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JAB AANE WALE AATE HAIN, PHIR AA KE CHALE KYUN JAATE HAIN_MADHOSH_1951_LATA_MADANMOHAN RMA KHAN 

Sharad Patwa
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“जब आने वाले आते हैं,
फ़िर आ के चले क्यूँ जाते हैं ?”
फ़िल्म : मदहोश ( १९५१ )
गायिका : लता मंगेशकर
संगीतकार : मदनमोहन
गीतकार : राजा मेहदी अली ख़ान
मैंने यूट्यूब पर छानबीन कर के बिना लोगो की “मदहोश” फ़िल्म पूर्ण रूप से डाउनलोड की. और उसमें से प्रस्तुत गीत की मैंने कटाई भी की. लेकिन मूल फ़िल्म की पिक्सेल ही कम होने के कारण इस गीत की गुणवत्ता में ख़ामी नज़र आयी. फ़िर यूट्यूब पर मैंने प्रस्तुत गीत के अनेकों विकल्पों की तलाश की. उनमें सबसे अच्छी गुणवत्ता मुझे जावेद राजा ने अपलोड किये प्रस्तुत गीत में दिखाई दी. लेकिन, उसमें ख़ामी यह थी कि बेवजह गीत को सीपिया ( लाल-भूरे रंग ) रंग में उसने रंगाया है और वीडियो का दृश्य रूप बिगाड़ते काफ़ी बाजीगरी या कर्तब बेवजह किये गये पायें जिससे मूल गीत से ध्यान भटकता था. मैंने उस बाजीगरी या तिकड़मबाज़ी से छुटकारा पाने के लिए जहाँ तक बन पाए उतना उस पर काम किया, सीपिया रंग भी हटाया और बेहतरीन दर्जे का गीत पॉवरपॉईंट संस्करण के साथ अब प्रस्तुत किया है.
फ़िल्म “मदहोश” का निर्माण मराठी उपन्यासकार रघुनाथ वामन दिघे का उपन्यास “पानकळा” पर आधारित है. [ हिंदी में ‘ळ’ यह वर्णाक्षर न होने के कारण हरमिंदर के गीतकोष में उस उपन्यास का नाम “पानकला” लिखा हुआ है. ] लेकिन, पटकथाकार जे. बी. एच. वाडिया ने उसपर ठीक से पटकथा लिखी नहीं, ऐसा प्रतीत होता है. कथानक काफ़ी आगे बढ़ने के बाद कोई ‘आनंद’ ( राजन ) यह पात्र अवतरित होता है जिसका जिक्र पहले कभी नहीं किया था और सोनी ( मीनाकुमारी ) उस आनंद के आने की ख़बर से काफ़ी उत्तेजित होती दिखाई है. नायक राया ( मनहर देसाई ) के मन में ईर्ष्या पैदा करने हेतु आनंद से सोनी नजदीकियाँ बढ़ाने का नाटक करती है या असल में ही उसे आनंद से प्रेम है, यह दर्शक समझ पाए उसके पहले ही सोनी, जिस राया की बचपन से भर्त्सना करती आयी है, उसके प्रेम के प्रस्ताव को स्वीकृति देती भी दिखाई है. इतना बदलाव सोनी के नज़रिए में क्यूँ आता है, यह समझ से परे है. उसका स्पष्टीकरण फ़िल्म की पटकथा से मिलता ही नहीं. और तो और रायना ( उषा किरण ), जो सच्चे दिल से राया को चाहती है और उससे दिल-ओ-जान से बेइंतिहा मुहब्बत करती है और राया भी उसे अनुकूल प्रतिक्रिया भी देता दिखाया है तो क्या वजह है कि राया यह रायमा का सच्चा प्यार ठुकरा देता है और सोनी से प्यार का इक़रार कर बैठता है, यह भी समझ से परे है. क्या राया यह शक्रिया की रायमा से दूरी बनाने की धमकी से डरकर उसकी बेटी रायमा से रूखा या उदासीन व्यवहार अपनाता है या क्या रायमा यह राया के ज़मीनदार पिता रंभाजी ( कुलदीप अख़्तर ) के मुलाज़िम शक्रिया की बेटी है यह सामजिक स्तर में काफ़ी अंतर को मद्देनजर रखते हुए और चूँकि सोनी यह अपने पिता के समकक्ष ज़मीनदार भुजबा ( मुबारक ) की बेटी है इसलिए ? फ़िल्म की पटकथा पर से यह स्पष्ट होता नहीं है. शायद मूल उपन्यास “पानकळा” में इसका ख़ुलासा या निचोड़ दिया हो. जबकि, “मदहोश” फ़िल्म की दूसरी नायिका रायमा ( उषा किरण ) यह गीत मायूसी में गाती हम देखते है, “जब आने वाले आते हैं, फ़िर आ के चले क्यूँ जाते हैं ?”
“आँखें ( १९५० )” इस मदनमोहन के संगीत में बनी पहली ही फ़िल्म में लताजी ने गाने से यह कहकर इन्कार किया था कि बड़े बाप ( रायबहादुर चुनीलाल ) का बेटा संगीत क्या जाने ? लेकिन, “आँखें” का संगीत सुन लताजी का मदनमोहन के संगीत में विश्वास दृढ़ हुआ और उसने मदनभैया की दूसरी ही फ़िल्म “अदा ( १९५१ )” में ख़ुशी से गाने के लिए सकारात्मक प्रतिसाद देते हुए तीन बेहतरीन गीत उसमें गाये. और इस “मदहोश” फ़िल्म में तो पूरा लताजी की आवाज़ से लबालब भरा हुआ था. दो गीतों को छोड़ लताजी ने उसमें अधिकतर छह गीत गाये और सभी गीत शानदार थे. प्रस्तुत गीत उनमें से ही एक जिसके बोल लिखे थे राजा मेहदी अली ख़ान साहब ने.

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21 окт 2024

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Комментарии : 2   
@sadanandmhatre2482
@sadanandmhatre2482 9 часов назад
मदहोश- सगळी गाणी सुंदर उत्तम 🙏🙏
@anilboralkar1627
@anilboralkar1627 7 дней назад
आप ने मदहोश मुवी को हमारे लिए फिरसे जिवीत किया है… बहोत बढीया पटवा जी🙏🏾
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