1. मूलाधार चक्र -- यह चक्र रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से के पास होता है, कुण्डलिनी का मुख्य स्थान कहा जाता है.
2. स्वाधिष्ठान चक्र - यह चक्र छह पंखुड़ियों का है. इस चक्र से निम्न भावनाएँ नियंत्रित होती हैं. अवहेलना, सामान्य बुद्धि का अभाव,आग्रह,अविश्वास,सर्वनाश और क्रूरता.कमिटमेंट और साहस बढ़ाता है.
3. मणिपुर चक्र - यह चक्र ऊर्जा का सब से बड़ा केंद्र है , यहीं से सारे शरीर में ऊर्जा का संचरण होता है. इस चक्र से निम्न वृत्तियाँ नियंत्रित होती हैं- लज्जा, दुष्ट, भाव, ईर्ष्या, सुषुप्ति,विषाद, कषाय, तृष्णा, मोह, घृणा, भय.संतुष्टि का भाव. मन या शरीर पर पड़नेवाला प्रभाव सीधा मणिपुर चक्र पर पड़ता है. ये शारीरिक रूप से पाचन, मानसिक रूप से निजी बल, भावनात्मक रूप से व्यापकता और आध्यात्मिक रूप से सभी उपादानों के विकास को नियंत्रित करता है।
4. अनाहत चक्र -- ह्रदय के बीचों बीच रीढ़ की हड्डी पर स्थित है. सतोगुण की शुरुआत होती है. भय और तनाव दूर करता है. इसी चक्र से व्यक्ति की भावनाएँ और अनुभूतियों की शुरुआत होती है. अनाहत से जुड़े मुख्य विषय जटिल भावनाएं, करुणा, सहृदयता, समर्पित प्रेम, संतुलन, अस्वीकृति और कल्याण है।
5. विशुद्ध चक्र - सारी सिद्धियाँ इसी चक्र में पायी जाती हैं. यह चक्र बहुरंगा है और आकाश तत्त्व और आठों सिद्धियों से सम्बन्ध रखता है. कुंडली शक्ति का जागरण होने से जो ध्वनि आती है वह इसी चक्र सेआती है.
6. आज्ञा चक्र - चक्र का कोई ध्यान मंत्र नहीं है क्योंकि यह पांच तत्वों और मन सेऊपर होता है. इस चक्र पर मंत्र का आघात करने से शरीर के सारे चक्र नियंत्रित होते हैं.
7. सहस्त्रार चक्र - कुण्डलिनी जब इस चक्र पर पहुँचती है तब जाकर वह साधना की पूर्णता और मुक्ति की अवस्था मेंआ जाती है.
12 चक्रों की अवधारणा में पांच अतिरिक्त ऊर्जा केंद्र शामिल हैं जो हमारे भौतिक शरीर की सीमाओं को पार करते हुए ब्रह्मांड में विस्तारित होते हैं। ये अतिरिक्त चक्र, आठ से बारह, हमारे भौतिक शरीर में स्थिर नहीं हैं, लेकिन माना जाता है कि ये शीर्ष के ऊपर स्थित होते हैं और आध्यात्मिक क्षेत्र में विस्तारित होते हैं। वे हमें न केवल हमारे उच्च स्व से, बल्कि ब्रह्मांड और उससे परे भी जोड़ते हैं।
1 июн 2024