#Parsayi #परसाई #शवयात्रा
वे खूंटी पर शव-यात्रा में लपेटा जाने वाला तौलिया तैयार रखते थे। किसी के मरने की ख़बर मिली नहीं कि इतने प्रसन्न होते थे जैसे किसी की शादी हो रही हो। दफ़्तर से छुट्टी ले लेते। घर में और मुहल्ले में ऐलान कर देते हम फलां आदमी की मिट्टी में जा रहे हैं। जब शव को जलाकर लौटते तो इतने प्रसन्न लगते जैसे किसी का जीवन बचाकर आ रहे हों।
एक दिन पड़ोस से एक आदमी आया घबराया हुआ। कहने लगा- कक्का बहुत सीरियस हो गये हैं। जरा डॉक्टर को फोन कर दो। वो बोले- भैया फोन तो खराब है, कहीं और से कर लो। उनको डर था कि कहीं फोन करने से डॉक्टर न आ जाए और कक्काजी बच न जायें। कक्काजी न मरे तो सबेरे तौलिया लपेटकर अर्थी बनाने का कार्यक्रम गड़बड़ हो जायेगा। कक्काजी रात को मर गये। वे मौत का तौलिया लपेटे अर्थी को इस गर्व से तैयार कर रहे थे, जैसे किसी युवक की बारात सजा रहे हों।
मुर्दे के प्रति इतना प्रेम कम देखा गया है। मौत से इतना प्रेम तारीफ़ के लायक है। किसी कथावाचक से उन्होंने सुन लिया था- जो आदमी सौ आदमियों की शवयात्रा में जाता है, उसे स्वर्ग मिलता है, ऐसा शास्त्र कहते हैं। इसीलिए वे उसी तौलिया में जीवन की सार्थकता खोजकर मज़े में जीवन जी रहे हैं। जीवन से ऐसा द्वेष और मृत्यु से ऐसा प्रेम- क्या ही कहा जाये। मनुष्य के भीतर रहस्य की कई परतें होती हैं, कहां तक कोई परतें खोलेगा।
मनुष्य सार्थकता के अहसास के बिना जी नहीं सकता। कोई ज्यादा मुर्दों को जलाने में जीवन की सार्थकता देखता है और कोई जीवन-संघर्ष में। उनने अब सौ शवयात्राएं पूरी कर ली हैं और स्वर्ग में अपना स्थान आरक्षित कर लिया है। अब घनिष्ठ मित्र की मृत्यु पर भी वे शवयात्रा में नहीं जाते। अब न खूंटी पर वह गंदा तौलिया है, न वे भावुक हैं।
- परसाई
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6 окт 2023