ॐ
गुरू के पास आना न लाना मन में और,
लाख चौरासी तुम भटके हो जन्म न लेना और।
आये कहाँ से क्यों है जनम तुम्हारा,
जाना कहाँ है क्या ये मन में विचारा,
जग अज्ञान अंधेरा सतगुरू नव जीवन भोर॥
रिमझिम की बूँदें गिरती करती इशारा,
ऐसे ही पल का प्राणी जीवन तुम्हारा,
ना जाने कब टूटे श्वासों की कच्ची डोर॥
ना तो जगत में कोई वैरी तुम्हारा,
ना ही किसी ने तेरा काम बिगाड़ा,
भीतर दुश्मन बैठा ये मन पापी है चोर॥
सतगुरू हवाले कर दो जीवन की नैया,
आप करेगा भव से पार खिवैया,
मेहनत गुरू की निशदिन कुछ तुम भी लगा लो ज़ोर,
लाख चौरासी तुम भटके हो जन्म न लेना और ॥
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30 апр 2024