नाडियां हमारे शरीर के उर्जा पथ हैं जिनके माध्यम से प्राण संचारित होता है और हमारी शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक क्रिया विधि सुचारू रूप से चल पाती है।
नाडियां प्राणिक शरीर से संबंध होती हैं इन्हें भौतिक शरीर से संबंध स्नायु नहीं समझना चाहिए..
चेतना की उच्च अवस्था में योगी नाड़ियों के ऊर्जा प्रवाह को प्रत्यक्ष देख सकता है लेकिन सामान्य अवरुद्ध अवस्था में नाड़ियों का अनुभव करना संभव नहीं...
विभिन्न शास्त्रों के मतानुसार नाड़ियों की संख्या में कुछ भिन्नता देखी जाती है जैसे - गोरक्ष संहिता और हठयोग प्रदीपिका के अनुसार 72000 की संख्या में नाड़ियों का उल्लेख किया गया है जबकि शिव संहिता में नाड़ियों की संख्या 350000 बताई गई है /
हजारों नाडियों में से 72 नाड़ियों को महत्वपूर्ण माना गया है / और उनमें से भी 10 नाड़ियां मुख्य हैं / इन 10 मुख्य नाड़ियों में से 3 सबसे महत्वपूर्ण है जो इडा , पिंगला और सुषुम्ना है यह तीन प्रमुख नाड़ियां मेरुदंड के अंदर स्थित होती हैं और प्रत्येक चक्र से होती हुई जाती है।
इडा नाडी मानसिक , पिंगला नाडी प्राणिक और सुषुम्ना नाडी आध्यात्मिक प्रगति के लिए उत्तरदाई होती है।
इडा , पिंगला और सुषुम्ना मूलाधार चक्र से निकलती है इसके बाद इडा एवं पिंगला मेरुदंड को कुंडली करती हुई प्रवाहित होती हैं जबकि सुषुम्ना मध्य भाग से सीधे ऊपर की ओर जाती है इडा और पिंगला के संतुलित हुए बिना सुषुम्ना जागृत नहीं होती ... सुषुम्ना के जाग्रत होने के बाद योगी को दिव्य अनुभूति होती है और योगी मोह , भ्रम ,अविद्या , क्लेश आदि दोषों से मुक्त हो जाता है।
यही हठयोग का उद्देश्य है और यही परम आनंद की अवस्था...
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7 июн 2021