पुष्टिमार्गीय नित्य सेवा के शीतकाल के पद
(मार्गशीर्ष कृष्ण 1 से माघ कृष्ण अमावस्या तक)
उत्थापन 1 पद,भोग दर्शन 1 पद,संध्यारती दर्शन 1 पद,
शयन भोग आये 2 पद (ब्यारू),
शयन भोग सरे 2 पद (दूध,बीरी),
शयन दर्शन 1 पद,मान 1 पद,पौढवे 1 पद,आश्रय 1 पद
1:उत्थापन: सुबल श्रीदामा कह्यौ सखन सों अर्जुन शंख बजैये
घर जैवे की भई है बिरियां श्रीगिरिधर लाल जगैयै
ठौर ठौर ते मधुरी धुनि बाजै मधुर मधुर स्वर गैयै
कुंज सदन जागे नंदनंदन मुदित बीरा फल लैयै
हरिदासवर्य के पूरे मनोरथ गोकुल ताप नसैयै
लटकत आवत कमल फिरावत परमानंद बढ़ैयै
2: भोग दर्शन:हमें ब्रजराज लाडिले सों काज
यश अपयश कौ हमें कहा डर कहिनौ होय सो कहि लेउ आज
कैधौं काहू कृपा करीधों न करी जो सनमुख ब्रज नृप युवराज
गोविन्दप्रभु की कृपा चाहिये जो हैं सकल घोष सिरताज
3:संध्यारती दर्शन: आऔ मेरे गोविन्द गोकुल के चन्दा
भई बड़ी बार खेलत यमुना तट वदन दिखाय देउ आनन्दा
गाय आवन की भई हैं विरियाँ दिनमणि किरण होत अति मन्दा
आये मेरे तात मात छतियाँ लाग गोविन्दप्रभु ब्रजजन सुखकंदा
4:शयन भोग आये: लाडिले बोलत है तोहै मैया
संझा समय गोधन संग आवत,चुंबन लेकर गोद बैठैया
मधुमेवा पकवान मिठाई,दूध भात अरु दार बनाई
परमानंद प्रभु करत बियारू,यशुमती देख बहुत सुख पाई
5:शयन भोग आये इन अखियन आगे में लालन एकौ पलछिन होय न न्यारे
बलबल जाऊं बदन देखने कौं तरसत हैं नयनन के तारे
बौहर्यौ सखा बुलाय संग के यही आंगन खेलौ मेरे प्यारे
निरखत रहूं पन्नग की मणि ज्यौं सुंदर बाल विनोद तिहारे
मधुमेवा पकवान मिठाई व्यंजन मीठे खाटे खारे
सूरश्याम कों जोई जोई भावै सोई सोई मांग लेहौ मेरे प्यारे
6शयन भोग सरे(दूध) हॅस हॅस दूध पीवत नाथ
मधुर कोमल बचन कहि कहि प्राण प्यारी साथ
कनक कटोरा भरयौ अमृत दियौ ललिता हाथ
लाडिली अचबाय पहले पाछें आप अघात
चिंतामणि चित बस्यौरी सजनी नाहिन और सुहात
श्यामा श्याम की नवल छवि पर रसिक बल बल जात
7-शयन भोग सरे (बीरी) लै राधे गिरधर दै पठई अपने मुख की सुंदर बीरी।
सुनो हो संदेशौ प्राण प्यारे कौ कित संकुचत आवौ किन नीरी।
घूंघट खोल नैन भर देखूं वहां चलौ प्रीतम की चेरी।
कुंभनदास प्रभु गोवर्धन धर मिल आकों छतिया कर सियरी।
8-शयन दर्शन:-यह मन लाग्यौ री मेरौ सुन्दर श्याम अहीर सों
निश बासर मोहि कल न परत है कैसें राखौ मन धीर सों
घाट बाट मोहि रोकत टोकत ग्वाल बाल संग भीर सों
कृष्णजीवन लछीराम के प्रभु मोहि यों सुध जाय शरीर सों
9-मान कौ पद:-आवत जात हों तौ हार परी री।
ज्यों-ज्यों प्यारौ विनती कर पठवत त्यों त्यों तू गढ़ मान चढ़ी री।
तिहारे बीच परै सोई बाबरी हों चौगान की गेंद भई री।
गोविंदप्रभु को वेग मिल भामिनी सुभग यामिनी जात बही री।
10- पौढ़वे कौ पद:-सखियन रचि रचि सेज बनाई
रंगमहल में पर गये परदा धरी है अँगीठी सुखदाई
सीत समय ग्रीष्म ऋतु कीनी अति सुन्दर वरराई
श्रीविठ्ठल गिरिधारी कृपानिधि पौढे ओढ़ रजाई
11-आश्रय कौ पद: दृढ़ इन चरण चरण केरौ भरोसौ
श्रीवल्लभ नख चंद्र छटा विन सब जग माहि अंधेरौ
साधन और नाहि या कलि में जासों होत निबेरौ
सूर कहा कहै द्विविध आंधरौ बिना मोल कौ चेरौ
डॉ भगवान दास कीर्तनकार, कामवन
(अष्टछाप के श्रीगोविंदस्वामीजी के वंशज)
ડૉ ભગવાન દાસ કીર્તનકાર, કામવન
(અષ્ટછાપ કે શ્રીગોવિંદસ્વામીજી કે વંશજ)
सम्पर्क 9828737151
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24 сен 2024