मेवात के बारे में हरियाणा के लोगों में कई तरह की गलतफहमियां हैं। मेरे दिमाग में भी थी, लेकिन गुडगांव में मार्केटिंग बोर्ड की नौकरी के दौरान मेवात से बहुत ज्यादा संपर्क रहा। बहुत बार आना जाना हुआ और मेवात को अपनी आंखों से जब देखा तो पता चला कि इनमें से ज्यादातर ग़लतफ़हमियाँ ही हैं।
आपको आश्चर्य होगा ये जानकर कि मेवात में 90% से ज्यादा आबादी मुस्लिम है। लगभग 10% लोग हिंदू हैं, लेकिन उसके बावजूद सांप्रदायिक सद्भाव बहुत अच्छा है। वहां पर सांप्रदायिक दंगे न के बराबर हैं। आज भी नहीं है। पहले भी नहीं थे।
मैंने गांव में जाकर जो 10% हिंदू परिवार हैं, उन लोगों से बातचीत की और अकेले में बात की कि आप लोगों को इनके साथ रहते हुए किसी तरह की कोई डर लगता हो जो अल्पसंख्यकों में होता है। किस तरह का व्यवहार है? उन 10% लोगों ने, जिनमें ज्यादातर लोग अनुसूचित जाति के हैं। दलित जातियों से संबंध रखते हैं। मुझे आश्चर्य हुआ यह सुनकर कि उनका कहना था कि हमें इनके साथ रहने में किस तरह कोई समस्या नहीं है, बल्कि उन्होंने कहा कि छुआछूत या भेदभाव हिंदुओं के गांव में अनुसूचित जाति के लोगों के साथ होता है। उन्होंने गर्व से कहा कि हमारे साथ ऐसा हम नहीं हो सकता।
जो 10% हिंदू परिवार हैं इनमें से लगभग 90% परिवार बिना जमीन के हैं। जमीन नहीं है और मजदूरी करके अपना जीवनयापन करते हैं। जो खेत मजदूर हैं वह ज्यादातर मुसलमानों की जमीन पर मजदूरी करते हैं और यह सिलसिला आज से नहीं सैकड़ों साल से चला आ रहा है।
गांव में जो दुकानदार हैं, जो गांव में दुकानदारी करते हैं, उनमें से 90% दुकानदार बनिए हिंदू हैं। लगभग हर गांव में इनसे मैंने बात की और उनके व्यवहार से देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि वह कोई किसी तरह से दोयम दर्जे से रह रहे हों या गांव में उनका प्रभाव कम हो। मुझे तब यह नजर आया कि उन बनियों का अपने-अपने गांवों में उनकी संख्या के हिसाब से जितनी उनकी संख्या परिवारों की थी, उससे कई गुना ज्यादा प्रभाव उनकी बात को गांव के लोग, मुसलमान लोग भी और हिंदू लोग भी पूरी मान्यता देते हैं।
उसके बाद जो मंडियां हैं मेवात में जहां पर मेरा खूब आना जाना रहा है, उन मंडियों में 90% जो आढ़त की दुकानें हैं, वह हिंदुओं की हैं। इसमें बनिया और पंजाबी प्रमुख हैं। कुछ राजपूतों से होगा और जबकि मेवात के पूरे इलाके में जो 90% किसान हैं, वह मुसलमान हैं। यह एक बड़ी रेखांकित की जाने वाली बात है कि आढ़त की दुकानें 90% हिंदुओं की हैं और किसान 90% मुसलमान हैं। आढ़तियों से तो रुटीन में बात होती थी। उनका कहना है कि बाकी हरियाणा में जिस तरह का लेनदेन किसानों का है, आढ़तियों के साथ यहां पर उनका लेन देन का व्यवहार बाकी लोगों से ज्यादा अच्छा है।
यह शिकायत जरूर थी यहां के अधिकारियों को कि मेवात के बारे में जो गलतफहमियां हैं उसकी वजह से हमारे बच्चों के रिश्तों में थोड़ी सी उनको नेगेटिव प्वाइंट लगता है। नहीं तो व्यापार के हिसाब से और किसानों के लेन देन के हिसाब से उनको किसी भी तरह की समस्या नहीं है। कुल ऑर्डर के हिसाब से सब कुछ है। क्राइम के हिसाब से वह बिल्कुल सुरक्षित महसूस करते हैं। उनका कहना है कि हमारी मंडी में कभी किसी भी तरह की चोरी, डकैती, कोई वारदात घर पर नहीं होती थी।
ये एक जो बहुत बड़ी भ्रांति है मेवात के बारे में या ज्यादातर मुसलमानों के बारे में है कि हर मुसलमान चार चार शादियां करता है। बहुत बड़ी गलतफहमी है। पूरे मेवात में मुझे मिला कि एक गांव में चार-पांच परिवारों में ज्यादा एक से ज्यादा शादी। चार शादियों की तो बहुत दूर की बात है। एक शादी का जिस तरह से हमारे बाकी हरियाणा में रिवाज है उसी तरह से केवल एक शादी का रिवाज है और दूसरी शादी भी यदि होती है तो विशेष कारण होती। या तो उनकी पहली पत्नी की मृत्यु हो गई है।
एक अच्छी बात है। मेवात में शराब का प्रचलन बहुत कम है। हो सकता है इसमें इस्लाम का भी कुछ प्रभाव हो, लेकिन वहां की जो सोशल जो कल्चर है। उसमें शराब को पीना अच्छा नहीं माना जाता और इतना इतना कम है कि यदि कोई शराब पीता है तो चोरी छिपे देता है। वह शराब पीकर गली में निकल जाए, यह मेवात में सोचा नहीं जा सकता। जी हां, हुक्का-बीड़ी का प्रचलन खूब है। यह गांव नहीं शहर में सभी के पास है।
कमी है वहां के क्षेत्र की तो पढ़ाई बहुत कम है। मुझे लगता है साक्षरता दर शायद हिंदुस्तान के बिल्कुल पिछड़े जिलों के बराबर आती है। इसमें स्कूलों की भी कमी है। स्कूलों में टीचर्स भी कम हैं। और दूसरा शायद उनका अपना दृष्टिकोण था। पढ़ाई के प्रति वो भी ज्यादा अच्छा नहीं था। अब बहुत बदल रहा है। कुछ प्राइवेट स्कूल भी खुले हैं। सरकारी स्कूलों में भी लोग थोड़ा डिमांड करने लगे हैं कि टीचर्स पूरे हों और उनकी राजनीतिक आवाज कम है। इस वजह से भी शायद शैक्षणिक सुविधाएं वहां पर कम हैं।
एक उनका सामाजिक जो पहलू है, महिलाओं की लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान बहुत कम देते हैं। और मुझे तो लगता है कि इस मामले में वह बाकी हरियाणा से और बाकी देश से पिछड़े हुए हैं। लड़कियों की शिक्षा उनको ज्यादा महत्वपूर्ण आज भी नहीं लगती। हालांकि पहले से बहुत बदलाव है, लेकिन अब भी मेरे अंदाजा में 30-40% लड़कियां आठवीं क्लास से पहले स्कूल छोड़ देती हैं, जो एक बहुत बड़ा आंकड़ा है और इस पर एक चिंताजनक बात।
महिलाओं के प्रति जो उनका दृष्टिकोण है, जिस तरह का बाकी हरियाणा में है, उसी तरह का है। महिलाओं को जैसे बाकी हरियाणा में मुझे तो लगता है कि बराबरी का हक नहीं है, मेवात में भी नहीं है और मेवात में भी परिवार में या समाज में महिलाओं को काफी दबकर रहना पड़ता है।
बेरोजगारी जैसे बाकी हरियाणा में है, उसी तरह से यहां का नौजवान बिल्कुल बेरोजगारी से लड़ रहा है। कोई साधन नहीं है उसका। लेकिन एक अच्छी बात यह है कि मेवात का नौजवान इस बात से चिंतित है कि मेवात लगातार पिछड़ रहा है। इसलिए वह शिक्षा के प्रति सजग है और उसमें बेचैनी है कि हम लोग आगे कैसे बढ़े।
14 окт 2024