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गिता स्लोक 10/2 मे लिखा है देवता ,महर्शीजन मुझको नहि जान्ते,श्रीमद्भागवत महापुरान 12/12/66 मे लिखा है ब्रम्हा,इन्द्र शंकर भि मेरि स्तुति कर्ना नहि जान्ते,जब कि शंकर जि अध्यात्म के आदिगुरु है,गिता स्लोक 13/11 मे लिखा है अध्यात्म ज्ञान मे नित्य स्थित होकर तत्त्व ज्ञान के अर्थरुप परमात्मा को देखना ज्ञान है,इस्से विपरीत सब अज्ञान है,चैतन्य होकर पृथक परमात्मा को देख्ना ज्ञान है,भगवान हि स्वयं अपना पहचान कराएगा,यहि shortcut रास्ता है,लेकिन कृपा हुइ तो,नहि तो साधाना से मिला हुवा चैतन्य ज्योती का हि आदि अन्त पता नहि चलेगा, लोग भ्रम वश इसिको परमात्मा बोल्ते है,शेष भगवद कृपा
दीदी, मै बुद्धिस्ट हूँ और सन् 20 January 1996 मे मरने से ठीक 2 दिन पहले मेरे बड़े बुद्धिस्ट धर्म गुरु ने कुछ ऐसा रहस्य बताया था हिन्दू सनातन धर्म के बारे मे शायद सोचू आपको बता दूँ हो सकता है उनकी यह कही बात बहुत को लाभ करेगी | उन्होने कहा - देखो बेटा , जहां-जहां शिवलिंग है जो स्वंय से धरती मे से निकले है अर्थात् "स्वयंभू" और आज भी उसी जगह पर स्थापित है और आगे भी स्थापित रहेंगे , कोई उन्हें नष्ट नही कर पायेगा | जो राक्षस उसे नष्ट की कोशिश किया या अशुद्ध करने की कोशिश तो वह स्वंय नष्ट हो जायेगा या उस जगह पर प्राकृतिक आपदायें आना शुरु हों जायेंगी | "शिवलिंग " मे ही ब्रह्माण्ड की उत्पत्ती का रहस्य छुपा है | 😊😊😊😊😊 वेदो में जिसे " ब्रह्म" कहा गया है वह एक वृहद शक्ति (large energy)है और "ब्रह्य" की पूजा नही की जा सकती है | ब्रह्मण्ड के निर्माण के समय और पृथ्वी पर जीवन लाने के लिए यह यह वृहद ऊर्जा अर्थात् "ब्रह्म " तीन भागो में बट गया जिसके ब्रह्या , विष्णु और महेश(भगवान शंकर ) कहते है|. दूसरे शब्दो मे कहे तो जो "ब्रह्म "को निराकार एवं प्रतीक रुप से दिखाने के लिए " शिवालिंग " को ही एक चिन्ह ( sign) माना जाता है | इसके अलावा पृथ्वी पर जो "शिवलिंग ' है उसे असल मे "शिव तत्व " भी कहते है | अब यह तीन वृहद ऊर्जा ब्रद्या , विष्णु और महेश (शंकर ) सूक्ष्म जगत मे भी मौजूद है और स्थूल जगत मे भी | ईश्वर एक वृहद ऊर्जा है जो कोई भी रुप धारण करने की क्षमता रखते हैं अब चाहें मनुष्य़ के रुप मे या जानवर के रुप मे | जैसे मनुष्य के अंदर उसकी आत्मा है और शरीर तो सिर्फ एक चद्दार (blanket) समान है और "आत्मा" अमर है कभी मरती नही है | शरीर बस बदलता है😊😊😊😊 ब्रह्मा जी , विष्णु जी और महेश ( शंकर जी ) के द्वारा उनसे दी गई ऊर्जा से या उनके बाद तमाम देवी- देवताओं का जन्म हुआ है | उदाहरण के तौर पे जैसे हनुमान जी को भगवान शिव जी का अंश कहते हैं , इसका अर्थ यह हुआ कि भगवान शिव जी स्वंय मे ही वृहद ऊर्जा (large quantity) हैं और यह वृहद ऊर्जा ने ही अपने मे से एक थोड़ा सी ऊर्जा निकाल के हनुमान जी को प्रकट किया | अंत मे केवल पुन्य आत्मओं को उसी वृहद ऊर्जा मे मिल जाना है या उन्ही के पास रहना है | गुरुजी ने यह भी कहा कि :- " हिंदूओ अपने अपने घर मे 8 अंगुल (लगभग 13 cm ) से ऊची मूर्ति की पूजी ना करे| प्रतिष्ठित मूर्ति है तब कोई दिक्कत नही है | घर मे 13 cm से ऊंची मूर्ति है और अप्रतिष्ठित है तो तुरंत नदी मे विसर्जित करे | गुरुजी ने सबसे ज्यादा बल इसपे दिया कि घर मे सिर्फ भगवान की फोटी (चित्र ) रख के ही पूजा करे तो ज्यादा बेहतर है | हर जगह ना जाये केवल उसी मन्दिर मे जाये जहा मूर्ति की स्थापना विधि - विधान से प्रतिष्ठित रुप से कि गई हो | कोई भी हिन्दू भूल करके भी दरगाह/ मजार से मदद ना मांगे क्योकि यह सबको पता है कि दरगाह / मजार एक कब्र होती जिसमे मुर्दे गढ़े रहते हैं | मुर्दे से मदद मांगने का मतलब उसके भूत से मदद मांगना | 😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊 उनके आखिरी शब्द थे मै मरने के बाद फिर से पृथ्वी पर मेरा पुनर्जन्म (rebirth) होगा और जो भी व्यक्ति मेरी उपर्युक्त बाते कुछ इसी अंदाज मे लोगो के सामने रखा समझो वह मै ही हूँ पुनर्जन्म के रुप मे |
अनादि काल से आतम का अस्तित्व का बोध नहीं हुआ और अनादि से इस जीव को भ्रम में है कि देह में अतमा बुद्धि है सचे सद्गुरू और वैराग्य के बिना कोई काल में आत्मबोध नही होगा ये इस लोक का नियम है
Pranam guru g Mere toxic and narcissistic parents and brothers destroyed my life When I grow in life they destroyed it How they know I am happy and snatched my happiness How all my friends and relatives got against me How what I achieved go to them My life is spoiled Pls help