प्रणाम गुरु जी। कठोउपनिषद को पढ़ाते समय आपने चर्चा किये। यम और नचिकेता की वार्ता का, उसमे मन और इन्दिरयो के मिलने से कर्म होता है। तो क्या बिना इन्दिरयो के संयोग से केवल मन के द्वारा कार्य संभव है? जिग्यासा उतपन्न हो गया जब सुन रहा था।
शारीरिक कर्म मन के बिना सम्भव नही है,पर बिना इन्द्रिय के मन कार्य करता है उसको मानसिक कर्म कहते हैं जैसे कोइ विषय का चिन्तन करना,संकल्प-बिकल्प आदि पर इसको केवल मानसिक कर्म ही कहा जाता है।
प्रणाम गुरु जी। केनोउपनिष्द के दिव्तीय खण्ड में आप चर्चा कर रहें थे मन के बारे में। एक जिज्ञसा है। आपके कथानुसार प्रत्येक जीव में मन होता है। तो मानव शरीर मे मन का निवास स्थल कहा है औऱ उसकी अवस्था क्या है? क्या मन केवल जागृत अवस्था मे कार्य करती है या सुसुप्ति में भी यदि है तो कैसे? यदि न तो उस वक्त मन कहा रहता है। मन के कितने गुण और अवगुण है? जिज्ञसा भाव से पूछ रहा हूँ।
मन का कोइ निश्चित स्थान शरीर मे नही होता,जब किसी एक इन्द्रिय अपना विषय ग्रहण करता है तो मन उसके साथ रहता है,बिना मन के कोई इन्द्रिय काम नही कर सकता,दुसरी बात मन जाग्रत एवं स्वप्न अवस्था मे ही काम करता है,सुषुप्ति मे केवल चेतन आत्मा ही साक्षी रूप मे विद्यमान रहता है।
कृपा करके उपनिषदों एवं वैदिक काल को ईसाइ अंग्रेजों के आधार से निर्णय ना करें।उपनिषद काल महाभारत काल से पहले का है ,महाभारत काल ५००० वर्ष से अधिक हो चुका है।