पुरुष के संयोग से प्रकृति विकसित नहीं विकृति होती है l अहंकार, मन, बुद्धि, इन्द्रिय, महाभूत मूल प्रकृति के विकार है l मूल प्रकृति और पुरुष दोनों ही निष्क्रय और निर्विकार है l निष्क्रिय मूल प्रकृति का जब पुरुष से संयोग होता है तब प्रकृति में क्रिया और विकृति आरम्भ होती है गुणों के कारण l महतत्व पहला विकार जब अहंकार में विकृत होता है तब जीवात्मा का उदय होता है जो अपने को कर्ता मान लेता है l
सांख्य दर्शन के मूल ग्रंथ- सांख्य सूत्र और सांख्य कारिका है । श्री मदभगवद्गीता में सांख्य आधारित चर्चा है । श्रीमद्भागवत महापुराण तृतीय स्कन्द में भी सांख्य चर्चा है ।
Jahan koi arth ka talmel nahi hai prakrity or purush dono hi chaitan hai yahi ved ghyan hai beena chai ki upstithi ke chaitan awastha nahi ho sakti yahi gud ghyan hai