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मीर महर अली "उन्स" की अहले बैत से मुहब्बत और अक़ीदत | Marsia-e- Meer Uns | Urdu Poetry | Urdu Marsia| 

Sunil Batta Films
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Channel- Sunil Batta Films
Documentary on Marsia (Urdu Poetry) - Marsia-e- Meer Uns
Produced & Directed by Sunil Batta, Voice- Navneet Mishra, Camera-Chandreshwar Singh Shanti, Production- Dhruv Prakesh, Camera Asst.- Runak Pal, Kuldeep Shukla,
Synopsis- मीर महर अली "उन्स"
उन्स का अस्ली नाम मीर महर अली था और उन्स तख़ल्लुस था। वह मरसिया के मशहूरो मारूफ शायर मीर मुस्तहसन ख़लीक़ के साहब ज़ादे और मीर बबर अली अनीस के मंझले भाई थे । मीर महर अली 11 सफर 1223 हिजरी में पैदा हुए। उन की तालीमों तरबियत फैज़ाबाद और लखनऊ के मुअल्लिमीन और मुदर्रिसीन के ज़रीये हुई। मरसिया ख़्वानी की मश्क और अशआर पर इस्लाह अपने वालिद, जनाब मीर खलीक़ से हासिल की और उनके इन्तिक़ाल के बाद अपने बड़े भाई बबर अली अनीस से इस्तेफादा किया।
मीर महर अली उन्स अहले बैत से मुहब्बत और अक़ीदत को अपना ईमाम समझते थे इसी बिना पर मरसिया गोई और मरसिया ख़्वानी में बहुत इहेमाक बरतते थे। उसी जज़्बे की बदोलत 1297 हिजरी में मीर उन्स ने करबलाए मुअल्ला व नजफे़ अशरफ की ज़ियारत का शर्फ हासिल किया।
उन्होने मरसियों में इमाम हुसैन की आमद के अलावा उन के दोस्तों और दुश्मनों की आमद इस कामियाबी से बयान की है कि अस्ल किरदार ज़ाहिर हो जाते हैं।
निकले हरम से हज़रत अब्बास नेक नाम
झुक झुक गये मुलाज़िमे सरवर पिये सलाम
अस्तबल से तलब हुए ख़ासा के ख़ुश ख़राम
होने लगा सवारिऐ मौला का एहतेमाम
मीर अनीस और दूसरे मरसिया निगारों ने मरसिया में ज़िन्दा और मुतहर्रिक किरदारों को जगह दी और मुनासिबते हाल के मुताबिक़ किरदारों में इंसानों की आला क़दरों की रहनुमाई की। इस तरह की किरदार निगारी पेश करने में मीर उन्स अपने मआसिरीन में किसी से पीछे नहीं थे।
अब्बास ने कहा कि अभी कुछ नहीं ख़बर
मुख़्तार हैं हर अम्र के सुल्तान बहरो बर
क़ासिम पे निगाह है अकबर पे भी नज़र
चुपके खड़े हैं सामने आक़ा के सब मगर
जै़नब के लाल कांधों पे तेग़ें धरे हुए
कुछ मां से बातें करते हैं आंसू भरे हुए
बैन ही अस्ल मरसिया है क्योंकि मरसियागो का अव्वलीन फर्ज़ रोना और रूलाना होता है। मीर उन्स के कलाम में बैन का बयान बहुत ही एहतेमाम से पेश किया गया है।
फौजे मलक लिए हुए जिब्रईल नामदार
बहादुर मुजराईयों की तरह खड़े थे बाइफ्तिख़ार
जिन्न भी हो के घोड़ों पर थे एक तरफ सवार
एक सिम्त नूहो आदम यहया थे। अश्क बार
हुक्मे निगाह था न मगर चशमे ग़ैर को
हूरों मुंह निकाले थे ग़्ुर्फ़ो से सैद को
मीर उन्स ने अपनी शायरी में कुछ नई चीज़ें भी शामिल कीं उन्होंने अपने मरसियों में मुहब्बत और साक़ी नामे को भी जगह दी। उन्होंने अपने मरसियों के ज़रीआ समाजी और इस्लाही काम भी लिया मगर किसी भी सनाए को बयान करने में वह अपने मक़सद से नहीं भटके क्योंकि मज़हबी शख्स थे। इस लिए इमाम हुसैन और अहले बैत से जज़्बाती लगाओ रख्खते थे। वह मरसिया गोई को इबादत और सवाब समझ कर लिखते और पढ़ते थे। आखि़र वह 6 मुहर्रम 1390 हिजरी को अपने मकान वाक़े बावर्ची टोला लखनऊ में इन्तिक़ाल कर गए और हकीम बंदा मेहदी के मक़बेरे में दफन हुए।
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Опубликовано:

 

4 сен 2019

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Комментарии : 1   
@mohinkhankhan5099
@mohinkhankhan5099 4 года назад
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