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A director whose film is taught by showing film making | Exclusive bollywood story 

Golden Moments with Vijay Pandey
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A Director Who Produces Artistic And Commercial Films Consolidated,एक ऐसा निर्देशकजिसने कलात्मक और व्यवसायिक फिल्मों की
चकबन्दी कर दी,
एक ऐसा निर्देशक जिनकी बनाई फिल्म दिखा कर पढ़ाई जाती है फिल्म मेकिंग
इस लीजेंडरी डायरेक्टर ने 1944 में अपनी डेब्यू फ़िल्म 'उदयेर पाथे' में भारतीय साहित्य के अमूल्य धरोहर गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर की कविता " जन गण मन" को राष्ट्रीय गान बनने से पलहे अपनी फ़िल्म इस्तेमाल किया था। 'उदयेर पाथे' को अपार सफलता मिली थी। इस साहित्य प्रेमी निर्देशक ने फ़िल्म 'उदयेर पाथे' का हिंदी वर्ज़न 'हमराही' बनाई, साल 1945 में ‘न्यू थियेटर्स’ ने इस फ़िल्म को हिंदी में ‘हमराही’ नाम से बनाया, जिसका निर्देशन भी इसी क्लासिकल निर्देशक ने किया ।
यह रोमांटिक यथार्थवादी फ़िल्म,अपने अलग सब्जेक्ट की वजह से उस वक़्त काफ़ी चर्चा में रही। सिनेमा के कुछ विशेषज्ञों का ख़याल है कि ‘हमराही’ भारतीय सिनेमा में नवयथार्थवाद का प्रारंभ थी।बहुमुखी प्रतिभा के धनी इस दूरदर्शी निर्देशक में प्रतिभा को पहचानने की अदभुत क्षमता थी।इनकी फ़िल्मो का क्लास अदभुत रूप से इतना बड़ा था कि जिसने भारतीय सिनेमा को, उसके फ़िल्मी क्राफ्ट को,उसकी तकनीक को यथार्थवाद और सामाजिक सुधार के धरातल पर लाकर खड़ा कर दिया था।इस क्लासिकल डायरेक्टर ने उस दौर में स्त्री प्रधान क्लासिकल फ़िल्में दीं, जब हमारे सामाजिक ताने-बाने में नायिकाओं को देखने की आदत ख़त्म हो गई थीं और देश आज़ाद हो गया था और नायकों का महिमामंडन अपने चरम उत्कर्ष का आनंद ले रहा था। उस दौर में ये लीजेंडरी निर्देशक, साइलेंट मास्टर ने बंदिनी, सुजाता, परख, मधुमति, सामाजिक अवधारणा और साहित्यिक नायिका प्रधान क्लासिकल फ़िल्मे दीं। इस निर्देशक की सिनेमाई समझ और साहित्यिक सरोकार को देखकर, दादा मुनि अशोक कुमार ने परिणीता जैसी फ़िल्म के निर्देशन की जिम्मेदारी दी। इस फ़िल्म के प्रोड्यूसर / निर्माता ख़ुद दादा मुनि अशोक कुमार थे।इन फ़िल्मो की कहानी का क्राफ़्ट, उसका कैनवास जितना बड़ा और क्लासिकल था। उतना ही इन फ़िल्मो के गानों में मानवीय रिश्तों की गहराई और स्त्री-मन की ख़ुशी और वेदना को अन्तर्मन की सुंदरता को दर्शकों के सामने रखा था। जिसे सदियों बाद भी भुलाया नहीं जा सकता है। और वे गाने हैं..
बंदिनी : 1963
मोरा गोरा रंग लई ले..
अबके बरस भेजो भइया को बाबुल..व्यवसायिक सिनेमा में यथार्थवाद की शुरुआत की। विमल रॉय की वो क्लासिकल फ़िल्मे हैं :
दो बीघा जमीन : 1953
नौकरी : 1954
देवदास : 1955
मधुमति : 1958
सुजाता : 1959
परख : 1960
प्रेम पत्र : 1962
बंदिनी : 1964
ये फिल्में विमल रॉय ने अपनी फ़िल्म कंपनी 'विमल रॉय प्रोडक्शन' से बनायीं।
और
परिणीता : 1953
'अशोक कुमार प्रोडक्शन'
बिरजा बहु : 1954
'हितेन चौधरी प्रोडक्शन'
यहूदी : 1958
Savak B. vacha,बिरजा बहू 1954
बाप बेटी 1955
सुजाता 1959
परक 1960
प्रेम पत्र 1962
बंदिनी 1963
यह फिल्में सिर्फ स्त्री नायकत्व की कहानी ही नहीं कहती थी, बल्कि नारी जीवन की महत्ता और आदर्श की वेदी पर चढ़ा गई उसकी भावना और अंतर्मन की खुशी को, जिस सहज और सरल अंदाज में, मनोरंजन के यथार्थ पर रखा था, जिसे भारतीय सिनेमा का इतिहास फिर कभी नहीं दोहरा पाया।
दोस्त स्त्री नायकत्व पर बनी, लीजेंडरी विमल राय की फिल्में, आज भी उदाहरणों के उस क्षितिज की ऊंचाई पर खड़ी है, जहां भारतीय संदर्भ में स्त्री नायक की भूमिका को समझने के लिए, अभिनेत्रियों को लीजेंडरी विमल राय की, इन फिल्मों को देखने के लिए कहा जाता है। जिसमें में एक बड़ा नाम शामिल है संजय लीला भंसाली। ग्रेंजर के धनी, संजय लीला भंसाली, आज भी जब अपनी किसी हीरोइन को फाइनल कर देते हैं, तो उन हीरोइंस को क्लासिकल डायरेक्टर विमल राय की क्लासिकल फ़िल्म 'परिणीता' 'बिरजा बहू' और 'बंदिनी' देखने की हिदायत जरूर देते हैं। क्योंकि इन फिल्मों का सहज अंदाज़ और सरल अभिनय स्त्री नायकत्व की भूमिका को,हिंदी सिनेमा में अपने चरम उत्कर्ष पर रखा है। जिसका उदाहरण उस दौर की बन रही फिल्मों में नहीं के बराबर मिलता है।
लीजेंडरी विमल राय, जिन्हें ग्यारह 'फिल्म फेयर अवार्ड' जिसमें चार उनकी बेस्ट फिल्मों के लिए और सात बेस्ट डायरेक्टर के लिए मिला था ।
बेस्ट डायरेक्टर
1953 - दो बीघा जमीन
1954 - परिणीता और
1955 - बिरजा बहू
बेस्ट डायरेक्टर
1958 - मधुमति
1959 - सुजाता
1960 - परख
लीजेंडरी विमल राय ऐसे पहले डायरेक्टर हैं, जिन्हें दो बार लगातार 'फिल्म फेयर अवार्ड' से नवाजा गया।
और आखरी बार 1963 में फिल्म बंदिनी के लिए बेस्ट डायरेक्टर और बेस्ट फिल्म का अवार्ड दिया गया।
दोस्तों हिंदी सिनेमा के लीजेंडरी फिल्ममेकर और डायरेक्ट विमल राय को जो रुतबा हासिल है, वह रुतबा शायद ही किसी और के पास होगा और यह होना भी संभव था
दोस्तों,क्योंकि विमल रॉय, लीजेंडरी किंगमेकर..क्लासिकल डायरेक्टर- सिनेमैटोग्राफर, एडिटर और बहुत कम बोलने वाले फिल्मी हस्ती थे। उन्हें कुछ भी कहना होता था तो वह अपनी फिल्मों के माध्यम स कहते थे। इसीलिए इस महान लीजेंडरी डायरेक्टर के लिए कहा जाता है.. Vimal ray, the man who speak in picture
SPECIAL THANKS TO
DHEERAJ BHARDWAJ JEE (DRAMA SERIES INDIAN),
Arvind Pathak
Rakesh Sengupta ji
SEPL Vintage
THANKS FOR WATCHIN GOLDEN MOMENTS WITH VIJAY PANDEY

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Опубликовано:

 

5 сен 2024

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Я все понял🤣инст: sarkison7
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