हनुमान जी और बलराम के बीच हुआ भयंकर युद्ध | Hanuman vs Balram Yudh | क्या हुआ इस युद्ध का परिणाम ?
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एक समय की बात है. भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी में एक सुंदर वाटिका थी. श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम को वह वाटिका बहुत पसंद थी. उस वाटिका का निर्माण उन्होंने ही करवाया था. एक समय की बात है , उस वाटिका में एक बहुत बड़ा वानर घुंस गया और वहां के फल को वह खा रहा था. वह वानर वृद्ध था परंतु साथ ही साथ बड़ा विराट भी था. वाटिका के द्वारपाल उस वानर से भयभीत हो गए और वहां से भाग गए.
उन द्वारपालों ने जाकर बलरामजी को यह सुचना दी कि कोई बड़ा वानर उस वाटिका के अंदर आ गया है और वहां के फल खा रहा है. वह वानर इतना विराट है कि आज तक ऐसा वानर देखने में नहीं आया है. यह सुनकर बलरामजी को क्रोध आ गया और वह तुरंत ही उस वाटिका में पहुँच गए.
उस समय उन्होंने भी देखा उस विराट वानर को और उनको भी लगा यह कोई साधारण वानार नहीं परंतु कोई मायावी है. दरअसल वह वानर कोई और नहीं स्वयं रामभक्त हनुमानजी थे जो श्रीकृष्ण के कहने पर उस स्थान पर आये थे. बलरामजी ने देखा वह वानर बड़े आनंद के साथ वाटिका के फल खा रहा है.
बलरामजी ने उस हनुमानजी से उनका परिचय पूछा परंतु हनुमानजी ने बलरामजी को कोई उत्तर नहीं दिया. उस समय श्रीकृष्ण की माया के कारण बलरामजी भी हनुमानजी को पहचान नहीं पाए और क्रोधित हो गए. उसके बाद बलरामजी और हनुमानजी का युद्ध आरंभ हो गया. उस समय बलरामजी ने बार बार हनुमानजी पर प्रहार किया परंतु हनुमानजी ने उनका हर बार विफल कर दिया.
जब बलरामजी से रहा नहीं गया तो बलरामजी ने अपने सबसे शक्तिशाली शस्त्र का प्रयोग हनुमानजी पर करना चाहा परंतु स्थिति को बिगड़ती हुई देख तुरंत ही वहां पर श्रीकृष्ण प्रकट हो गए और बलरामजी को ऐसा करने से रोक दिया. भगवान श्रीकृष्ण ने जब बताया कि यह वानर कोई और नहीं स्वयं हनुमान है तो बलरामजी को भी अपना पूर्व जन्म याद आ गया और यह भी याद आ गया कि कैसे हनुमानजी ने उस समय उनकी सहायता की थी.
उस समय बलरामजी का क्रोध शांत हो गया और वह हनुमानजी से मिलकर बहुत ही प्रसन्न हो गए. उन्होंने हनुमानजी को गले से लगा दिया और हनुमानजी ने भी बलरामजी से क्षमा मांगी और कहा मैंने जो भी किया वह प्रभु के आदेश पर किया है इसलिए मुझे क्षमा कर दीजिये. उसके बाद श्रीकृष्ण और बलराम हनुमानजी को महल के अंदर ले गए और उनका बहुत बड़ा स्वागत किया.
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7 сен 2024