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Postmaster by Rabindra Nath Tagore is a master class heart touching story.
हमारे पोस्टमास्टर कलकत्ता के थे। पानी से निकलकर सूखे में डाल देने से मछली की जो दशा होती है वही दशा इस बड़े गांव में आकर इन पोस्टमास्टर की हुई। एक अंधेरी आठचाला में उनका ऑफिस था, पास ही काई से घिरा एक तालाब था, जिसके चारों ओर जंगल था। कोठी में गुमाश्ते वगैरह जितने भी कर्मचारी थे उन्हें अक्सर फुर्सत नहीं रहती थी, न वे शिष्टजनों से मिलने-जुलने के योग्य ही थे।
खासतौर से कलकत्ता के बाबू ठीक तरह से मिलना-जुलना नहीं जानते। नई जगह में पहुंचकर वे या तो उद्धत हो जाते हैं या अप्रतिभ। इसलिए स्थानीय लोगों से उनका मेल-जोल नहीं हो पाता। इधर काम भी ज्यादा नहीं था। कभी-कभी एकाध कविता लिखने की कोशिश करते। उनमें इस प्रकार के भाव व्यक्त करते-दिनभर तरु-पल्लवों का कम्पन और आकाश के बादल देखते-देखते जीवन बड़े सुख से कट जाता है। लेकिन अन्तर्यामी जानते हैं कि यदि अलिफलैला का कोई दैत्य आकर एक ही रात में तरु-पल्लव समेत इन सारे पेड़-पौधों को काटकर पक्का रास्ता तैयार कर देता और पंक्तिबद्ध अट्टालिकाओं द्वारा बादलों को दृष्टि से ओझल कर देता तो यह मृतप्राय भद्र वंशधर नवीन जीवन-लाभ कर लेता।
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22 сен 2023