From Akashwani All India Radio Archives
Ramcharitmanas Episode 24
Jagjit Singh & Kavita Krishnamurthy
Bal Kand 53-55
No copyright infringement intended, only for information purposes.
Copyright with Akashwani AIR, Prasar Bharti and Doordarshan.
पुनि पुनि हृदयँ विचारु करि धरि सीता कर रुप।
आगें होइ चलि पंथ तेहि जेहिं आवत नरभूप।।
लछिमन दीख उमाकृत बेषा चकित भए भ्रम हृदयँ बिसेषा।।
कहि न सकत कछु अति गंभीरा। प्रभु प्रभाउ जानत मतिधीरा।।
सती कपटु जानेउ सुरस्वामी। सबदरसी सब अंतरजामी।।
सुमिरत जाहि मिटइ अग्याना। सोइ सरबग्य रामु भगवाना।।
सती कीन्ह चह तहँहुँ दुराऊ। देखहु नारि सुभाव प्रभाऊ।।
निज माया बलु हृदयँ बखानी। बोले बिहसि रामु मृदु बानी।।
जोरि पानि प्रभु कीन्ह प्रनामू। पिता समेत लीन्ह निज नामू।।
कहेउ बहोरि कहाँ बृषकेतू। बिपिन अकेलि फिरहु केहि हेतू।।
दो0-राम बचन मृदु गूढ़ सुनि उपजा अति संकोचु।
सती सभीत महेस पहिं चलीं हृदयँ बड़ सोचु।।53।।
मैं संकर कर कहा न माना। निज अग्यानु राम पर आना।।
जाइ उतरु अब देहउँ काहा। उर उपजा अति दारुन दाहा।।
जाना राम सतीं दुखु पावा। निज प्रभाउ कछु प्रगटि जनावा।।
सतीं दीख कौतुकु मग जाता। आगें रामु सहित श्री भ्राता।।
फिरि चितवा पाछें प्रभु देखा। सहित बंधु सिय सुंदर वेषा।।
जहँ चितवहिं तहँ प्रभु आसीना। सेवहिं सिद्ध मुनीस प्रबीना।।
देखे सिव बिधि बिष्नु अनेका। अमित प्रभाउ एक तें एका।।
बंदत चरन करत प्रभु सेवा। बिबिध बेष देखे सब देवा।।
दो0-सती बिधात्री इंदिरा देखीं अमित अनूप।
जेहिं जेहिं बेष अजादि सुर तेहि तेहि तन अनुरूप।।54।।
देखे जहँ तहँ रघुपति जेते। सक्तिन्ह सहित सकल सुर तेते।।
जीव चराचर जो संसारा। देखे सकल अनेक प्रकारा।।
पूजहिं प्रभुहि देव बहु बेषा। राम रूप दूसर नहिं देखा।।
अवलोके रघुपति बहुतेरे। सीता सहित न बेष घनेरे।।
सोइ रघुबर सोइ लछिमनु सीता। देखि सती अति भई सभीता।।
हृदय कंप तन सुधि कछु नाहीं। नयन मूदि बैठीं मग माहीं।।
बहुरि बिलोकेउ नयन उघारी। कछु न दीख तहँ दच्छकुमारी।।
पुनि पुनि नाइ राम पद सीसा। चलीं तहाँ जहँ रहे गिरीसा।।
दो0-गई समीप महेस तब हँसि पूछी कुसलात।
लीन्ही परीछा कवन बिधि कहहु सत्य सब बात।।55।।
11 июл 2022