मै एक पडदादी हू और अब जीवन के उस पड़ाव पर हू कि मेरे पास ख़ाली समय बहुत है ‘ मुझे हिन्दी से बहुत प्यार है ,मेरे बेटे ने मुझे Ipad दिया है और मेर जीवन में एक अचमभा सा हो गया है , एक नई दुनिया का दरवाज़ा खुल गया है ,इस आख़िरी पड़ाव में जो रह गया था वह मिल गया बहुत आभारी हू उस ईश्वर की और अपने बेटे की
आपने कहा कि आपके टीचर ने इसलिए आपको चुना क्योंकि आप कम बोलते थे और आपके टीचर आपको आगे लाना चाहते थे। आप सौभाग्यशाली थे जबकि मेरे विद्यालय में तो टीचरों के कुछ ही प्रिय विद्यार्थीयों न पहली से बारहवीं कक्षा तक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और मेरे जैसे कम बोलने वाले काम्प्लेक्स में ही रह गये
Mere dost rangmanch se jud jao ye mera aapse wada hy ki aapme pura pariwartan ho jayega. Mere sath v aapke jysa hal tha or my bohot simat kar rahne wala banda tha rangmanch ne mujhe bohot kuchh diya hy.
सही कहा आज भी विद्यालयों में ऐसा ही माहौल है लेकिन जो हमारे साथ हुआ हम अपने बच्चों के साथ नहीं होने देंगे इसके लिए निश्चित अंतराल पर अपनी बेटी के विद्यालय जाकर अध्यापकों से मिलकर अपनी बेटी को पूर्ण प्रोत्साहन प्रदान कर रहा हूँ।
सचमुच , मनोज भाई की आवाज़ दुष्यंत साब की कविता से शत प्रतिशत न्याय करती है। कविताएं हमेशा सत्य बोलती हैं क्योंकि ये तब जन्म लेती हैं जब वक्त कोई सीधी या टेढ़ी करवट लेता है। दोस्तो , कभी कभी मै भी ये प्रयास करता हूँ। कुछ दिन पहले झमाझम बारिश का आनंद लेते हुए एक कविता लिखी थी, अच्छी लगे तो बताइएगा। मिजाज़ देखकर मौसम का, जज़बातों का तूफान हिलोरें लेने लगा है। सोचा क्यूँ न एक कविता बनाऊँ, तूफ़ान मिटाने को ये ही तो एक जगह है। चिड़ियाँ, कबूतर,गाय बैल सब, जम कर नहाये हैं। गोबर और कूड़े से पुती हुई, गलियों के चेहरे निखर आएं हैं। पीली पीली घास भी आज, जैसे खिलखिला कर हंसती है। पेड़ ऐसे लहरा रहे, जैसे छाई इन पर मस्ती है। खेतों का बिछौना देख लगा, कुदरत यहीं तो बसती है। जर्जर दीवारों ने पहनी जैसे, सुरमयी सी पोशाक है। सूखे नाले सोचते है शायद, हुआ कोई इत्तफाक है। हल्की सी कसक भी है, क्यूँ नही वो दिन लौट आते। मिल कर जब थे सब बारिश में नहाते। अब तो जैसे सब कुछ रोबोट सा हुआ जाता है। बच्चों को पता ही नही कि बारिश में भी नहाया जाता है। बच्चे से कहा मैंने, क्यों नही जाता बाहर? बारिश तेरे लिए बेचैन हो रही है। बच्चा बोला" नही चाचू" बाहर तो रेन हो रही है। हंसी नही निकली, पर दिल भर आया । हजारों लाखों खर्च कर, बस ये है इनको सिखाया ?? जल्दी नही गर संभलेंगे, तो पैरों से ज़मीन निकल जायेगी। जिसने पाला है जीवन भर, ये कुदरत ही हमें निगल जाएगी। मुझ से बढ़कर कोई नही, कुदरत ये एहसास कराती है। हम करते हैं गंदे खिलवाड़ इस से, इसलिए प्रलय भी आती है। आओ सोचें, कुछ सीखें और सिखाएं कुदरत से वजूद है, बच्चों को बताएं। हो सके तो घर का हर सदस्य, एक पौधा जरूर लगाएं। सबका लगाया पौधा, जब पेड़ बन जायेगा। सच कहता हूं दोस्तो, ये जीवन स्वर्ग बन जायेगा। त्रिलोक मित्तल (टिंकु)
दुष्यंत कुमार मेरे प्रिय कवि हैं और मेरे प्रेरणा स्रोत भी । मुझे भी दुष्यंत के जन्म ग्राम राजपुर नवादा, बिजनौर, उ.प्र. में जन्म लेने का सौभाग्य मिला है ।
Bahut hi sundar kaavya -paath kiya hai Manoj ji ne , ye sach hai pahle ke Guru ko tabhi to Shri Guru kahte the aur Bhagwaan ki tarah poojte the, meri ma shri bhi kavyitri thi, unke Guru ji Vyakranachary aur Sahityacharya thi Banaras Sanskrit Vishv vidhyalay se , lekin wo fees nahin lete the, Sahityacharya kiya meri ma shri ne us zamane me shayad 1972 me first division me Banaras University se. Aaj ka teacher bhi kuchh hain aise par zyaadaatar ko paisa pyaara hai , apna shishya nahin... Aaj Manoj ji jo hain unke peechhe unke teacher ka yogdaan hai, jo spasht dikh raha hai, all the best 👍🙏🌸🌿
Jitni taaqat is Kavira main hai Manoj ji ki bhawnayen bhi usi tarah mahsoos karke dil khush ho gaya. Manoj ji , umeed hai aap aaj ke yuwaon tak iska asal matlab pahuchane main kaamyaab ho. Is pahal ke liye bahut dhanyawaad.
साहित्य वो जो सोचने पर मजबूर कर दे । श्री दुष्यंत कुमार जी की कविता ‘हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिये’ इस आशय पर पूर्णतया खरी उतरती है । मेरे उपन्यास ‘जो दिल की....’ पर समीक्षकों के बीच हुई गरमागरम बहस को सुन मुझे लगा था कि कहीं न कहीं सुलगाने मे मुझे भी कामयाबी मिली है । इसी सिलसिले पर चार पंक्तियाँ मैंने भी लिखी थीं । महाकवि से क्षमा याचना सहित कभी सुबहो तो कभी शाम हुआ करती है, मेरे ज़ेहन मे भी ये यों ही धुआँ करती हैं । न कर बदनाम शरारे को अभी नादान है तू, जिगर मे आग मेरे लफ्जों से लगा करती है ।
Behad Umda.. aam tur par Nukkad naatkon me ye Kavita zarur kahi jati hai .. Shabt itne prabal hai ki apne aap himmat jaga dete hai ... Mahakavi Dushyant Ji ko Koti Koti Naman
YAHON TO PADON KI CHAON MEIN BHI DHOOP LAGTI HAY CHALO KAHIN CHALO AUR KAHIN DOOR CHALO. Dushayantji was really along with rakesh Mohan very inspiring poet .
Ho gayi hai.........is my favorite.I think I read it first time in 84-85. Since then this has been treasure of my wallet irrespective of any thing else I have or not......
कई बार या कहे तो बार बार ये कविता पढ़ी है और हमेशा सोचा कि कवि खुद इसे पढ़ते तो क्या ही आनंद आता.......आज वो ख्वाहिश पूरी हो गयी......मनोज जी की प्रस्तुति बेहतरीन है......धन्यवाद हिंदी कविता 👏👏
Ati sunder...bahut khoob~ Kavita Hindi Sahitya ki wah vidha hai jo badi si badi baat chand panktiyoan me samet leti hai...!! 'VIYOGI HOGA PAHLA KAVI... AAH SE NIKALA HOGA GAAN... CHALAK KAR AANKOAN SE CHUPCHAP ....BAHI HOGI KAVITA ANJAN...'
wah manoj bhai ,aur bhi kavi hai jaise neerajji ,azhar hashmi[hindi me lekhte hai,ratlamnivaji hai],udai pratap singh enke bhe kuch kavitaya bahoth he sundar hai ......app ne ye bahoth accha manch banaya hai ...aap ko sadhuwad
please manoj sir, recite many more Hindi poems (mahadevi varma, dinkar, etc). you recite so beautifully. create a big youtube video with lots and lots of poem
दुष्यंत कुमार जी की एक रचना है तू किसी रेल सी गुजरती है, अगर वह हो तो कृपया लिंक दीजिये। आपका हिंदी के प्रति ऐसा प्रयास, भाव, समर्पण देखकर बहुत अच्छा लगा ।।
मीनू पुरुषोत्तम की गाई हुई ये ग़ज़ल है.. एक जंगल है तेरी आँखों मे मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ.. दुष्यंत कुमार की लिखी हुई.. पूरी ग़ज़ल मौजूद है यू ट्यूब पर..
Dhanyawaad sir hum aaj is aadhunik duniya ki chakachaundh me apni Bhasha ko hi bhul gaye the Dhanywaad mujhe yaad dilane ke liye i love HIndi but i was lost Thankk you for this great initiative :)
Manoj ji please convince somebody to make a film on Dushyant ji and play him. Aap bilkul sateek hain Dushyant ji play karne me liye.....kyunki aur kisi se naa ho payega
Please guys change your intro music. it gives sad feeling... Use good music like flute... I guess.. I make my point clear... Keep going I love your channel... Peace out
“मंदिर”में दाना चुगकर चिड़ियां “मस्जिद” में पानी पीती हैं मैंने सुना है “राधा” की चुनरी कोई “सलमा”बेगम सीती हैं एक “रफी” था महफिल महफिल “रघुपति राघव” गाता था एक “प्रेमचंद” बच्चों को “ईदगाह” सुनाता था तो फिर हम भेदभाव क्यों करें