इस चैनल पर आर्य समाज और वेद प्रचार के कार्यक्रम को चलवाने हेतु और कार्यक्रम की कवरेज हेतु संपर्क करें l दिलबाग आर्य (M.D) 9354867000 हर्षित शर्मा (Camera & Editor) 8814835357
मैं आर्य समाजी नहीं हूँ और ना ही मैं उनकी विचारधारा से सहमत हूँ। परन्तु इस्लाम और ईसाईयत के संकट का सामना करने के लिए महर्षि दयानन्द सरस्वती, स्वामी श्रद्धानन्द और पण्डित लेख राम का सम्मान करता हूँ।
हे आर्य पंथी ये कहाँ सिद्ध हुआ की वेद ईश्वर वाणी है वैसे वेद का अर्थ ज्ञान होता है और ये ज्ञान सृष्टि के आदि में ईश्वर के द्वारा किस मनुष्य को दिया गया ये किसने देखा और ऐसा चतुर्वेद में कहाँ लिखा हुआ है ये तो वही बात हुई जंगल में मोर नाचा किसने देखा वैसे चतुर्वेद के मृगमरीचिका से बाहर आ जाइये आज चतुर्वेद से ज्यादा सम्मान भगवद गीता का है ये आप आर्य पंथी लोग पचा नहीं पाये तो कहने लगे भगवद गीता कोई अलग ग्रन्थ नहीं है बल्कि महाभारत का हिस्सा है मगर ये क्या विडम्बना है की आप आर्य पंथी 6 अलग अलग भगवद गीता छाप चुके है भले ही भगवद गीता के अर्थ का अनर्थ करने के लिए ही सही........ आपके आर्य पंथी स्वामी जी ये कहाँ साबित कर पाए की वेद ईश्वरीय वाणी या ईश्वरीय ज्ञान है ये तो वही बात हुआ खुद ही खुद से सवाल करो खुद ही खुद को जवाब दो और खुद ही खुद के जवाब से संतुष्ट हो जाओ ये करामात दयानंद अपने पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश में दिखाए थे अब क्या दयानंद के नववैदिक पंथी चेले सबको अपने जैसा जियानी (ज्ञानि) समझते है..... ये आर्य पंथी स्वामी जी जब कक्षा पांच से छठी कक्षा में गए तो इनके यहाँ किताब लगा भूगोल ये सृस्टि के आदि की बात कर रहे थे क्या ****** वैसे जियान (ज्ञान )का क्या स्तर है आर्य पंथियो का इससे समझ आता है वैसे धरती को चपटी बताने वालो और चतुर्वेद को ईश्वरीय वाणी बताने वालो में कोई फर्क नहीं है
नमस्ते स्वामी जी । ऋषि दयानन्द ने केवल हिन्दुओं के सुधार का काम नही बल्कि सभी मतों के सुधार हेतु कार्य किया, तभी तो सत्यार्थ प्रकाश मे सभी मत वालों को समझाया है। जिनको सनातनी कहते हैं वास्तव में पौराणिक हैं। ऋषि दयानन्द ने बताया कि पुराण कुछ वर्षो पहले ही लिखी गयी हैं। इसलिए जो अपने को सनातनी कहते हैं उनको जानना चाहिए कि आप कहते तो सनातनी हो लेकिन बात पुराणो की मानते हो इसलिए पौराणिक हो अगर सनातनी कहलाना चाहते हो तो पुराणों की बातों को छोडो और सनातन बातों (वेद, ऋषि दयानन्द और आर्य समाज) के तर्क संगत विचारों को जानो और मानो।
वेद का अर्थ ही ज्ञान होता है तो इसको ऐसे कहा जायेगा ज्ञान ही ऐसा ज्ञान है जो कौन किसको प्रदत किया इसका कोई प्रमाण नहीं है लेकिन मान लो क्योंकि हम आर्य लोग कह रहे है : - मतलब न खाता न बही जो आर्य लोग कह दे बस वो ही है सही
वेद महापुरुषों की वाणी विचार संदेश या फिर उनके प्रयोग है जो आत्मावलोकन के उपरांत घटित हुए। प्रकृति में ऐसा कोई ईश्वर नहीं जो कोई भाषण दे या फिर किताबों में लिखे। वेदों में महापुरुषों का ज्ञान हैं जो जन्म से मरण तक जीना सिखाता है ।अनुकरणीय है।क्योंकि ईश्वर इंसानो को वर्णो मे बांटने का निम्नतर कार्य नहीं कर्ता। इस संसार में किसी ने ईश्वर को आज तक नहीं देखा है क्योंकि यह एक आध्यात्मिक ऊर्जा है ।
ऐसा नहीं है सारे धर्म ग्रंथ भगवान के ही बनाए हुए हैं और सबका सर एक ही निकलता है सिर्फ भाषा का परिवर्तन है जैसे वेद में छ र परात अक्षर अक्षर प् रात प र वेद वाक्य ऐसे ही कुरान में ला इला इन अल्लाह नामों से पुकारा है सिर्फ भाषा का परिवर्तन है इसका नैना बुध निष्कलंक अर्थात आठ रोल जमा इमाम है जी के अलावा दूसरा कोई नहीं कर सकता
सर्वे भवन्तु सुखिनः के स्थान पर सर्वेषां मंगलम् भूयात् लिख दें तो श्लोक निम्न प्रकार होगा। सर्वेषां मंगलम् भूयात् सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित भाग्भवेत्।। यह गरुड़ पुराण का श्लोक है। यह श्लोक वेद विरुद्ध है। कृपया आर्याभिविनय के प्रथम भाग के 29 वें मंत्र का अर्थ महर्षि स्वामी दयानंद का अवलोकन करें।