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मध्यकालीन शिल्प कला का उत्कृष्ट उदाहरण है ग्राम उदयपुर का नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर। इसका निर्माण 11 वीं शताब्दी में राजा भोज के भतीजे उदयादित्य ने कराया था। उदयादित्य यहां के शासक थे। उनकी राजधानी होने के कारण इसका नाम उदयादिता नगर था जो बाद में उदयपुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
गंजबासौदा तहसील मुख्यालय से मात्र 16 किमी दूर स्थित उदयपुर का यह विशाल प्राचीन मंदिर पहाडिय़ों की तलहटी में स्थित होने के कारण बारिश के दिनों में देखने लायक होता है। विशाल पत्थरों के परकोटे के बीच सुरक्षित इस मंदिर की ऊंचाई 51 फीट है। इसकी दीवारों में नीचे से ऊपर नक्काशी के मध्य हिंदू देवी-देवताओं के चित्र अंकित हैं। मंदिर की सबसे खास विशेषता है कि यह प्रदेश के विश्व विख्यात खजुराहो मंदिर की श्रेणी में आता है। यह मंदिर शिल्प कला में उससे भी एक कदम आगे है।
गर्भ गृह में खजुराहो जैसी शिल्पकारी की गई है।
शिवमंदिर में गर्भगृह द्वार पर कलाकृतियां अंकित हैं। इससे सहज ही पता लगता है कि जब समाज को बड़ी संख्या में वैराग्य की ओर जाने से रोकने का प्रयास देवालयों की चित्रकारी के माध्यम से किया जा रहा था, उसी समय इस मंदिर का निर्माण किया गया।
मंदिर में है विशाल शिवलिंग
मंदिर में करीब आठ फीट ऊंचा विशाल शिवलिंग स्थापित है। शिवलिंग पीतल के बड़े कवच से ढंका रहता है। कवच को वर्ष में एक दिन महाशिवरात्रि पर अभिषेक के लिए हटाया जाता है।
इस कवच का निर्माण ग्वालियर रियासत के महाराजा जीवाजीराव सिंधिया ने कराया था। महाशिवरात्रि पर कई घड़े दूध और जल श्रद्धालु चढ़ाते हैं लेकिन यह पानी कहां जाता है, यह रहस्य आज तक कोई पता नहीं लगा सका । पानी निकासी का पूरा सिस्टम वैज्ञानिक ढंग से बनाया गया है। धन्यवाद ।
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11 сен 2021