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विष्णुसहस्रनाम अर्थ व विवरण: भाग ४० - श्लोक क्र. ४९, प्रस्तुति - सौ. अपर्णा शंकर अभ्यंकर 

aditya pratishthan
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Vishnusahasranaama Artha va Vivaran: Part 40 - Shloka or Verse No 49 by Aparna Shankar Abhyankar | विष्णुसहस्रनाम अर्थ व विवरण: भाग ४०- श्लोक क्र. ४९, प्रस्तुति - सौ. अपर्णा शंकर अभ्यंकर
स्कन्दः स्कन्दधरो धुर्यो वरदो वायुवाहनः ।
वासुदेवो बृहद्भानुरादिदेवः पुरन्दरः ॥
॥ ४९॥
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मा मां प्रलोभयोत्पत्या सक्तम् कामेषु तै: वरै:।
कामानां हृद्य संरोहं भवतस्तू वृणे वरं ।।
आवह: प्रवहश्चैव संवहश्चोद्वहस्तथा।
विवहाख्य: परिवह: परावह इति क्रमात्।
यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम् |
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ||
॥ भ.गी.१५-१२॥
ॐ नमोजी आद्या । वेद प्रतिपाद्या ॥
जय जय स्वसंवेद्या । आत्मरूपा ॥१॥
अमृताचीं फळें अमृताची वेली । ते चि पुढें चाली बीजाची ही ॥१॥
ऐसियांचा संग देइ नारायणा । बोलावा वचना जयांचिया ॥२॥
उत्तम सेवन सितळ कंठासी । पुष्टी कांती तैसी दिसे वरी ॥३॥
तुका म्हणे तैसें होइजेत संगें । वास लागे अंगें चंदनाच्या ॥४॥

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15 окт 2024

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