साधकों के मन में एक जिज्ञासा रहती है की क्या भगवान के दर्शन संभव हैं? अक्सर नास्तिकता और अविश्वास उनको प्रताड़ित करता रहता है। कथित रूप से विज्ञान नें इस तर्क को चुनौती दी है। किन्तु सत्यमय अध्यात्म और धर्म को इससे अंतर नहीं पड़ता। स्वयं "कौलान्तक नाथ" नें इस विषय को छूआ है। "ईशपुत्र" की वाणी में ही आप इस सन्दर्भ को समझिये-कौलान्तक पीठ टीम-हिमालय।