सच ही कहा संपत जी ने कि वो भारत कहां जहां गली गली और चौराहों पर भंयकर गर्मी में मीठे और ठंडे पानी की प्याऊ चलती थी। आज गलियों में कंपनी का बोतल में बंद पानी बिकता है। ऐसा भारत बन रहा है।
संपत सरल जी की कविता बहुत अच्छी लगी एक तीर से दो निशा में संपत जी अगर मैं आपकी यह कविता दोबारा सुन लो अगर नहीं तो लीजिए फिर मैं दोबारा आपका सुन लेता हूंधन्यवाद
संपत सरल निश्चित रूप से आप बहुत सटीक तथ्यात्मक निडरता से काव्य पाठ करते हों देश के बहुत बड़े व्यंग्य कार हो आपने झूठे बाचाल मोदी शाह धूर्त को सत्य बात बता कर बेनकाब कर दिया
सम्पत सरल जी आपने ठीके स्कूल मंदिर का नाम लिया,लेकिन मस्जिद का नाम ब्यंग में नही लिया ।जानते हो क्यों सम्पत जी को मालूम है है कि ब्यंग में मस्जिद का नाम लेते तो सरल सम्पत जढ़ सम्पत हो जाते।
Sampat ji aapko sunna bahut Achcha lagta hai lekin aapki Kavita ko Vahi log samajh sakte hain Jo padhe likhe Aur samajhdar Hai Jo kisi ki Bhakti Mein leen Nahin Hai Jinka man saaf Suthra hai kisi ke dabav Mein Nahin Hai Vahi aapke Kavita ka Anand Le sakta hai aur aapki kataksh per lotpot ho jata hai Pranam hai aapko Jo Aisi sthiti mein bhi Apne kam dwara Lok Jagran kar rahe hain aap bahut Sare Logon ki Kismat Mein hi Nahin Ki aapko samajhna To Kya Karen Hamara to Ek bhi Sune bagair gujarta Ho