Channel- Sunil Batta Films
Film Title- “Teen Varsh” ( Part- 3)
(Based on Novel “Teen Varsh” Written By Padam Bhushan Bhagwati Charan Verma)
Produced & Directed by Sunil Batta, Story-Padam Bhushan Bhagwati Charan Verma, Music-Uttam Chatterji, Associate Director- Bharat Chopra, Camera-Madhu Naidu, Screen Play-Dhirendra Verma,Anees Jamal, Make up-Hem Singh & Roopraj Singh, Astt Makeup- Boby Nigam, Costume- Suman Srivastava, Edit-Prakash Muath, Voice-S H Mehndi,Singer-Swati Rizvi, Production-Ajeet Srivastava,Mohinder Agarwal, Kirti Prakash,Vijay Tiwari,Cast- Shekhar Suman,Jaya Bhattacharya,Gauri Sagan,Dinesh Shakul,Asifa Khan,Anis Jamal,Vijay Vikram, Babla Cocher, Manjul Azad, Binny Sharma,Naval Shukla,Azizudin Khalid, V D Gaur,Nidhi Vikram,Vijay Vastava,Mradula Bhardwaj,Saeed,Rajender Tiwari,Naveen Srivastava, Back Ground Music- Uttam Chatterjee & You Tube Music Library.
कथासार- “तीन वर्ष” (भाग - 3)
“तीन वर्ष” के पिछले भाग में आपने देखा कि हमेशा टाप करने वाला सीधा-सरल रमेश, कुंवर अजीत प्रताप सिंह की सोहबत और प्रभा के इश्क में पड़कर अपने लक्ष्य से ही भटक जाता है। बी.ए. फाइनल के इक्जाम में सेकिण्ड डिवीजन और प्रभा द्वारा शादी के प्रस्ताव को ठुकरा दिये जाने से आहत रमेश शराब का दामन थाम लेता हे...यहां तक कि मोहब्बत के खेल में चोट खाया रमेश अपने दोस्त अजीत की जान का ही दुश्मन बन बैठता है....गोली के धमाके और खून के छींटों से रमेश का नशा उतर चुका था वह सोचता है कि प्रभा के प्यारे के काबिल वह नहीं था इसलिए प्रभा ने उसे ठुकरा दिया....वह इन्सान नहीं हैवान हो गया है इसीलिए उसने अपने प्यारे दोस्त पर गोली चलार्इ.....ग्लानि और क्षोभ से भर रमेश एक छोटा सा खत अजीत के नाम लिखकर हमेशा-हमेशा के लिए होस्टल छोड़कर चल देता है.... एक अनजाने सफर के लिए।
भटकता हुआ रमेश अपने एक पुराने मित्र व सहपाठी विनोद के साथ कानपुर आ जाता है विनोद इण्टर तक झांसी में रमेश के साथ ही पढ़ता था बाद में अपने बिजनेस में लग गया तबियत से रंगीन मिजाज विनोद की शराब कमजोरी है। इस बीच विनोद का एक और व्यापारी दोस्त बांके भी कलकत्ते से आ जाता है वह भी कम रंगीन मिजाज नहीं....मय मीना और साकी में ही उनकी शामें जवां होती थीं। जबकि रमेश अपने कड़ुए अजीत को भुलाने के लिए शराब के नशे में ही धुत रहता...एक अजीब सा दार्शनिक भाव....। उन दिनों कानपुर में हुस्न और शबाब का बाजार गर्म था.....शाम होते ही मनचले नवाब व्यापारी हुस्न के बाजार की गलियों में मंडराने लगते.... जवां दिल धड़कने लगते तबले की थाप और घुंघरूओं की झनकार कोठों पर गूंजने लगती गजरे महकने लगते... हुस्न के दलाल ग्राहकों को पटाने में अपना हुनर लगा देते....नाजो अंदाज और नखरे की हुस्नजादियां इठलाने लगती.... लेकिन इस रंगीन बाजार में उन दिनों अगर किसी की चर्चा थी तो वह थी दिलीपा बार्इ की बेटी सरोज की.... सबकी जुबान पर उसी का नाम था उसकी एक झलक देखने के लिए लोग तरसते थे ....हुस्न के बाजार की मलिका सरोज के कोठे पर नशे में झूमता लड़खड़ाता रमेश आता है इतनी रात गये एक नौजवान को इस हालत में देख सरोज बार्इ हैरान होती है लेकिन युवक का फक़ीराना अंदाज तेज द्दार जैसी साफ़गोर्इ जमाने भर की कड़ुवाहट और दिलकश शख्िसयत सरोज बार्इ पर कुछ ऐसा जादू चला जाते हैं कि वह रमेश की मेहमान नवाजी में कोर्इ कसर नहीं छोड़ती यहां तक कि उसे अपने यहां पनाह भी देती हैं...और जाने अनजाने अपने दिल की गहराइयों में भी उतार लेती है....रमेश जब अपने दोस्तों के साथ कोठे पर पहंुचता है....तो सरोज बड़ी शालीनता से मेहमान नवाजी करती है। शराब के गिलास सज जाते हैं लेकिन विनोद का दोस्त बांके कुछ ज्यादा ही बहक जाता है वह सरोज से पीने का आग्रह करता है सरोज मनाकर देती है तो वह जबरदस्ती उसे शराब पिलाने का प्रयास करता है....उसकी इस बेहूदगी पर रमेश को क्रोध आ जाता है वह मरने-मारने पर आमादा हो जाता है....विनोद किसी प्रकार बीच बचाव कर बांके को ले जाता है...सरोज रमेश को समझाती है कि यह तो यहां रोज का ही काम है उसे झगड़ने की क्या जरूरत थी रमेश कहता है वह तुम्हारे साथ जबरदस्ती कर रहा था मुझे यह अच्छा नहीं लगा...दोनों अपने मन की कुछ और पर्ते खोलते हैं तभी रमेश की नजरें वहां पड़ी एक पुस्तक पर टिक जाती है वह सोचता है तवायफ के कोठे पर विद्या की देवी सरस्वती का क्या काम...रमेश को सुखद आश्चर्य होता है कि सरोज बार्इ दसवीं क्लास तक पढ़ी है....। वह उसे अपनी पढ़ार्इ जारी रखने के लिए प्रेरित करता है जिसे सरोज खुशी-खुशी मान लेती है। बशर्ते वह स्वयं उसे पढ़ाये रमेश सरोज की पढ़ार्इ जारी रखने का वादा लेकर चला जाता है और सरोज हाथ में किताब लिये एक नयी दुनियां के तसब्बुर में खो जाती है।
रमेश अपने बेहूदा दोस्तों का साथ छोड़कर सरोज के कोठे पर मय सामान आ जाता है। सरोज खुशी से फूली नहीं समाती उसे तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गयी हो....तुरन्त बढि़या शराब और खाने का इन्तजाम करती है रमेश उसे पैसे देने लगता है सरोज को अच्छा नहीं लगता पर वह रमेश का मन रखने के लिए वह रख लेती है।
भविष्य का ताना-बाना बनते हुए रमेश से शराब कम करने के लिए कहती है जबकि रमेश शराब से निकलना ही नहीं चाहता। सरोज उसे भरोसा दिलाती है कि अब वह अकेली नहीं है। रमेश इसे इज़हारे मोहब्बत समझकर उसे समझाना चाहता है क्योंकि रमेश अपनी पहली मोहब्बत के अन्जाम से इस कदर झुलस चुका है कि वह दोबारा इस रास्ते पर अपने कदम रखने को कतर्इ तैयार नहीं है.....सरोज को सिर्फ मायूसी ही मिलती है।......लीजिए पेशे हिदमत है अफसाना ‘तीन वर्ष’ का भाग- 3
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21 май 2020