इस मंदिर का निर्माण कुछ इस तरह किया गया है की सूर्य अस्त होने से पहले इसकी किरणें मंदिर में विराजमान महादेव के चरण छूती हैं। इस मंदिर का नाम है बाथू की लड़ी /
इस मंदिर का नाम बाथू की लड़ी इसलिए पड़ा क्यों कि इस मंदिर का निर्माण बाथू नाम के मजबूत पत्थर से हुआ है / इस मंदिर परिसर में मुख्य मंदिर के अलावा आठ अन्य मंदिर भी बने हुए हैं जिसमे 1 दायीं ओर 1 बाएं तथा 6 मंदिर मुख्य मंदिर के सामने बने हुए हैं जिन्हें दूर से देखने पर एक माला में पिरोया हुआ प्रतीत होता है इसीलिए इस खूबसूरत मंदिर को बाथू की लड़ी (माला) कहा जाता है। आठ महीने तक जलमग्न रहने वाले मंदिर बाथू की लड़ी का मुख्य मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर के अंदर एक पवित्र शिवलिंग है और साथ में देवी काली तथा भगवान गणेश मूर्तियां स्थापित हैं। अन्य मंदिरों में शेष नाग ,विष्णु भगवान तथा अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं / यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला काँगड़ा में महाराणा प्रताप सागर झील के बीचों बिच बना हुआ है /
कहा जाता है की प्राचीन काल से यहां स्थापित इस मंदिर का निर्माण 5000 वर्ष पूर्व पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान किया गया था वही कुछ लोगों का मानना है की इस मंदिर का निर्माण यहाँ के स्थानीय राजा ने करवाया था ।
कहा जाता है कि, अज्ञातवास पर निकले पांडवों ने यहां पहुंचकर पहले शिव मंदिर यानी बाथू की लड़ी का निर्माण किया फिर यहीं से उन्होंने स्वर्ग में जाने के लिए सीढ़ी बनाने का फैसला किया। अज्ञातवास होने के कारण पांडवों के लिए इसका निर्माण कार्य दिन में कर पाना बहुत मुश्किल था यह काम सिर्फ रात में ही हो सकता था / इसके लिए उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से गुहार लगाई और भगवान श्री कृष्ण ने छ महीने की एक रात कर दी। इसमें केवल ढाई सीढ़ियां ही बनानी शेष रह गयी थीं की पास के ही गांव की एक बृद्ध महिला ने दीपक ज़ला दिया, पांडवों की नज़र जैसे ही जलते हुए दीपक की तरफ गयी तो उन्होंने सोचा की सुबह हो गयी है तथा उन्होंने स्वर्ग की सीढ़ियों का निर्माण कार्य वहीँ पर रोक दिया और स्वर्ग की सीढ़ियाँ 6 महीने की एक रात में भी बनकर तैयार नहीं हो सकीं, इस मंदिर में स्वर्ग की ओर जाने वाली 40 सीढ़ियाँ आज भी मौजूद हैं, जिसे लोग आस्था के साथ पूजते हैं।
इस मंदिर की खास बात यह है कि, साल के आठ महीने पानी में डूबा रहता है और सिर्फ चार महीने ही नजर आता है। पानी में डूबने के बाद इस मंदिर का उपरी हिस्सा ही नजर आता है / इस मंदिर के 8 महीने जलमग्न रहने के पीछे कोई चमत्कार नहीं है दरअसल पोंग डैम बनने के बाद ही ऐसा हुआ है / पोंग डैम बनने से यहाँ महाराणा प्रताप सागर झील तथा साथ ही बर्ड सैंक्चुअरी का भी जन्म हुआ / झील का जलस्तर बढ़ने के कारण यह मंदिर 8 महीने के लिए जल समाधी ले लेता है /
इस मंदिर के आसपास कुछ छोटे छोटे टापू बने हुए हैं, जिन्हें #रेनसर, कारू, काजल का टापू और जतन का कवाल के नाम से जाना जाता है, रेनसर में फारेस्ट विभाग के कुछ रिजोर्ट्स है, जहां पर्यटकों के रुकने और रहने की उचित व्यवस्था है।
42 किलोमीटर लम्बी और 19 किलोमीटर चौड़ी इस महाराणा प्रताप सागर झील को 1986 में राज्य सरकार द्वारा Wildlife Sanctuary घोषित किया गया था और पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 1994 में तथा रैंसर को 2002 National Wetland घोषित किया गया था / अक्टूबर से फरबरी के बीच 200 से ज्यादा प्रकार के दुर्लभ प्रवासी तथा स्थानीय पक्षी, 90 से ज्यादा प्रकार की तितलियाँ तथा 25 से अधिक प्रकार की मछलि की प्रजातियां यहाँ देखने को मिलती हैं /
अगर आपको बर्ड वाचिंग करनी है तब आपको अक्टूबर से फरबरी के बीच यहाँ आना चाहिए और अगर आपको बाथू की लड़ी मंदिर को करीब से देखना है तो मार्च से जून महीने के बीच यहाँ सड़क मार्ग से आना चाहिए /
\प्रवेश द्वार के दायीं तरफ विष्णु भगवान तथा बायीं और हनुमान जी की मूर्ति बानी हुई है / मुख्य प्रवेश द्वार के साथ ही प्राचीन काल का बना हुआ कुआँ आज भी मौजूद है /
इस प्राचीन मंदिर को देखने के बाद आप यहाँ नौका विहार का भी आनंद ले सकते हैं जिसका किराया 50 से 100 Rupay प्रति व्यक्ति है /
यहाँ पर किसी भी तरह का रेस्टोरेंट या कोई चाय की दूकान नहीं इसीलिए आप जब भी यहाँ आएं अपना खाना साथ लेकर आएं /
यहाँ से बथु की लड़ी के लिए लगभग चार किलोमीटर का कच्चा रास्ता शुरू हो जाता है / और लगभग तीन किलोमीटर चलने के बाद बथु मंदिर से लगभग 1 किलोमीटर पहले पांडवों की टोहल नाम की जगह आती है / कहा जाता है की यहाँ पांडवों की टोहल में भीम के द्वारा फेंका हुआ पत्थर मौजूद है जिसे लोग आस्था के साथ पूजते हैं /
यहाँ पर टैक्सी या अपने वाहन द्वारा ही आया जा सकता है /
धमेटा और नगरोटा सुरियाँ से यहाँ बोट के द्वारा पौंछा जा सकता है तथा ज्वाली से सड़क मार्ग द्वारा यहाँ पहुंचा जा सकता है जिसकी दूरी लगभग 15 किलोमीटर है /
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15 янв 2021