो प्रलय निश्चित है। विदेशी आक्रांता और खासकर ब्रिटिशों ने सबसे पहले भाषा का प्रभाव खत्म किया और Stage of Demoralization, Stage of Desabilization, Stage of Revolution and Stage of Normalisation के द्वारा हमें स्वाधीनता तो दे दी पर स्वतंत्रता से हमें दूर ही रखा। वरना आज जेनेटिक्स के पिता वाटसन क्रीक नहीं हरगोविंद खुराना होते, हवाई जहाज की खोज के लिए दुनिया राइट ब्रदर्स को नहीं शिवकर बापूजी तलपडे को याद करती। उन्होंने बहुत अच्छी बात बताई कि अगर आज दुनिया की लीडिंग कंपनी में हमारे भारतीय सीईओ बन रहे हैं वही, उन्हीं लीडिंग कंपनी के मालिक भारत में हिमालय की पवित्र धरा पर मन की शांति की खोज में आते हैं। बहुत ही उचित उदाहरण दिया कि जब ताम्रपत्र पर हम लिखते थे तो हमारे लिए वह हार्ड कॉपी थी, जब भोजपत्र आए तो वह हार्ड कॉपी और ताम्रपत्र सॉफ्ट कॉपी बन गए, वैसे ही जैसे डिजिटल डाटा स्टोरेज सिस्टम आते ही सारे कागजी दस्तावेज हार्ड कॉपी बन गए तो क्या हमारी श्रुति परंपरा सॉफ्ट कॉपी नहीं है ? इससे हमें वही समझना चाहिए कि विकास के लिए देश छोड़ना, परंपरा छोड़ना ना सोचें, अपितु विकास के लिए स्व के विविध आयामों पर चिंतन, मनन किया जाए और कैसे स्व आधारित व्यवस्थाएं बुनी जाए वह सोचा जाए तभी हम स्वतंत्रता की और हमारा पहला कदम बढ़ा पाएंगे।
इस एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में पूरे भारत से ८०० से ज्यादा लोग सम्मिलित हुए थे। संगोष्ठी के विचार से लेकर सुचारू रूप से संपन्न होने तक का श्रेय भारतीय विचार मंच के सभी सदस्य, उनके प्रयत्न को जाता है।
24 сен 2022