द्वितीय सत्र का विषय रहा, 'मूल भारतीय विचार के आधार पर सामाजिक तथा आर्थिक समयानुकूल संकल्पना।' प्रस्तुतकर्ता स्वामी श्री गोविंद देव गिरी जी ने बताया कि जब स्व की बात आई है, दुनिया वैदिक दिशा की ओर ही बढ़ी है। उन्होंने धर्म के सुंदर व्याख्या करते हुए समझाया कि व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि और परमेष्ठी का संतुलन बनाकर जब विकास होता है वही सही मायने में धर्म पालन है। एकात्म जीवन दर्शन और जीवन मूल्यों का संतुलन समझाते हुए स्वामी जी ने बताया कि भारतीय परंपरा विश्व की सबसे प्राचीन और जीवंत परंपरा है जो Survival of the Fittest नहीं अपितु Protection of the Weakest मैं विश्वास रखती है। उन्होंने समझाया कि पुरुषार्थ चतुष्टय को मानव जीवन के लक्ष्य के साथ जोड़ना आवश्यक है। पंचकोशी विभावना को समझाते हुए उन्होंने समझाया कि १६ किलोमीटर तक का विस्तार पंचकोशी कहलाता था। भोजन से लेकर, स्वास्थ्य से लेकर व्यवसाय तक की सारी सुविधाएं, संसाधन वही विस्तार में उपलब्ध होते थे। आज जब जनसंख्या बढ़ रही है तो हम एक जिले को पंचकोशी मानकर, उस जिले की सामाजिक तथा आर्थिक व्यवस्थाओं का विकेंद्रीकरण कर सकते हैं और स्वतंत्रता की सही व्याख्या प्रस्तुत कर सकते हैं।
इस एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में पूरे भारत से ८०० से ज्यादा लोग सम्मिलित हुए थे। संगोष्ठी के विचार से लेकर सुचारू रूप से संपन्न होने तक का श्रेय भारतीय विचार मंच के सभी सदस्य, उनके प्रयत्न को जाता है।
24 сен 2022