प्रणाम! ख़ुदके अस्तित्वसे अतिरिक्त कोई भगवान है ऐसा मानना मनवाना भ्रांति है! जीवमात्र सत्तास्वरूपसे अतींद्रिय शाश्वत भगवान ही है ऐसी ज्ञानी महात्माओंने जीतेजी ही ख़ुद देहातित दशा पाकर घोषित किया है! अरूपी आत्मा चर्मचक्षु गोचर नहीं है इसलिए उसे अनुभव करना होता है लेकिन जो तत्वलोचन चाहिये उसे पाने जीवंत महात्माको खोजकर ‘मैं कुछ भी नहीं जानता’ ऐसा सद्गुरूके प्रति परम विनयात्वित होकर बैठना अनिवार्य है! जो जीव अनादिके जन्ममरणके अनंत दुःखोंसे सहीमें उब चुका हो वे उस दशा पाने योग्य जीव है!