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मिम्बर जो मिले तख़्ते सुलैमां को न देखूं | Marsia- e -Meer Nawab Monis | Urdu Marsia | Urdu Poetry | 

Sunil Batta Films
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Channel- Sunil Batta Films
Documentary on Marsia (Urdu Poetry)- Marsia - e - Meer Nawab Monis
Produced & Directed by Sunil Batta, Voice- Navneet Mishra, Camera-Chandreshwar Singh Shanti, Production- Dhruv Prakesh, Camera Asst.- Runak Pal, Kuldeep Shukla,
Synopsis-
जो मिसरा रंगीं हो फसाहत से भरा हो
जो दर्द का मज़मूं हो रिक़्क़त से भरा हो
जो बंद हो पाकीज़ा इबारत से भरा हो
माना से फसाहत से बलाग़त से भरा हो
हर बहर में दरया की रवानी नज़र आए
पत्थर का भी मज़मंू हो तो पानी नज़र आए
एै फैज़े रसां दामने मोहताज को भरदे
पत्थर भी पिघल जाए वह नालों में असर दे
न ताज अता कर न ज़रो लालो गोहर दे
शब्बीर के मदाओं में दाखि़ल मुझे कर दे
दुनिया के किसी ख़्वाबे परेषां को न देखूं
मिम्बर जो मिले तख़्ते सुलैमां को न देखूं
मीर मोनिस के कलाम में शाएराना अज़मत का वही अंदाज़ है जो अनीसो दबीर के यहां मिलता है। कलाम में सादगी सफाई बरजस्तगी का ख़्याल और अल्फाज़ की मुनासिब निस्बत है और अक़ीदत मंदी का जज्बा मम्दूह का वक़ार और शानों शौकत बड़ी हद तक नुमायां है।
आप का नाम मीर नवाब था और तख़ल्लुस मोनिस रखते थे। मीर ख़लीक़ के छोटे फरजंद और मीर अनीस के हक़ीक़ी भाई थे। शहर फैज़ाबाद के मुहल्ला गुलाब बाड़ी में 5 मुहर्रम 1224 में पैदा हुए।
मीर मोनिस ने इमाम हुसैन का सरापा उनके शायाने शान यानी इमाम का रुतबा मक़सदे हयात जज़्बए ईसार और इश्क़े ख़ुदा की तरफ रूजहान की मुनासिबत से पेश किया है। चन्द बंद इमाम हुसैन का सरापा की तारीफ में पेश है।
नूरे रुख़े मौला जो मिला नूरे सहेर से
हुस्ने शबे मेराज गिरा सब की नज़र से
दिन हो गया इस ओज इमारत के क़मर से
ताले हुआ खुर्शीद न ता देर उधर से
निकला तो रुख़े शाह को तकता हुआ निकला
ज़र्रा सा निगाहों में चमकता हुआ निकला
पेशानिये सरवर को क़मर कह नहीं सकते
आईनाए खुर्शीदे सहेर कह नहीं सकते
हैरत में हैं कुछ मुंह से बशर कह नहीं सकते
तशबीह तो सूझी है मगर कह नहीं सकते
हुस्न उन का ज़माना के हसीनों से जुदा है
रौशन है तजल्ली से कि यह नूरे ख़ुदा है।
मोनिस ने अपने मर्सियों में इमाम हुसैन की शहादत के साथ साथ दूसरे अज़ीज़ों की शहादत का बयान निहायात दर्दनाक अंदाज से नज़्म किया है।
जुहरा की सदा थी मेरे प्यारे को संभालो
या शेरे ख़ुदा प्यास के मारे को संभालो
हाथों पे मेरे राज दुलारे को संभालो
उस अर्श के गिरते हुए तारे को संभालो
नरगे़ से ये मज़लूम निकलने नहीं पाता
बच्चा मेरा घोड़े पे संभलने नहीं पाता
यह कह के लहू तेग़़ का रूमाल से पोछा
माथे के पसीना को अजब हाल से पोछा
बह आए थे जो अश्क उन्हें गाल से पोछा
सब ख़ून की छींटों को ख़त्तोख़ाल से पोछा
मुशताक़ शहादत हुए लशकर को भगाकर
ख़ुद झुक गए तलवार को हरने पे झुका कर
अनीसो दबीर के बाद मर्सिया गोई में मीर मोनिस एक क़ाबिले क़द्र मर्सिया निगार हैं। रिवायती अंदाज की मर्सिया नेगारी का जब भी जिक्ऱ आएगा मीर मोनिस के कलाम को क़द्र की निगाह से देखा जाएगा।
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Опубликовано:

 

5 сен 2019

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