इस चैनल पर आर्य समाज और वेद प्रचार के कार्यक्रम को चलवाने हेतु और कार्यक्रम की कवरेज हेतु संपर्क करें l दिलबाग आर्य (M.D) 9354867000 हर्षित शर्मा (Camera & Editor) 8814835357
आचार्य चन्द्रेश्वर जी को बहुत बहुत बधाई जो हमारे समूख सच्चाई सत्य सनातन ईतहास श्री कृष्ण जी महाराज का रखा जो ईन भागवत वालों की आंखें खोलने वाला है आशा करते हैं ये भी अपनी कथाओं में श्री कृष्ण जी महाराज का सत्य चरित्र बताएंगे जिससे हिन्दू कौम को अपने पुर्वजों पर गर्व हो। नमस्ते ओ३म् ओ३म् जी
नमस्ते , आचार्य चन्द्रेशजी आर्य श्री कृष्ण महाराज पर आपने सत्य को उजागर किया , उसी प्रकार आप गणपति उत्सव पर गणपति/ गणेशजी की सच्चाई को उजागर करने वाला विडियो बनाईए।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद आप सनातन धर्म की किष्ण भगवान कि बदनामी कि चिंता नहीं करें अब परिवर्तन होना है अलमाइटि ओथोरिटि खुद धरती पर आकर गुप्तमे रहकर परिवर्तन का कायँ कररहे है समय समाप्ति की ओर जा रहा है भारत विष्वगुरु बनना है लाईटहाऊस पावरहाउस बनना है बेहदकी परम महाशाँति 👍🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏
परम महाशाँति सचँ करें आपको कोईभी सवाल का जवाब मिल जाएगा सूक्ष्म दुनिया का भी वहां परिवर्तन की शुरुआत होगयी है स्वपरिवतँन से ही बेहदका विष्वपरिवतँन होना है असँभवका कायँ सँभव होना है बेहदकी आतमाओ ही बेहदका ग्यान समजेगे परम महाशाँति 🙏🙏🙏🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
आचार्य जी गाय पूरी 900000 ही थी इस बात में आपको संशय नहीं हुआ लेकिन भगवान कृष्ण ने बचपन में माखन चुराया इस बात में आपको संशय है क्यों ? जबकि दोनों बातें एक ही पुस्तक में लिखी हुई है इसका अर्थ यह हुआ की जो बात पुराण को पढ़कर आपकी समझ में आ गई या फिर आपको वह बात अच्छी लगी तो आपने मान ली जिस बात का लॉजिक आपकी समझ में नहीं आया और आपको अच्छी नहीं लगी तो आप उसे मानने से इंकार कर रहे हैं अगर आप ने श्रीमद्भागवत महापुराण या फिर महाभारत को अच्छे तरीके से समझा होता तो आप माखन चुराने और रणछोड़ ने को गलत नहीं बताते इन दोनों बातों का लॉजिक क्या है------- माखन क्यों चुराते थे इसके दो कारण हैं 1. नंद बाबा की गाय ही नहीं पूरे ब्रजमंडल की गायों पर कंस का अधिकार था सारा दूध दही और मक्खन गांव वाले खुद ही कंस के पास पहुंचा दिया करते थे घर में जो कुछ भी दूध दही माखन रखा जाता था वह कंस के लिए ही होता था भगवान कृष्ण दूध दही है माखन खाते कम थे लेकिन बिखेरते ज्यादा थे दूध दही की मटकी को तोड़ देते थे जिससे कि वह कंस के पास ना जा सके दूसरा कारण-- वे तो स्वयं भगवान कृष्ण थे लेकिन आम आदमी के बचपन की भी कुछ ना कुछ कहानी होती है बचपन का जो नटखट पन होता है इसे उनके बड़े हंसी मजाक में उड़ा देते हैं लेकिन जैसे जैसे बच्चा बड़ा होते हुए वयस्क अवस्था को प्राप्त करता है और किसी ऊंचे पद पर पहुंच जाता है तो उसके परिवार वाले उसको बार-बार उसके बचपन की यादें सुना सुना कर चिढ़ाते रहते हैं कि तू तो बचपन में यह सब किया करता था और कोई आदमी उस बात का बुरा भी नहीं मानता भगवान कृष्ण ने बचपन में अगर माखन चुराया है तो बड़े होकर कंस जैसे अनेक दुष्टों का वध भी किया है सुदर्शन चक्र भी चलाया है और महाभारत भी किया है हमारे धार्मिक ग्रंथों माखन चोर के साथ साथ यह सारी बातें भी लिखी हुई है भगवान कृष्ण को खुद को रणछोड़ कहलाने पर भी आपत्ति क्यों नहीं हुई -- क्योंकि कालयवन मथुरा पर बार-बार आक्रमण करता रहता था और हमेशा पराजित होकर जाता था लेकिन उन युद्ध में भगवान कृष्ण बार-बार विजय तो हो जाते थे लेकिन उनकी प्रजा की बहुत ज्यादा क्षति हो जाती थी इसीलिए भगवान कृष्ण ने कालयवन को कहीं दूर ले जाकर मृत्युदंड दिया अगर कोई राजा अपनी प्रजा को भी बचा ले और विजय भी हासिल कर ले तो यह उसकी कूटनीति का हिस्सा है फिर भले ही कोई उसे रणछोड़ कहे या कुछ और कहे l मैंने सभी तर्क धार्मिक ग्रंथों के आधार पर दिए हैं आप अगर कोई तर्क देना चाहे तो आपका स्वागत है🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
आचार्य जी का कथन भी सही है और आपका विश्लेषण भी सही है लेकिन आज के परिपेक्ष्य में भागवत कथाकारों ने कृष्ण के साथ राधा का नाम जोड़कर अश्लील गीतों के द्वारा उनको नीचा दिखाने का काम किया जा रहा है यह भी गलत है।
आप सच्चे बाकी सब झूठे। महाभारत के कपटी पात्र की प्रशंसा ठीक नहीं है।जो इसाई मदद कर रहे हैं वह कार्य आप क्यो नही करते औरौ को दोष देना उचित नहीं है बद्री नाथ में बेर का एक भी पेड़ नहीं है झूठ बोलना बंद करें।