Channel- Sunil Batta Films
Documentary- Buddha Purnima
Produced & Directed by Sunil Batta, Voice- Navneet Mishra, Music- You Tube Music & Krishan Swaroop, Camera-Chandreshwar Singh Shanti, Production- Dhruv Prakesh, Camera Asst.- Runak Pal, Kuldeep Shukla,Subhash Shukla, Script- Rajeev Singh,
Synopsis-
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भिवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्। आज से लगभग 5 हजार वर्ष पूर्व योगिराज भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा था कि जब भी धर्म की ग्लानि होगी मैं धर्म के उद्धार के लिए और अधर्म के विनाष के लिए अवतार ग्रहण करूंगा। जैसे भगवान विष्णु ने राम और कृष्ण के अवतार स्वरूप इस पृथ्वी के कष्टों के निवारणार्थ जन्म लिया उसी प्रकार भगवान गौतम बुद्ध ने पशु हिंसा को रोकने और मानव मात्र में अहिंसा दया का भाव जगाने के लिए संत गौतम बुद्ध के रूप में अवतार लिया।
तथागत बुद्ध ने तत्कालीन राजा महाराजाओं के साथ-साथ सामान्य जनमानस को अपने कल्याणकारी उपदेषों से धन्य कर चरथ भिक्खवे चारिक बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का उद्घोष कर लगातार 45 वर्षो तक लोक कल्याणार्थ विचारण किया। बुद्ध ने जिन स्थानों को विचरण कर पवित्र किया वे मुख्यतः चार है।
भगवान बुद्ध ने स्वयं बौद्ध तीर्थ स्थलों के महत्व को बताते हुए कहा था आनन्द! श्रद्धालु कुल-पुत्र के लिए यह चार स्थान दर्षनीय संवेजनीय अर्थात् वैराग्यप्रस हैं। कौन से चार------पहला जहां तथागत उत्पन्न हुए अर्थात् लुम्बिनी दूसरा जहां तथागत ने अनुत्तर सम्यक्-संबोधि को प्राप्त किया अर्थात् बोधगया तीसरा जहां तथागत ने धर्मचक्र का प्रवर्तन किया अर्थात् कुसीनारा। यह चार स्थान हैं आनन्द! श्रद्धालु भिक्खु भिक्खुणियां उपासक उपासिकाएं यहां आयेगी तो उनका मंगल होगा।
इस प्रकार बोद्ध धर्म का पहला तीर्थ स्थल लुम्बिनी है जहां गौतम सिद्धार्थ का जन्म हुआ था। सिद्धार्थ के पिता का नाम राजा शुद्धोद्न और माता का नाम महामाया था। 563 ई0 पूर्व बैसख पूर्णिमा के दिन साल के वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ का जन्म हुआ था। इसीलिए यह दिन बुद्ध पूर्णिमा के नाम से प्रसिद्ध है।
बोधगया में महाबोधि महाविहार के गर्भगृह में भगवान बुद्ध की भू-स्पर्ष मुद्रा वाली अति सुन्दर भव्य प्रतिमा है। यह प्रतिमा यहाँ सन् 380 ई.वी. में स्थापित की गयी थी। इस प्रतिमा की शान्त सौम्य एवं करूणामयी छवि को निहारने दर्षन करने के लिए पूरी दुनिया से बौद्ध धर्मावलंबी और पर्यटक लाखों की संख्या में प्रतिवर्ष यहां आते हैं।
महाबोधि महाविहार में बोधिवृक्ष हैं इसके समीप वज्रासन हैं जहां भगवान बुद्ध बोधि प्राप्ति के लिए दृढ़ संकल्प के साथ बैठे थे।
बोधगया में ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध सारनाथ आ गये थे और यहां उन्होंने अपना प्रथम उपदेष 5 भिक्क्षुओं को दिया जाता है। जिसको धम्मचक्कपवत्तनसुत्त के नाम से जाना जाता है। इसी कारण से सारानाथ का बौद्ध जगत में विषेष महत्व है। कुषीनगर में भगवान बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था। इसीलिए यह स्थान सारे संसार में बहुत पवित्र और आस्था का प्रतीक माना जाता है।
यहां 24 फुट लम्बे 5 फुट 6 इंच चैड़ें ईंटों से बना सिंहासन के ऊपर तथागत की महापरिनिर्वाण मुद्रा की मूर्ति दाहिनी करवट लेते हुए और मुंह पष्चिम की ओर किये स्थापित है। यहां सिंहासन के अग्रभाग पर पांचवी शताब्दी का लेख ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण है। सारे संसार के लोग दर्षन करने यहां आते हैं। जापान चीन श्रीलंका वर्मा कम्बोडिया ताईवान वियतनाम सिंगापुर और थाईलैण्ड आदि देषों के बौद्ध अनुयायी कुषीनगर की पवित्र मिट्टी को अपने घर ले जाकर पूजा गृह में रख पूजा करते हैं।
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5 май 2020