साक्षात्कार बहुत रोचक और प्रभावी।विभूति नारायण जी पारदर्शी व्यक्तित्व वाले लगे। वे केवल लिखते नहीं मैदानी काम भी करते हैं इस बात ने प्रभावित किया। कलम ,तलवार, धन सब के धनी।
साक्षात्कार कर्ता और दाता दोनों के प्रश्नों,उत्तरों का बेबाकी के साथ पाठकों तक पहुंचना बहुत सुखद है।अमूमन इतना लंबा साक्षात्कार कभी कभी उबाऊ लगने लगता है।इस साक्षात्कार में जिस तरह बेबाकी के साथ सधे प्रश्न हुये और उसका जबाब भी उतना ही बेहतरीन और पारदर्शी रहा। इस तरह के व्यक्तित्व का साक्षात्कार होना ही चाहिए।इससे नई पीढ़ियों के ज्ञानार्जन के साथ ही साहित्यिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास, बदलाव सम्भव होगा।बधाई.....
अंजुम जी यह तो लग रहा है कि आपने राय साहब को ठीक से पढ़ा है।,बहुत देर से लिया गया लेकिन महत्वपूर्ण साक्षात्कार है। बहुत ही साफगोई से उत्तर मिला।कई एक नयी बातें पता चलीं।खैर साक्षात्कार बहुत बढ़िया है।शहर में कर्फ्यू का एक पात्र विभूति जी को इन दिनों पत्र लिखा।यह आश्चर्यजनक तथ्य है।
काफी रोचक और ईमानदार , बेबाक जवाब विभूति नारायण जी सुल्तानपुर जिले में भी रहे उनसे एक अज्ञात लगाव भी है।एक अच्छे अफसर शानदार लेखक के साथ ही बहुत शानदार व्यक्ति भी हैं।
जीयन पुर का नाम सुनते ही प्राणो को संजीवनी मिल जाती है पूरा बचपन जीयन पुर और आजमगढ़ की आवाजाही में बीता। दोहरी घाट कितनी बार नहान के लिए गयी होंगी। सब याद आ गया।
यह जो आप पुलिस और नागरिक के संबंध की बात कर रहे हैं। यह सही है और यह फिलॉसिफिकल समस्या है जो हम बचपन से सांप्रदायिकता सीखते हैं उससे इसका नाता है। हम सब othering बहुत बचपन से शुरुआत कर देते हैं। Othering is basic problem in the world. सबको एक दुश्मन चाहिए।
अंजुम जी ! संगत के अंतर्गत आपने जिन-जिन व्यक्तित्वों का साक्षात्कार लिया है, उनसे साक्षात्कार के लिए आपकी तैयारी लगभग पूरी रही है। हिंदी में इस तरह की साक्षात्कार शृंखला अपने तरह की अनूठी है। इसके लिए बहुत साधुवाद। विभूति नारायण राय जी का साक्षात्कार लेने के लिए आपने जो प्रश्नावली तैयार की, वह भी अच्छी थी। कुछ अपूर्णता खटकी; जैसे विभूति नारायण राय ने 'वर्तमान साहित्य' पत्रिका के संपादन में लगभग दो दशक तक महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिसकी चर्चा साक्षात्कार में अवश्य होनी चाहिए थी। दूसरी कमी यह खटकी कि उनके विचारात्मक लेखों पर आपने कोई बात नहीं की। 'रणभूमि में भाषा' शीर्षक से पूरी किताब ही है। वर्तमान साहित्य के ढेरों बेहतरीन संपादकीय राय साहब के द्वारा लिखे गए हैं, उस पर कोई चर्चा न हो सकी। विभूति जी का साक्षात्कार लेने से पहले उनके गांव जोकहरा, आजमगढ़ की लाइब्रेरी और वहां चल रहे सांस्कृतिक आंदोलन की जानकारी अगर आपको पहले होती तो यह साक्षात्कार और संपूर्ण होता। जासूसी उपन्यास रामगढ़ में हत्या की तो चर्चा हुई लेकिन 'पाकिस्तान में भगत सिंह' की बात ना हो सकी। इसके अलावा विभूति जी के व्यंग्य लेखों का संकलन "एक छात्र नेता का रोजनामचा' अत्यंत पठनीय व्यंग्य संग्रह है, उस पर भी सवाल तैयार किया जाना चाहिए। फिर भी कोई काम अंतिम नहीं होता, एक-डेढ़ घंटे में किसी भी लेखक के सभी पहलुओं पर शायद बात नहीं हो सकती। आपकी तैयारी में थोड़ी कमी दिखी। अंत में जिस रोब की बात अपने विभूति जी से की, मेरी जानकारी में विभूति जी हमेशा उससे मुक्त रहे। अपनी वैचारिक मान्यताओं के प्रति दृढ़ता को अगर रोब कहें, तो जरूर रहा होगा। परंतु एक व्यक्ति के रूप में विभूति नारायण राय अत्यंत उदारमना, बेहद मानवीय और सहजता-सरलता के प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं। गोवा में एक सजायाफ्ता कैदी सहित हजारों लोगों में पुस्तक-संस्कृति का विकास करने वाले विभूति जी के एक्टिविस्ट पक्ष पर भी बात होनी चाहिए। फिर भी आप बहुत सुंदर काम कर रहे हैं। करते रहिए, इतिहास तो बन ही रहा है। मेरी बहुत बधाई। विभूति नारायण राय जी स्वस्थ, सक्रिय और रोगमुक्त रहते हुए सृजन कार्य में संलग्न रहें, यही शुभकामना है। अंजुम जी ऐसा प्राय: देखने में आता है कि लोग पढ़-लिख जाते हैं; बड़े-बड़े पदों पर पहुंच जाते हैं; पर अपने मूल गांव को भूल जाते हैं। मेरा मानना है कि किसी व्यक्ति की असली पहचान उसके मूल जन्म स्थान में लोगों की उनके बारे में राय होती है। विभूति जी ने जिस तरह अपने गांव में इतना बड़ा पुस्तकालय वाचनालय तैयार किया है, पूरे देश में आपको कोई उदाहरण नहीं मिलेगा। जोकहरा के आसपास गांव की जड़ता किस तरह टूटी है, देखना बेहद दिलचस्प है। ❤🙏
Castismवर्ण व्यवस्था को लेकर दलितों का जो संघर्ष है वह उच्च वर्ग का नहीं है पर मैं देखपाती हूं उच्च वर्ग को जिस तरह भावनात्मक मानसिक रूप से जो संघर्ष करना पड़ता है उस पर हम कम बातें करते हैं जैसे women rights gender equality के पक्ष में खड़े होकर पुरूषों को जो भावनात्मक मानसिक रूप से संघर्ष करते हैं उस पर बातें नहीं करते हैं thats not fair
कितनी भी समानता की बात विभूति जी कर लें स्त्रियों के प्रति आपके विचार स्वीकार्य नहीं। कृष्णा सोबती जैसी महान लेखिका पर आपकी टिप्पणी निंदनीय है। आप उनके स्तर के लेखक नही हैं। कृष्णा जी पर आपका कथन निहायत गलत है।
मान्यवर जरा अपने कार्यकाल के बारे में भी बताएं सीनिब्रिटि के बाद ही लोगों का चछूज्ञान कुलता है एफएसआरएमहाउस में बैठ कर दलित शोषित और अल्पसंख्यकों के लिए बैन में बसना बहुत सरल है इस तेरे के प्रयोग शोध कुदेदान की ही शिभा बढ़ा लायक है