हे महापुरुष तुम्हारी जय हो, तुम्हारे द्वारा कही गई कथा एक बार नहीं , बार बार सुनने की इच्छा कर रही हैऔर तुमसे मिलने की इच्छा हो रही है परंतु तुम कहा और मैं कहा
जय जय जय श्री राम जय जय जय श्री राम जय जय जय श्री राम जय जय जय श्री राम जय जय जय श्री राम जय जय जय श्री राम जय जय जय श्री राम जय जय जय श्री राम जय जय जय श्री राम जय जय जय श्री राम जय जय जय श्री राम
जय जय श्री राधे कृष्ण महाशय! कवि प्रत्येक शब्द बहुत चिन्तन मनन और निरीक्षण के बाद बोलता है। इसका विशेष ध्यान दें। जिससे भारतीय शिक्षा सभ्यता संस्कृति एवं धर्मशास्त्रों की अवज्ञा का दोष न लगे और शुद्धतम समीक्षा हो। यथा 1- जो तुमने कहा भरत पर कम बोला गया शत्रुघ्न पर कम बोला गया। ये कहकर उन मनीषियों का अपमान किया जिनकी वाणी से आज प्रवक्ता बने हैं। कभी अन्तर्दृष्टि से देख कर भी समीक्षा करिये। यथा तुलसी लिख रहे हैं। तस कहिहउँ हिय हरि के प्यारे। यह सब मैं निज नयनन्ह देखी। फिर काल्पनिकता से परे भाव ज्ञान वैराग्य विवेक विज्ञान भक्ति धर्म विशुद्ध धर्म नीति न्याय मर्यादा शास्त्र और अनुभव प्रमाण के साथ बोलो। कैकेयी की मति सरस्वती फेरने में समर्थ भी है जिसके हृदय का भरत अंश मात्र है उस समुद्र में सरस्वती की गति निराधार वकवास मात्र। आपसे विनत विनम्र निवेदन है कि आप जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तित्व के शोभा के अनुरूप नहीं है। इसको निन्दा नहीं निवेदन समझें। एक अपने सुहृद का। जे श्रद्धा संबल रहित नहिं सन्तन कर साथ। तिन्ह कहुँ मानस अगम अति जिन्हहिं न प्रिय रघुनाथ।। आवत एहि सर अति कठिनाई। राम कृपा बिनु आइ न जाई।। जय जय श्री राधे कृष्ण
जय श्रीराम 🙏🙏🚩🚩 कुमार जी.मैं आप की बहुत कथाऍं सुनती हूं.आपकी देहबोली,आवाज ,पाठांतर बहुत ही अच्छा रहता हैं.पर मेरी आपको एक बिनती हैं की आप राम शब्द उच्चारते हो ना,तो श्रीराम बोला करो please.
दशरथ जैसे अनन्य रामभक्त की आत्मा कभी भी अपने प्रभु को वन गमन का आदेश नहीं दे सकती है, मांग एवं आदेश केकेयी का ही था l प्रभु की रची अनिष्ट की माया को समझकर स्तब्ध एवं मूक होकर रो रोकर प्राण त्याग दिए l अपने बच्चे को वन में भेज कर देखिये आपकी आत्मा का क्या हाल होता है l सोफे पर लेक्चर देना अलग बात है भाई वेदो में पुत्र शोक को जगत का सबसे बड़ा शोक कहा गया है, राम को अलग होने स ाक्षात् अपनी आत्मा से ही अलग होना है, तभी महाराज दशरथ चले गए 🙏🏽
आपके परिवार के संस्कार बहुत उच्च श्रेणी के होंगे जो भारतीय संस्कृति का व्याख्यान गुणगान इतने सुंदर ढंग से कह कर समाज में अच्छे आचरण अच्छे विचारों का सृजन करने के लिए धन्यवाद के पात्र हैं
जय जय श्री राधे कृष्ण भारतीय संस्कृति भारतीय जन मानस तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद है। पर कुछ और सुधार की कामना भी है जैसा कि 1- महाशय विश्वामित्र राजर्षि नहीं ब्रह्मर्षि हैं। उन्हें राजर्षि कहने का अपराध न करें। 2- मानस का शुद्धिकरण के साथ उच्चारण और अध्ययन करें। यथा चितइ पितहिं दीन्हेउ दृढ धर्मा। नहीं है चितइ पितहि दीन्हेउ दृृढ ज्ञाना। है। राम राम कहि राम कहि राम राम कहि राम। तनु परिहर रघुवर विरह राउ गयउ सुर धाम।। इसे भी शुद्ध पढें। सात बार नहीं 6 बार राम कहा है षट्वर्ग के शुद्धीकरणार्थ कड़ी दृष्टि से देखा कहकर मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा का उल्लंघन न करें। अपने शब्दों को सम्हाले। 3- व्याख्या मन मानी न करें मानसानुसार करें।
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00:02 Vishwamitra wants to take Ram for a specific purpose 02:52 Kaushalya's heartfelt blessings and protection for Ram in the jungle 08:05 Ram's deep love and compassion for Bharat 10:53 Ram's concern for his brother and the significance of bearing suffering out of love 16:46 Ram showcases forgiveness and understanding towards Kaikai and Bharat 19:13 Ram's devotion and respect towards his mothers 24:58 Introduction of the poet Gyan Prakash 27:33 The bond of love and companionship between Ram and Sita 32:11 Exploring the character of Ravana in the Ramayan 34:46 Ravana is asked to become the priest for the yagya 39:38 Rama establishes Shivalinga and performs worship 42:09 Importance of Dakshina in the Ramayan story
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