परमेश्वर का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है, जिसने सर्व रचना की है। जो परमेश्वर अचल अर्थात् वास्तव में अविनाशी है। - पवित्र अथर्ववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 मंत्र 7
तत्वदर्शी संत (गीता अ-4 श्लोक-34) से दीक्षा लेकर शास्त्रविधि अनुसार सतभक्ति करने वाले परमधाम सतलोक को प्राप्त होते हैं जहाँ जन्म-मरण, दुख, कष्ट व रोग नहीं होता है।
बंदीछोड़ जगत गुरु तत्वदर्शी संत श्री रामपाल भगवान् जी की जय हो उत्तर दक्षिण पूर्व प़क्षिम फिरता दाने दाने नूं/ सवं कला सतगुरु साहेब की हरि आये हरियाणा नूं // सत् साहेब जी🙏🙏
संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग वचन सुनकर उनसे निःशुल्क जुड़ें ताकि हमारी तरह आप भी सुखी हों, उनसे जुड़ने के बाद शरीर के सभी प्रकार के रोग नष्ट होंगे। सभी प्रकार के नशे छूट जाऐंगे। जीवन यापन के लिए थोड़ी कमाई से ही काम चल जाएगा। निर्धनता खत्म हो जाएगी।
मनुष्य जन्म का मुख्य उद्देश्य मोक्ष प्राप्त करना है ।इस अनमोल जीवन को सफल बनाने के लिए पूर्ण संत सतगुरु रामपाल जी महराज जी नाम दीक्षा प्राप्त कर अपना कल्याण करवाए अवश्य पढ़े पुस्तक ज्ञान गंगा अनमोल पुस्तक 🙏🙏🙏
{ध्यान रहे:- गीता अध्याय 8 श्लोक 16 में कहा है कि ब्रह्मलोक में गए साधक भी जन्म-मरण के चक्र में हैं।} - जगतगुरु तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज Sant Rampal Ji Maharaj
जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी से उपदेश लेकर कबीर साहेब जी की भक्ति करने से सतलोक की प्राप्ति होती है। सतलोक अविनाशी लोक है। वहां जाने के बाद साधक जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है और पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है।
संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग वचन सुनकर उनसे नाम उपदेश प्राप्त करके जुड़ने के बाद जीवन के सभी दुःख समाप्त हो जाऐंगे। सत्संग से मनुष्य को जीवन के मूल कर्त्तव्य का ज्ञान होता है, मनुष्य सारे विकार त्याग देता है। उसके जीवन में सुखों की बहार आ जाती है, किसी भी प्रकार का दुःख नहीं रहता।
कबीर भक्तों अरू गुरू की सेवा कर श्रद्धा प्रेम सहित । परम प्रभु (सत्य पुरूष) ध्यावही करि अतिश्य मन प्रीत ।। भावार्थ :- अपने गुरूदेव तथा सत्संग में या घर पर आए भक्तों की सदा आदर के साथ सेवा करें। श्रद्धा तथा प्रेम से सेवा करनी चाहिए। परम प्रभु यानि परम अक्षर पुरूष की भक्ति अत्यधिक प्रेम से करें।
बंदीछोड़ सतगुरू रामपाल जी महाराज जी के रूप में आये हुए परमात्मा कबीर साहेब जी के पवित्र चरणों में दास का कोटि कोटि दण्डवत् प्रणाम 🙇🏻♂️🙇🏻♂️🙇🏻♂️🙇🏻♂️🙇🏻♂️🙇🏻♂️🙇🏻♂️
श्रीमद्भगवद गीता अध्याय 8 का श्लोक 3 मेंगीता ज्ञान दाता ब्रह्म भगवान ने कहा है कि वह परम अक्षर ‘ब्रह्म‘ है जो जीवात्मा के साथ सदा रहने वाला है।वह परम अक्षर ब्रह्म गीता ज्ञान दाता से अन्य है, वह कबीर परमात्मा हैं।
जिस समय सर्व सन्त जन शास्त्र विधि त्यागकर मनमानी पूजा द्वारा भक्त समाज को मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं। तब अपने तत्वज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं कबीर प्रभु ही आते हैं। Supreme God Kabir
Kabir Is Supreme God ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।9।। पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है उस समय कंवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उसकी परवरिश की लीला होती है।
मुझ नाचीज़ दास का परमात्मा (गुरुजी) के चरण कमलों में कोटि कोटि कोटि......, दंडवत प्रणाम।दास का परमात्मा (गुरुजी) की सभी भक्त आत्माओं को सत साहेब जी। 🙏🌹🌺🙏🌹🌺🙏🌹
Sat Saheb Bandi Chhod Satguru Rampal Ji Bhagwan Ji ki Jay Bandi Chhod Kabir Sahib Ji ki Jay Parmatma Apne Charanon Mein Rakhna main aapki Dasi hun Jay Ho Bandi Chhod Ke
गीता जी के अध्याय नं. 15 का श्लोक नं. 17 उतमः, पुरुषः, तु, अन्यः, परमात्मा, इति, उदाहृतः, यः, लोकत्रायम् आविश्य, बिभर्ति, अव्ययः, ईश्वरः।। अनुवाद: उत्तम भगवान तो अन्य ही है जो तीनों लोकोंमें प्रवेश करके सबका धारण-पोषण करता है एवं अविनाशी परमेश्वर परमात्मा इस प्रकार कहा गया है।
तत्वदर्शी संत (गीता अ-4 श्लोक-34) से दीक्षा लेकर शास्त्रविधि अनुसार सतभक्ति करने वाले परमधाम सतलोक को प्राप्त होते हैं जहाँ जन्म-मरण, दुख, कष्ट व रोग नहीं होता है।
परमेश्वर का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है, जिसने सर्व रचना की है। जो परमेश्वर अचल अर्थात् वास्तव में अविनाशी है। - पवित्र अथर्ववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 मंत्र 7
संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग वचन सुनकर उनसे निःशुल्क जुड़ें ताकि हमारी तरह आप भी सुखी हों, उनसे जुड़ने के बाद शरीर के सभी प्रकार के रोग नष्ट होंगे। सभी प्रकार के नशे छूट जाऐंगे। जीवन यापन के लिए थोड़ी कमाई से ही काम चल जाएगा। निर्धनता खत्म हो जाएगी।
संत रामपाल महाराज जी के सत्संग वचन सुनकर उनसे नाम उपदेश प्राप्त करके जुड़ने के बाद जीवन के सभी दुःख समाप्त हो जाऐंगे। सत्संग से मनुष्य को जीवन के मूल कर्त्तव्य का ज्ञान होता है🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
सिद्ध तारै पिंड आपना, साधु तारै खंड। उसको सतगुरु जानियो, जो तार देवै ब्रह्मांड।। साधक अपना ही कल्याण कर सकता है। परमात्मा से परिचित जो संत हुए हैं वो कुछ डिवीजन, खंड को ही लाभ दे सकते हैं। और सतगुरु उसको जानना जो पूरे विश्व का कल्याण कर दे।
तत्वदर्शी संत (गीता अ-4 श्लोक-34) से दीक्षा लेकर शास्त्रविधि अनुसार सतभक्ति करने वाले परमधाम सतलोक को प्राप्त होते हैं जहाँ जन्म-मरण, दुख, कष्ट व रोग नहीं होता है।